भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा पाठ्य पुस्तकों में जिस मनमानी ढंग से छेड़छाड़ कर सिलेबस बदले गए हैं उसे लेकर विद्वान तो पहले से ही नाराज हैं। लेकिन विभिन्न तबकों के नाराजगी जताने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार अपने एजेंडे पर अडिग रही है और अपने घोषित राष्ट्रवाद(भगवाकरण ) के हिसाब से पाठ्यक्रमों में बदलाव करती रही है।
अब ताजा मामला सामने आया है कि राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा जानकारी दी गई है कि कई विषय पुस्तकों से निकाल दिए गए हैं । एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने स्कूली पाठ्यक्रम के भगवाकरण के आरोपों को खारिज किया है।
उन्होंने कहा कि स्कूली पाठ्य पुस्तकों में गुजरात दंगों और बाबरी मस्जिद गिराए जाने के संदर्भों को इसलिए संशोधित किया गया, क्योंकि दंगों के बारे में पढ़ाना हिंसक और अवसादग्रस्त नागरिक पैदा कर सकता है। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों में भारत और इंडिया दोनों शब्द चलते रहेंगे।
इन बयानों के बाद शिक्षाविद योगेंद्र यादव और सुहास पलीशकर ने 17 जून को एनसीईआरटी को पत्र लिखकर नयी पाठ्यपुस्तकों में उनके नाम होने पर आपत्ति जताई और कहा कि यदि उनके नाम वाली ये पुस्तकें तुरंत नहीं हटाई जाती हैं तो वे कानूनी उपाय का सहारा लेंगे।
पलशीकर और यादव ने कहा है कि पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था।
उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि वे नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नाम का आड़ लेकर छात्रों को राजनीति विज्ञान की ऐसी पाठ्यपुस्तकें दे, जो राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से असमर्थ और शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त है।
वे दोनों राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के लिए मुख्य सलाहकार थे।
उन्होंने पिछले साल कहा था कि पाठ्यपुस्तकों की सामग्री को घटाने की कवायद ने पुस्तकों को अकादमिक रूप से अनुपयुक्त बना दिया और पुस्तकों से उनके नाम हटाये जाने की मांग की थी।
दोनों विद्वानों ने कहा था कि पाठ्यपुस्तकें पहले उनके लिए गौरव का स्रोत थीं जो अब शर्मिंदगी का सबब बन गई हैं।
हाल में बाजार में उपलब्ध हुए पाठ्यपुस्तकों के संशोधित प्रारूप में अब भी पलशीकर और यादव के नाम का उल्लेख मुख्य सलाहकार के रूप में किया गया है।
पत्र में कहा गया है, ‘‘चुनिंदा तरीके से सामग्री हटाने की पूर्व की परंपरा के अलावा, एनसीईआरटी ने महत्वपूर्ण संशोधनों और पुनर्लेखन का सहारा लिया है जो मूल पाठ्यपुस्तकों की भावना के अनुरूप नहीं है…एनसीईआरटी को हममें से किसी से परामर्श किये बिना इन पाठ्यपुस्तकों में छेड़छाड़ करने का कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन हमारे स्पष्ट रूप से मना करने के बावजूद हमारे नाम के साथ इन्हें प्रकाशित कर दिया गया।’’
पत्र में कहा गया है, ‘‘किसी भी रचना के लेखक होने के किसी व्यक्ति के दावे के बारे में तर्क और बहस की जा सकती है। लेकिन यह आश्यर्च की बात है कि लेखक और संपादक के नाम ऐसी रचना के साथ जोड़ी गए हैं जिन्हें अब वे अपना नहीं मान रहे हैं।’’
एनसीईआरटी राजनीति विज्ञान की 12वीं कक्षा की संशोधित पाठ्यपुस्तक से जुड़े विवाद के केंद्र में एक बार फिर से है क्योंकि इसने बाबरी मस्जिद का उल्लेख नहीं किया है बल्कि इसे ‘‘तीन-गुंबद वाला ढांचा’’ बताया है।
पाठ्यपुस्तकों से हाल में हटाई गई सामग्री में शामिल हैं: गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक भाजपा की रथ यात्रा, कार सेवकों की भूमिका, बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के मद्देनजर सांप्रदयिक हिंसा, भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन, और अयोध्या में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा का खेद जताना।’’
पलशीकर और यादव के पत्र में कहा गया है, ‘‘हमारे नामों के साथ प्रकाशित की गईं इन पुस्तकों के नये संस्करण को तुरंत बाजार से वापस लिया जाए…यदि एनसीईआरटी तुरंत ऐसा नहीं करती है तो हम कानूनी उपाय का सहारा लेने को बाध्य होंगे।’’
यादव और पलशीकर ने जब पाठ्यपुस्तक से खुद को अलग किया था, तो एनसीईआरटी ने कॉपीराइट स्वामित्व के आधार पर इसमें बदलाव करने के अपने अधिकार का उल्लेख किया और कहा था कि ‘‘किसी एक सदस्य द्वारा इससे जुड़ाव खत्म करने का सवाल ही नहीं उठता’’ क्योंकि पाठ्यपुस्तकें सामूहिक प्रयास का परिणाम हैं।’’