युवा पीढ़ी दक्षिणपंथ की कल्पित राजनीति और वामपंथ की जनपक्षधर राजनीति के अंतर के बेहतर तरीके से समझ रही
सुधीर राघव
JNU छात्र संघ चुनाव में चारों सीटों पर लेफ्ट का कब्जा हो गया है। दक्षिणपंथी ABVP का सफाया हो गया है। पिछली बार एक सीट आई थी, इस बार वह भी चली गई।
कभी जेएनयू में एबीवीपी का दबदबा बनाने के चक्कर में पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी पूरी दुनिया के शैक्षणिक जगत में बदनाम हो गई थीं। छात्रों को पुलिस से पिटवाया गया। आज भी दिल्ली हाईकोर्ट में 600 से ज्यादा केस जेएनयू से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते पहुंचते ही वर्षों बाद यह पता चलेगा कि इनमें कितने फेंक थे।
दक्षिणपंथी तो दक्षिणपंथी के संगे नहीं होते। विचारधारा के बहाव में जब स्मृति दुनिया में बदनाम हुईं तो पहले उनका मंत्रालय बदला गया और फिर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया।
जैसे देशभर में धनपशु हितैषी दक्षिणपंथी राजनीति का सब ओर महिममंडन कर देश की उद्यमशीलता और MSME को बर्बाद कर चीन से आयात करने वाले निपट लुटेरे, मूर्ख मुनाफाखोरों पर छोड़ा जा रहा है वह घातक है। चीन से आयात करने वाले इसलिए मूर्ख हैं क्योंकि वे भुगतान संतुलन को बिगाड़कर एक दिन पूरे देश को ले डूबेंगे।
दूसरी ओर लेफ्ट और सेंटरलेफ्ट की सारी राजनीतिक धारा जनपक्षीय उद्यम हितैषी मानी जाती है। वे जनता के मुद्दों की बात करते हैं, वंचितों की बात करते हैं।
दूसरी ओर दक्षिणपंथी राजनीति में जनता तो क्या इंसान ही मायने नहीं रखता। दक्षिणपंथी धर्म, नस्ल, जाति आदि इत्यादि की बात करते हैं, और चंद मुनाफाखोरों का हित साधते हैं।
जेएनयू के नतीजे बता रहे हैं कि युवा पीढ़ी दक्षिणपंथ की कल्पित राजनीति और वामपंथ की जनपक्षधर राजनीति के अंतर के बेहतर तरीके से समझ रही है। इसे आनेवाले समय में देश में मूर्खता का स्तर कम होने की आहट तो कहा ही जा सकता है।
जेएनयू के युवाओं की यह बारीक समझ दक्षिणपंथी मुनाफाखोरों और चोरों की नींद उड़ने वाली है। वह मूर्खता के अपने साम्राज्य को बचाने के लिए फिर किसी फेक अभियान में अरबों रुपए झोकेंगे। लोगों को लड़ाएंगे ताकि उनका ध्यान अपनी जरूरतों और अधिकारों पर न जाए। कुल मिलाकर दक्षिणपंथी राजनीति षड्यंत्र की राजनीति है।षड्यंत्र भी कभी कभी कामयाब हो जाते हैं।
सुधीर राघव के फेसबुक वॉल से साभार
