एक दिन ऐसा ही हूं
एक दिन ऐसा ही हुआ
मैं हुआ, दर्पण हुआ, फ़ासला हुआ
कहने को तो वहीं मैं, वहीं दर्पण
लेकिन, उसी एक दर्पण में फ़ासला हुआ
मैं वही, मगर वही, वैसा ही नहीं
जैसाकि था कल, वैसा नहीं हुआ
एक दिन ऐसा ही हुआ।
*2.अंतिम हवा नहीं होगी अंतिम*
ऊपर की ऊपर
और नीचे की नीचे ही रह जाएँगी साँसें
अंतिम हवा चलेगी अंतिम जीवन की
मैं हो जाऊँगा शेष, कुछ भी रह नहीं पाऊँगा विशेष
वह मुझमें से बिखर जाएगा कहीं
दूसरों, तीसरों और अन्य अन्यों में
नए जीवन में, नए जीवन के लिए, नए जीवन की तरह
फिर-फिर जागते और जगाते हुए
वह मेरा अपना-सा अपना ही जीवन
कष्ट तो होंगे कई-कई बीच में
दुष्ट भी होंगे, कई-कई बीच में
दो-दो हाथ करेगा उनसे मेरा ही जीवन
जो तब होगा, अपना-सा अपनों में
वे जो होंगे, मेरे अपने मुझ जैसे ही
जब न रहूँगा मैं, रहेगा संसार वैसे ही
ऊपर से नीचे तक हर हाल ख़ुशहाल
अंतिम हवा नहीं होगी अंतिम।
*3. है जो सही-सही*
जो पाना नहीं चाहता हूँ, पा रहा हूँ
और जो किसी भी हाल में गाना नहीं चाहता हूँ, गा रहा हूँ
खिड़की, दरवाज़े खुले रखता हूँ सभी,
फिर भी मिलती नहीं है ताज़ा और साफ़ हवाएँ
करूँ क्या कि आए, उट्ठे एक भीषण तूफ़ान सभी के भीतर
और सभी कुछ उलट-पलट जाए इधर से उधर
और मिले सभी को सभी कुछ वह
है जो सही-सही।