अचानक हनुमान कूद की तरह उछलकर ऊपर आया मध्यवर्ग

अचानक हनुमान कूद की तरह उछलकर ऊपर आया मध्यवर्ग

मैनेजर पांडेय

प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पांडेय का मानना है “भारतीय समाज पिछले बीस वर्षों से आंधी की गति से पूंजीवाद और अंतरराष्ट्रीय पूंजी की गिरफ्त में जिस तरह आया है उससे बहुत सारी चीजें उलट-पुलट गईं. पूंजीवाद स्मृतियों को महत्व नहीं देता क्योंकि उसके अपने इतिहास की स्मृतियां इतनी भयावह हैं कि उनसे गुजरना गहरा अपराधबोध पैदा करता है. इसलिए पूंजीवाद हमेशा वर्तमान और भविष्य की चिंता करता है.

कुल मिलाकर पूंजीवाद के स्वभाव के अनुकूल ही राजनीति देश में चल रही है, जिसे मैं झूठ और लूट की राजनीति कहता हूं. एक संकट तो इस झूठ और लूट की राजनीति की वजह से है. इस अर्थव्यवस्था और राजनीति का असर सांस्कृतिक परिदृश्य पर पड़ रहा है, जिससे साहित्य और संस्कृति में भी अपने अतीत के प्रति कोई सच्चा लगाव दिखाई नहीं देता है और यदि कोई लगाव दिखाई भी देता है तो बाजार की दृष्टि से उपयोगी होने पर ही सामने आता है. खास तौर पर लोकभाषाओं का जीवन खतरे में है.

तीसरे भारत का मध्यवर्ग धीरे-धीरे विकसित हुआ मध्यवर्ग नहीं है, यह अचानक हनुमान कूद की तरह उछलकर ऊपर आया मध्यवर्ग है, इसलिए उसमें कोई संयम और सामाजिक चेतना नहीं है. चिंता की बात यह है कि भारत में संस्कृति का क्षेत्र अधिकांशतः मध्यवर्ग के दायरे में सीमित है और यह मध्यवर्ग ब्रिटिश राज के दिनों में जितना अवसरवादी था उतना ही आज भी अवसरवादी है. हिंदी में मुक्तिबोध ने जीवन भर अपनी कविता और लेखों में सबसे अधिक आलोचना मध्यवर्ग के अवसरवाद की थी.

अब वह आलोचना साहित्य से भी गायब हो गई है. हिंदुस्तान का मध्यवर्ग इस समय सेलीब्रेशन मतलब उत्सव मनाने की मानसिकता में है. इसलिए अवसरवाद को वह अवसरों की तलाश समझता है. इस सबके बावजूद इसी मध्यवर्ग में और उसके बाहर भी अब भी कुछ ऐसे लेखक व बुद्घिजीवी हैं, जिनमें सामाजिक चेतना है, मानवीय संवेदनशीलता है.” जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार

One thought on “अचानक हनुमान कूद की तरह उछलकर ऊपर आया मध्यवर्ग

  1. आप ने सारगर्वित लिखा है सर अच्छा लगा तबियत ठीक नहीं है. हमारे ओम सिंह अंकल की वजह से मै अच्छे लेख पढ़ पा रही हूँ.

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