महेश
बॉलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख खान की “हैट्रिक” के साथ वर्ष 2023 में मुंबईया फिल्मोद्योग यानी बॉलीवुड ने धमाकेदार वापसी की है।
बॉलीवुड को मार्च 2020 से ही ग्रहण लग गया था और जहां कोविड – 19 महामारी के लॉकडाउन से बिजनस ठप हो गया, वहीं सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद नेपोटिज्म के आरोप लगने, बॉलीवुड में राजनीति घुसने और सरकार की तरफ से बॉलीवुड पर अपना नैरेटिव थोपने के लिए कब्ज़े की कोशिशों, ओटीटी के उभार और दक्षिण भारतीय सिनेमा को मिल रही “पैन इंडिया” सफलता के बीच लगभग तीन साल बॉलीवुड लड़खड़ाता रहा और ऐसा लगने लगा कि बॉलीवुड या कम से कम इसका दबदबा खत्म हो जाएगा।
लेकिन इस साल चीज़ें बदल गयीं और केवल शाहरुख खान ने ही लगभग चार साल बाद वापसी करते हुए “पठान” और “जवान” से पांच सौ करोड़ से ज्यादा की कमाई करने वाली फिल्में देकर बॉलीवुड की जान में जान डाल दी। उनकी तीसरी फिल्म “डंकी” भी रिलीज़ पर है और बॉलीवुड को निर्देशक राजकुमार हिरानी व शाहरुख खान की जोड़ी से टिकट खिड़की पर तहलका मचाने की उम्मीदें हैं। वैसे शाहरुख सलमान खान की मुख्य भूमिका वाली फिल्म “टाईगर 3” में भी मेहमान भूमिका में दिखे थे। उससे पहले सलमान ने “पठान” में मेहमान भूमिका निभाई थी। दोनों फिल्में यशराज फिल्म्स की स्पायवर्स यानी जासूसों की दुनिया का हिस्सा हैं। “टाईगर 3” भी टिकट खिड़की पर सफल हुई थी भले कमाई के मामले में अन्य ब्लॉकबस्टर फिल्मों से थोड़ी पिछड़ गयी हो।
शाहरुख के अलावा सन्नी देओल और कपूर खानदान के रणबीर कपूर ने क्रमश: “गदर 2” और “एनीमल” से टिकट खिड़की पर धमाल मचाया। “एनीमल” की हालांकि अपनी विवादास्पद नारी विरोधी और सांप्रदायिकता का पुट लिये कथानक और प्रस्तुति के कारण काफी आलोचना भी हुई। यह अब एक ट्रेंड ही बनता जा रहा है कि दक्षिणपंथी सरकार को खुश करने के लिए और बहुसंख्यक आबादी की सोच व दृष्टिकोण को तुष्ट करते हुए विवादास्पद फिल्में बनाई जाएं। इन्हें टिकट खिड़की पर सफलता भी मिलती है और सरकार से अनुमोदन और पुरस्कार भी। कभीकभार तो टैक्स फ्री के तोहफों के साथ प्रशंसा व प्रचार भी मिलता है।
उदाहरण, विवादास्पद लेकिन टिकट खिड़की पर हिट “केरल स्टोरी” है। ऐसा ही पिछले साल विवेक अग्निहोत्री निर्देशित “कश्मीर फाइल्स” के साथ हुआ था। जिसे सत्ता से आशीर्वाद मिला, टिकट खिड़की पर मोटी कमाई भी हुई। हालांकि इस साल विवेक अग्निहोत्री “वैक्सीन वार” के साथ सफलता की वह कहानी नहीं दोहरा पाये।
दरअसल, बॉलीवुड के अधिकांश बड़े सितारों में सत्ता से डरने और राजनीति में न पड़ने का एक कारण बॉलीवुड के सितारों पर निर्माताओं के लगे करोड़ों रुपयों का दांव होता है। यह तथ्य हाल में आई फिल्म “सैम बहादुर” की निर्देशक मेघना गुलज़ार के बयान से भी सामने आता है, जिन्होंने कहा था कि कुछ साल पहले आई उनकी फिल्म “छपाक” को दीपिका के ऐन रिलीज़ से पहले जेएनयू में जाने से नुकसान हुआ था।
“पठान” में दीपिका के भगवा बिकनी को भी लेकर दक्षिणपंथियों ने बवाल काटा था और सोशल मीडिया में बहिष्कार का आह्वान किया था। हालांकि उसका कोई खास असर नहीं हुआ। दूसरी तरफ दक्षिणपंथ समर्थक कंगना रानावत की फिल्म “तेजस” बुरी तरह पिटने का भी एक कारण उनकी राजनीति के कारण दर्शकों के एक वर्ग का उनसे छिटकना ही है।
