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मंजुल भारद्वाज की कविता – कालचक्र के सफ़ों पर

कालचक्र के सफ़ों पर मंजुल भारद्वाज   सूर्य की रौशनी वसुंधरा की गति से चन्द्रमा की भांति शरीर की घटती…