(हिंदी के वरिष्ठ कवि और चिंतक असद ज़ैदी ने लिखा है- अपनी पसंद की कविताएँ दर्ज करना एक समानांतर पाठ तैयार करने और अपने से बाहर एक जीवन जीने की तरह है। दिसम्बर का उत्तरार्ध शुरू हुआ चाहता है। नया साल आने तक इस साल देखी, लिखी या याद आई कुछ कविताएँ यहाँ पेश हैं। यह कोई आधिकारिक या नुमाइन्दा चयन नहीं है, ज़्यादातर इत्तिफ़ाक़न है। बस कुछ ठिकानों से गुज़रने और इन कविताओं की सरासर ख़ूबी या उत्कृष्टता को रेखांकित करने की कोशिश है।।—असद ज़ैदी) उनकी पसंद को प्रतिबिम्ब मीडिया के पाठक भी पढ़ें। इसे हमने कवि, पत्रकार, चिंतक त्रिभुवन के फेसबुक वॉल से साभार लिया है। संपादक)
इस साल / सपना भट्ट
सपना भट्ट
॥ पानी के सिवा ॥
माँ गुड़ और रोटी बाँध कर देते हुए कहती
पीर सय्यदों की क़ब्र से पाँव बचा कर चलना
कहा करती कि परार साल
नदी में डूब कर मरा एक गड़रिया
मुझ पर रीझ गया था; तब से मैं ऐसी हूँ ‘क्याप’
पानी से बनी होगी मेरी पहली कोशिका
मन भी उन दिनों पानी ही था
स्थिर और सहिष्णु
पानी के सिवा सब सन्दिग्ध था जीवन में,
हृदय की सदाबहार वीरानी
पानी के सहचर्य से वसंत मे बदल जाती थी
उन दिनों
कोई प्रेमी होता तो
बस पानी से ईर्ष्या करता
पानी इकलौता दर्शक था
जिससे मेरी नग्न देह लजाती न थी
पानी के सिवा
मुझे कहाँ कुछ सूझता था !
गोधूलि में
मवेशियों की रम्भाहट से
ताल का पानी चौंकता था
बहुत दूर,
धार पार से माँ पुकारती थी
“ओ लाटी रे !
रुमुक पड़ीगे घौर आ”
पानी के तल से
उसकी जुड़वा आवाज़ आती थी…
