बिहार विधानसभा चुनाव
बिहार की बयार
चंचल
– बिहार में कौन जीत रहा है ? बतौर पत्रकार तुम्हारी क्या राय है ?
– पत्रकार को तीन “ पी “ से बचना चाहिए । “ पब्लिसिटी “ प्रिडिक्शन “ और “ पे रोल “ । अगर इस आदत से महरूम रहना तुम्हारी फ़ितरत में नहीं है तो घर दुआर बेच कर एक टोपी ख़रीद लो , कलम कुंयें में फेंक दो ।
– फ़लसफ़ा मत ठेलो ! बिहार की ज़मीनी हक़ीक़त बताओ ।
– आओ ! चलो मिल कर बिहार की जमीन का तापमान नापते हैं ।बिहार को बनारस से देखो । बनारस से वैशाली ।
– बनारस से क्यों ? पटना , आरा , बक्सर , छपरा से क्यों नहीं ?
– बुद्ध ने कहा है वैशाली को जानने के लिए बनारस जानना जरूरी है !
– बुद्ध कौन ?
– भारत वांग्मय का तार्किक फ़लसफ़ा जिसने दुनिया को नई दृष्टि दी । वह बुद्ध इसी भारत की जमीन का पैदावार है । वह बुद्ध पहला शब्द बनारस से उठाता है और वैशाली में आख़िरी वाक्य कह कर विदा हो लेता है ।
-कैसे चला जाय ?
– भारत को देखना हो और उसे समझने की ललक हो तो ट्रेन से घूमो और तीसरे दर्जे में । अब तीसरा दर्जा हटा दिया गया है पर “ सामान्य डिब्बा “ अब भी लगा है ।
– सामान्य डिब्बे की खूबियां ?
– यह बिल्कुल पाक साफ़ अछूत (आ ) डिब्बा है । इस डिब्बे को न राजनीति देख पाती है न क़लमकारों की खुर्दबीन का मुँह उधर हो पाता है , न संसद इस डिब्बे को जेरे बहा कर पाती है , न ही सड़क पर आवाज़ उठ पाती है क्यों कि यह सामान्य है । तुर्रा तो यह कि कम्बख़्त अब तो यह डिब्बा भी बोलना बंद कर दिया है । कभी इसी डिब्बे से प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन , प्रो हरीश खन्ना , रमा शंकर सिंह , देव व्रत मजूमदार , मोहर प्रकाश , मार्कण्डेय सिंह , रामविलास पासवान , लालू यादव , शिवानंद तिवारी , जगदानंद सिंह विश्वनाथ हलधर , सतपाल मलिक , श्यामकृष्ण पांडे
– बस कर यार , कोई एक जुमला सुना दे जिसने ये सब आ जाँय ?
– समाजवादी युवजन सभा वह नारा लगाती थी –
बापू लोहिया का फरमान
रेल का डिब्बा एक समान ।।
यह नारा केवल नारा भर नहीं था , गैरबराबरी के खिलाफ एक मुहिम था , इतिहास के संघर्षशील अध्याय का खुलासा था । आज का यह सामान्य डिब्बा महात्मा गांधी के भारत समझने का हथियार था । उस तीसरे दर्जे के डिब्बे का दर्शन आज पूरी दुनिया खोज कर देख रही है । बार बार । दुनिया का बड़ा फ़िल्म मेकर रिचर्ड एटनबरो जब “ गांधी “ फ़िल्म की संरचना शुरू की तो उसने एक बड़े पत्रकार लुई फ़िसर द्वारा लिखित “ द लाइफ़ ऑफ़ महात्मा गांधी “ को उठाया और लुई फ़िसर ने महात्मा गांधी को रेल के डिब्बे से बाहर फेंके जाने “ से उठाया है
– भाई वैशाली चलना है
– चलो “ सदभावना “ ( ट्रेन ) से चलते हैं सामान्य में चलना है
– क्यों ?
– वैशाली दो है और ठोंकोगे तो अनगिनत है , आज जिस वैशाली को देखते हो यह तो सियासी लकीरों का खेल है यह घेरा 1972 में खींचा गया है । हमे उस वैशाली को देखना और बतियाना है जो दुनिया को “ गणराज्य “ का तंत्र देता है । और वह वैशाली इसी सद्भावना के सामान्य डिब्बे में ठुँसा पड़ा मिलेगा ।
– टिकट ?
– सामान्य है । सामान्य में टिकट लेना या न लेना दोनों समान है ।
– टीटी आए तो
– अव्वल तो आएगा नहीं , आया भी वह मागेगा टिकट और यात्री मागेगा सवालों समस्याओं का जवाब । हल निकलेगा एक के पास टिकट नहीं दूसरे के पास जवाब नहीं । बस । ट्रेन चलती रहेगी । बहस बढ़ती रहेगी
– टिकट तो समझ आ गया लेकिन सवाल क्या होंगे ?
– जो लोकतंत्र में होता है
– मसलन ?
– टीटी पूछेगा- टिकट है ? वैशाली बोलेगा – लघुशंका हल्का होने के लिए कितने कंधे , कितनी गोद से होकर “मुत्ती घर “ पहुँचा जा सकता है , हुजूर ?
– यह कौन सा सवाल है
– राजनीतिक सवाल है हम इसी सवाल को हल करने बिहार की ज़मीनी हक़ीक़त तलाशने जा रहे है ।
– बिहार का फ़ैसला क्या होगा ?
– किसी से पूछ लो सब हाजीपुर जा रहे हैं
– ये भाई सुना जाय ! कई मुँह ऊपर उठ आए – सुनाया जाय !
– बिहार का सबसे मजबूत नारा क्या है इस चुनाव में ?
– ना रा ? बुड़बक हो का ये भाई ? नारा वारा कुछो नहीं है बस सीधे सीधे सरबो जाति का एक ही माँग है
– का माँग है ?
– वोट चो ड
– सामान्य डिब्बा चीख़ा – गद्दी छोर ।।
– हाजी पुर कब पहुँचेंगे ?
– बिहार में टाइम नहीं चलता
– हाजीपुर से वैशाली कैसे जाता जाय ?
– मुत्ती घर की तरफ़ से जवाब आया सुर में – चिठिया हो तो हर कोई बाँचे भाग न बाँचे कोय ! सजनवाँ “ बेल गाड़ी से पहुँचा जाय हीरामन टेंशन के बाहर मिल जाएगा। फेसबुक वॉल से साभार