क्या समाज बनाया है हम “स्कूली शिक्षितों” ने शिक्षा के नाम पर..
सिद्धार्थ ताबिश
गोरखपुर में नर्सरी में पढ़ने वाली एक बच्ची जब स्कूल जा रही थी तो उसने पापा से ज़िद की कि उसे डीएम साहब से मिलना है और वो अपने पापा को लेकर डीएम ऑफिस पहुंच गई और वहां जाकर उसने डीएम से कहा कि मुझे आपकी तरह डीएम बनना है
इस घटना से भावुक “स्कूली शिक्षित” लोग भाव विभोर होकर वाह वाह कर रहे हैं.. क्योंकि इन सबके घरों का यही माहौल होता है.. बच्चों को डीएम, डॉक्टर, इंजीनियर बनाने का इनका सपना होता है और इसे ये शिक्षा बोलते हैं।
जब डीएम ने उस बच्ची से पूछा कि तुम्हें मेरे जैसा क्यों बनना है तो उसने कहा कि “घर में सब लोग मुझे कहते हैं कि तुम्हें डीएम बनना है”.. ये घर का माहौल है जो नर्सरी की बच्ची को डीएम बनने को बोल रहा है.. अब अगर आगे चलकर इस बच्ची को समझ आ गई और वो अपने दिमाग से चलने और सोचने लगेगी और कहीं वो ये निर्णय कर बैठी कि उसे बस “बांसुरी” बजाना है जीवन में तो इन घर वालों का दिल टूट जायेगा, इनके सपने टूट जाएंगे, ये दूसरों से कहेंगे कि हमने क्या क्या सपना देखा था मगर इसने सब चकनाचूर कर दिया.. बचपन में कितनी समझदार थी कि डीएम से मिलने पहुंच गई थी.. पेपर में भी इसका नाम आ गया था।
सोचिए थोड़ा कभी कि आपके घरों के बच्चे क्यों नहीं प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, मूर्तिकार, पेंटर, बांसुरी वादक या ऐसा कुछ बनना चाहते हैं? उन्हें क्यों डॉक्टर, डीएम और इंजीनियर वगैरह ही बनना होता है?
मेरे एक मित्र का बच्चा डॉक्टर बनने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है, इम्तेहान पर इम्तेहान दिए जा रहा है.. मैने जब अपने मित्र से पूछा कि “इसे डॉक्टर ही क्यों बनना है?”.. वो मुझ से कहने लगा कि “यार ये उसी की मर्ज़ी है, हम लोगों ने बिल्कुल भी उसे कभी डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित नहीं किया”.. तो मैने अपने मित्र से कहा कि ” क्या तुमने सोचा है कि तुम्हारा लड़का बांसुरी वादक क्यों नहीं बनना चाहता, जबकि इसे म्यूजिक का बड़ा शौक है?” तो मेरे मित्र सोचने लगे.. उन्होंने फिर कहा कि ये उनके लड़के की मर्ज़ी है, उनकी नहीं।
आप के घरों में जो माहौल होता है बच्चे वही करते हैं.. आपको लगता है कि आप अपने बच्चों पर कोई दबाव नहीं बनाते हैं, मगर आप ने ऐसा भयंकर मनोवैज्ञानिक दबाव बचपन से बना रखा होता है कि आपके बच्चे आपके अपने “सपनो” और आपकी अपनी “महत्वाकांक्षाओं” से अलग कुछ सोच नहीं पाते हैं.. वो बेचारे ये समझते हैं कि उन्हें डॉक्टर बनना है जबकि ये उनका नहीं आपका सपना होता है।
सोचिए कोई क्यों डॉक्टर बनना चाहेगा? 24 घंटे मरीज़ से घिरे रहना, बीमारी, गंदगी, उल्टी, मवाद, गू, मूत्र इत्यादि देखना और उसी में जीवन बिताना.. आपके आसपास कभी कोई स्वस्थ औरा बन ही नहीं पाता है.. जिस अस्पताल में लोग जाने से घबराते हैं और दुआ करते हैं कि भगवान उन्हें कभी अस्पताल न पहुंचाएं, वहां आपको 24 घंटे और सारी उम्र रहना है.. ये कोई ड्रीम जॉब है? ये कुछ है ऐसा जिसे करने की लालसा किसी के मन में “प्राकृतिक” रूप से जन्म ले? नहीं.. प्राकृतिक रूप से आप के भीतर डॉक्टर बनने की चाहत कभी नहीं आती है।
प्राकृतिक रूप से आप इंजीनियर भी बनना नहीं चाहते हैं.. कोई बच्चा कभी भी इंजीनियर बनने की चाहत नहीं रखता है और न ही वो डीएम या एसडीएम बनना चाहता है.. अगर उसने दुख, गरीबी, परेशानी, उत्पीड़न का सामना न किया हो तो वो कभी भी इतनी ऊंचाई पर जा कर पूरी जिले को कंट्रोल करने की चाहत नहीं रखेगा।
अगर आपके घर के बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और डीएम बनने की लालसा रखते हैं तो आप अपने भीतर झांकिए और सोचिए कि आपने ऐसा क्या मानसिक और मनोवैज्ञानिक प्रदूषण अपने घर में फैला रखा है कि आपके बच्चे अपने दिमाग से सोच ही नहीं पा रहे हैं.. क्यों आपके भीतर इतनी “कुंठा” और “कमी” पल रही है कि आपको अपने बच्चों को ऊंचे ऊंचे पदों पर ही देखना है? मनोवैज्ञानिक रूप से आप इतने कमज़ोर और लूज़र क्यों हैं और क्यों बुढ़ापे में आप डीएम की गाड़ी और बंगले में रहने का सपना देखते हैं? क्योंकि ये सब आपकी लालसाएं होती हैं, आपके बच्चों की कभी नहीं।
