जब वस्तुओं पर कर की दो दर बेहतर है तो पहले क्यों नहीं लागू की गई
ओमप्रकाश तिवारी
देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) एक जुलाई 2017 को लागू किया गया था। तब इसमें 5,12,18,28 की चार दरें लागू की गई थीं। अब जीएसटी में 5 और 18 फीसदी की दो स्लैब होगी। इसे इसी साल 22 सितंबर से लागू किया जाएगा। यह कितनी अच्छी बात है। सवाल यह है कि इतनी अच्छी बात की जानकारी सरकार को इतने साल बाद क्यों हुई। अब तक उसे इसका एहसास क्यों नहीं हुआ। ऐसा नहीं था कि उसे बताया नहीं गया था। नेता विपक्ष ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा था। बताया था कि इससे आम आदमी ही नहीं कारोबारी भी प्रभावित हैं। सभी के लिए दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। कई अर्थशास्त्रियों ने भी चेताया था लेकिन सरकार ने किसी की नहीं सुनी। इसका नुकसान किसे हुआ।
जीएसटी की दरें 5 और 18 दो स्लैब में होंगी ऐसा फैसला जीएसटी काउंसिल के लेने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने जो कहा वह गौर करने के लायक है। यह नहीं उसमें ही कई सवालों के जवाब भी हैं। पीएम मोदी ने कहा कि जीएसटी सुधारों से आम आदमी का जीवन आसान होगा।
कमाल है यह बात पीएम मोदी को अब समझ में आ रही है। यह बात तो उनसे कबसे कही जा रही थी लेकिन वह तो सुनने को तैयार ही नहीं थे। उनके कथन में ही यह निहित है की जीएसटी की वजह से आम आदमी का जीवन कठिन हो गया। जाहिर है इसके लिए जिम्मेदार भी वही हैं। उन्होंने आम आदमी का जीवन कठिन ही नहीं बनाया बल्कि जीना भी हराम कर दिया। एक समय था जब अंग्रेज सरकार भारतीयों से भारी भरकम कर वसूली थी और अपनी जेब भरकर ऐश करती थी। यही काम मोदी सरकार ने भी किया।
पीएम मोदी कहते हैं कि जीएसटी के दो स्लैब होने से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। सवाल यह है कि यह ज्ञान पीएम को पहले क्यों नहीं हुआ। क्यों उन्होंने जीएसटी के माध्यम से अर्थव्यवस्था को कमजोर किया। अब यदि मजबूत होगी तो पहले कमजोर हुई। यह उन्हीं का कथन है।
पहले भी जीएसटी को उन्होंने ने ही एक जुलाई 2017 को आधी रात में घंटा बजाकर लागू किया था। आखिर देश को मिला क्या। अब यह तो नहीं कह सकते कि नेहरू की वजह से ऐसा हुआ। क्योंकि पहले जीएसटी नेहरु लगाकर गए थे।
पीएम यह भी कहते हैं कि जीएसटी को युक्तिसंगत बनाने के लिए विस्तार से प्रस्ताव तैयार किया गया था। सवाल यह है कि पहले क्यों नहीं ऐसा प्रस्ताव तैयार किया। क्यों आम आदमी और अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी गई।
पीएम मोदी आगे कहते हैं कि खुशी की बात है कि जीएसटी परिषद ने आम सहमति से केंद्र सरकार के जीएसटी दरों में कटौती और सुधारों के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह कह कर पीएम मोदी यह जताना चाह रहे हैं कि जीएसटी को जीएसटी काउंसिल परिषद ने लागू किया था। उनकी सरकार ने नहीं। फिर सवाल उठता है कि आधी रात को संसद में घंटा बजाने कौन गया था। जाहिर है कि पीएम मोदी ही गए थे। अपना दोष वह दूसरे पर नहीं थोप सकते। हालांकि ऐसा करने में उन्हें महारत हासिल है। बार बार वह नेहरू जी का नाम लेते रहते हैं।
बहरहाल, पीएम मोदी का यह कथन गंभीरता से गौर करने लायक है। वह कहते हैं कि जीएसटी में इस सुधार से आम आदमी, किसानों, छोटे नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाएंगे। पीएम आम आदमी के साथ किसानों और छोटे नागरिकों का उल्लेख तो ऐसे कर रहे हैं जैसे यह लोग आम आदमी नहीं हैं। फिर आम आदमी है कौन। पीएम मोदी आगे कहते हैं कि सभी के लिए, विशेष करके छोटे व्यापारियों और व्यवसायों के लिए व्यापार करने में आसानी होगी। है न कमाल की बात।
