साच्ची बात कहण खात्तर जिगरा चहिये सै
मंगत राम शास्त्री
हांसण खात्तर मनवा बेफिकरा चहिये सै।
सुंदर होण तईं हिरदा सुथरा चहिये सै।।
कहणे को तो बहुत फिरैं से मुंह नै बाएं
साच्ची बात कहण खात्तर जिगरा चहिये सै।
आज तेरै सिर फोड्या कल मेरै फोडै़गा
उसनै तो हर रोज नया ठिकरा चहिये सै।
बहर निभावण भर तै गजल खरी नी होन्दी
मकसद पूरा करदा हर मिसरा चहिये सै।
बाग जलै पर कह माली, पीले फूल खिले
झूठ चलाण तई माणस नुगरा चहिये सै।
मत कर यार गुमान बड़ा होवण का,सुणले !
सागर होण तई कतरा कतरा चहिये सै।
इब तो सिटिजनशिप नै सिद्ध करण ताहीं भी
दाद्दे पड़दाद्यां तक का सिजरा चहिये सै।
शक्ल छुपा धीयां नै पिट्टै जो कोलिज म्हं
उनका मुंह काला गल म्हं कचरा चहिये सै।
‘खड़तल’ सबनै थ्यावै न्या-भा, इस खात्तर तो
इस सिस्टम म्हं परिवर्तन सगरा चहिये सै।