खान तिकड़ी की बात करें तो तीसरे खान आमिर की पिछले साल आई फिल्म “लाल सिंह चड्ढा” पिट गई थी। रणवीर सिंह की करण जौहर निर्देशित “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी”, जिसमें करण के “अॉल अबाऊट लविंग युअर फैमिली” की चिरपरिचित थीम से हटकर पितृसत्ता के खिलाफ नारीवाद का झंडा बुलंद किया गया था, हिट रही।
बॉलीवुड के एक और सुपरस्टार अक्षय कुमार के लिए लेकिन यह साल अच्छा नहीं रहा। सेक्स एजुकेशन की थीम पर “ओह माय गॉड – 2” फिल्म समीक्षकों से तारीफ मिलने के बावजूद “गदर – 2” की आंधी में उतनी सफलता नहीं हासिल कर सकी। हालांकि फिल्म फिर भी इस वर्ष की मोटी कमाई करने वाली शीर्ष दस फिल्मों की सूची में शामिल है। उनकी “मिशन रानीगंज” भी खास कमाल नहीं कर पाई।
अजय देवगन की एकमात्र “भोला” कोई खास कमाल नहीं कर सकी। जबकि ऋतिक रौशन की “फाईटर” रिलीज़ के लिए तैयार है। टाईगर श्रॉफ की “गणपत” बुरी तरह फ्लॉप हुई। नायिकाओं की बात करें तो दीपिका पादुकोण “पठान”, “जवान” के साथ छायी रहीं। आलिया भट्ट के हिस्से में “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” आई। विद्या बालन की एक फिल्म डायरेक्ट टू ओटीटी यानी सीधे ओटीटी पर आई – “नीयत”। यह मर्डर मिस्ट्री थी लेकिन खास पसंद नहीं की गयी।
कोविड के बाद ओटीटी पर सीधे फिल्में लाने का चलन बढ़ा है, जिसकी वजह से खासकर ऐसी फिल्में जो टिपीकल मसाला फिल्मों की श्रेणी में नहीं आतीं और मध्यम बजट की होती हैं, सीधे ओटीटी पर रिलीज़ होने लगी हैं। ऐसी फिल्मों और वेब सीरिज़ ने नये स्टार पैदा किये हैं जैसे बाबिल खान (इरफान के पुत्र), उनकी फिल्म “फ्राईडे नाईट प्लान” और भोपाल गैसकांड पर वेब सीरिज़ “रेलवेमेन” ने इस साल खूब दर्शक और तारीफें बटोरीं।
इसी तरह हाल में आई “आर्चीज़” ने स्टार किड्स आगस्त्य नंदा, सुहाना खान और खुशी कपूर को लांच किया। ज़ोया अख्तर निर्देशित फिल्म को मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली और “नेपो किड्स” को लांच करने को लेकर नयी बहस भी छिड़ गयी। ज़ोया ने दोटूक जवाब दिया कि वह अपने पैसे से फिल्म बनाती हैं इसलिए कोई उन्हें सलाह न दे कि किसे लेना है, किसे नहीं। ओटीटी पर ही साल के अंत में आई “मस्त में रहने का” ने भी प्रशंसा बटोरी, जिसमें जैकी श्रॉफ, नीना गुप्ता की अनूठी जोड़ी थी। अकेलेपन की थीम पर आधारित विजय मौर्य निर्देशित इस फिल्म में मुंबई के जीवन का सजीव चित्रण किया गया है और युवा कलाकारों अभिषेक चौहान और मोनिका पवार ने भी दर्शकों का दिल जीत लिया। उससे पहले सीधे ओटीटी पर रिलीज़ “जानेजां” चर्चित हुई जयदीप अहलावत के बेजोड़ अभिनय के कारण। करीना कपूर और विजय वर्मा भी प्रमुख भूमिकाओं में थे।
सिनेमाघरों में ऐसी बिना तामझाम के, चुपके से आई लेकिन दर्शकों के साथ हिट हो गई फिल्मों को “स्लीपर हिट” कहा जाता है और विधूविनोद चोपड़ा निर्देशित व विक्रांत मैसी अभिनीत “बारहवीं फेल” ने सर्वाधिक चौंकाने वाला प्रदर्शन किया।
गंभीर और मौजूं विषय उठाने वाली “ज़्विगैटो” (नंदिता दास निर्देशित), “भीड़” (अनुभव सिन्हा), “अफवाह” (सुधीर मिश्रक) आदि कुछ ऐसी फिल्में थीं जिन्हें फिल्म समीक्षकों से सराहना तो मिली लेकिन टिकट खिड़की पर सफलता नहीं मिल पाई।
कुल मिलाकर कमाई के मामले में पिछले सालों के मुकाबले बॉलीवुड के लिए यह साल बेहतर ही रहा और बड़े पर्दे से रूठे दर्शकों के एक हिस्से को सिनेमाघरों में खींच लाने में कामयाब रहा।