यह सब जानते हुए भी पीएम ने जीएसटी का न केवल चार स्लैब बनाए रखा बल्कि कई ऐसे वस्तुओं पर भी कर लगा दिया जो आम आदमी के लिए बहुत जरूरी थीं। अब उन्हीं वस्तुओं को कर के दायरे से बाहर करके वाहवाही लूट रहे हैं। सवाल यह है कि सस्ती दवाओं के बिना जिनकी जान चली गई उनका क्या। जो कारोबार और कारखाने बंद हो गए उनका क्या। जिनकी नौकरी चली गई। जिनकी आमदनी घट गई, उनका क्या। इस समय पीएम की खुशी का कोई मतलब रह जाता है क्या। किस काम का ऐसा फैसला और इस तरह का ज्ञान का होना।
यही नहीं सरकार ने अखबारों में एक पेज का विज्ञापन देकर जीएसटी के दो स्लैब करने के फैसले को देश को ऐतिहासिक दिवाली उपहार बताया है। अपनी अज्ञानता को ऐतिहासिक दिवाली उपहार बताया जा रहा है। इतना ही ऐतिहासिक था तो पहले क्यों लागू किया था।
कहा तो यह गया था कि एक देश में एक कर प्रणाली लागू होगी। यही कहकर जीएसटी को लागू किया गया। हकीकत में ऐसा हुआ नहीं। 5,12,18,28 का चार स्लैब बनाकर देश के नागरिकों का खून चूस लिया गया। अब जब लोगों के शरीर में जीने भर का भी खून नहीं रह गया है तो राहत दी जा रही ताकि लोग जिंदा रह सकें। उस पर ऐतिहासिक दिवाली उपहार बताकर एहसान लादा जा रहा है।
जीएसटी की जब चार दरें थीं तब भी पेटोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया नहीं गया। एक देश एक कर का नारा यहां पर भुला दिया गया। तब भी और अब भी। अब भी यह पदार्थ जीएसटी के दायरे में नहीं हैं। इन पर तमाम तरह के कर लगाकर आम आदमी से पैसा वसूला जा रहा है।
अधिक कर वसूलने से वस्तुओं के दाम महंगे हो जाते हैं। आम आदमी की क्रय क्षमता से वस्तुएं बाहर हो जाती हैं तो वह उपभोग बंद कर देता है या कम कर देता है। इसका असर उत्पादन करने वालों पर पड़ता है। उत्पादन करने वाले का उत्पादन बाजार में नहीं बिकेगा तो वह उत्पादन कम कर देगा। एकदम नहीं बिकेगा तो उसे उत्पादन बंद करना पड़ेगा। इससे बेरोजगारी बढ़ती है। अधिक कर वसूली का दुष्कचक्र इस तरह काम करता है और देश को तबाह करता है।
एसबीआई रिसर्च के मुताबिक कर दरों में कटौती से सकरारी खजाने को सालाना औसतन 85 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा। वहीं, इससे खपत में एक लाख 98 हजार लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि कर दरों को कम करने से कितना लाभ होने वाला है। करीब दो लाख करोड़ रुपये की खपत बढ़ने का मतलब है कि बाजार में वुस्ताओं के दामों में कमी होगी। इससे उनकी मांग बढ़ेगी। फिर उनका उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार मिलेगा। रोजगार मिलेगा तो आय बढ़ेगी। आय बढ़ेगी तो आदमी खर्च भी करेगा। जिसका लाभ देश की अर्थव्यवस्था को होगा। अब यदि ऐसा होगा तो जाहिर है कि पहले गलत फैसला लिया गया था, जिसे बहुत देरी से सुधारा गया है।
अब भी कुछ वस्तुओं पर 18 फीसदी की कर दर ज्यादा है। 5 और 12 फीसदी की दो कर दर होनी चाहिए। इसमें पेटृोल और डीजल को भी शामिल किया जाना चाहिए। यह सही है कि जीएसटी लागू होने से पहले देश में कर ढांचा जटिल था। कर चोरी खूब होती थी। लेकिन कई वस्तुओं पर इतनी कर की दर नहीं थी। कई पर तो कर लगता ही नहीं था। रही बात कर चोरी की तो वह अब भी हो रही है।
जीएसटी से पहले विनिर्मित वस्तुओं पर केंद्रीय उत्पादन शुल्क लगता था। राज्य सरकारें वैट लगाती थीं। एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री के लिए माल ले जाने और ले आने पर केंद्रीय बिक्री कर लगता था। कुछ राज्यों पर शहरों में वस्तुओं की आवाजाही पर प्रेवश कर लगता था। लग्जरी वस्तुओं पर लग्जरी कर लगता था। मनोरंजन सेवाओं पर मनोरंजन कर लगता था। 15 से अधिक तरह के कर लगते थे। इससे पूरी प्रणाली बहुत उलझी हुई थी। यही सब सोचकर जीएसटी को लाया गया। लेकिन पहले वुस्तुओं पर कर निर्धारण आम आदमी को देखते हुए किया जाता था। जीएसटी में इस नजरिए की अनदेखी की गई। धनी के बराबर ही आम आदमी भी लगभग हर वस्तु पर कर देने लगा। जोकि न्यायसंगत नहीं कहा जाएगा।