एस. के. सिंगला – पाखंड के खिलाफ वैज्ञानिक समझ जीवन की मार्गदर्शक रही

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-60

एस. के. सिंगला – पाखंड के खिलाफ वैज्ञानिक समझ जीवन की मार्गदर्शक रही

सत्यपाल सिवाच

एस. के. सिंगला का जन्म 18 मार्च 1958 में हिसार जिले (अब भिवानी) के धनाना गांव में श्री दशरथमल और श्रीमती शान्ति देवी के यहाँ हुआ। वे चार भाई और पाँच बहनें हैं। वे आठवीं कक्षा तक गांव के स्कूल में पढ़े। नौवीं और दसवीं हिन्दू हाई स्कूल सोनीपत से की और 1975 में दसवीं कक्षा में मेरिट सूची में नाम आया। सन् 1975-78 में गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक झज्जर से डिप्लोमा किया। बाद में नौकरी के दौरान ए.एम.आई.ई. पास की।

डिप्लोमा करते ही वे तदर्थ आधार पर सिंचाई विभाग में सेक्शनल ऑफिसर (जे.ई.) नियुक्त हुए। अगस्त 1979 में हरियाणा स्टेट इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड में नियमित आधार पर सेक्शनल ऑफिसर नियुक्त हो गए। सन् 2004 में एस.डी.ओ. और 2015 में एक्स.ई.एन. पदोन्नत हुए। दिनांक 31 मार्च 2016 को एक्स ई एन पद से सेवानिवृत्त हुए।

सज्जन कुमार सिंगला 1984-85 में एच.एस.ई.बी. वर्करज यूनियन में सक्रिय हो गए। पहले वे यूनिट प्रधान बने। बाद में डिप्टी जनरल सेक्रेटरी और जनरल सेक्रेटरी भी चुने गए। जनरल सेक्रेटरी चुने जाने के आठ महीने बाद 2004 उनकी पदोन्नति एस.डी.ओ. पद पर हो गई। इसके चलते उन्हें नियमानुसार यूनियन का पद छोड़ना पड़ा। वे “शक्ति स्वर” हिन्दी मासिक के प्रकाशन में आर. सी. जग्गा, ओमप्रकाश शर्मा और धर्मपाल आदि के साथ सक्रिय सहयोगी रहे। वे भिवानी में रहते कामरेड ओमप्रकाश और कुलभूषण आर्य के संपर्क से वामपंथी विचारधारा और मार्क्सवाद के प्रभाव में आए। लगातार जहाँ भी काम किया वे इसी विचार से संचालित रहे हैं।

मेहनतकश वर्ग की हिमायत, कच्चे कर्मचारियों की लामबंदी, धर्मनिरपेक्षता, जातिवाद का विरोध और पाखंड के खिलाफ वैज्ञानिक समझ उनके जीवन की मार्गदर्शक बनी रही। वे कभी अपनी विचारधारा से विचलित नहीं हुए। भिवानी में रहते हुए उन्होंने सर्वकर्मचारी संघ के जिला सचिव और प्रधान का दायित्व प्रभावशाली ढंग से निभाया। वे स्वभाव से बेबाक हैं, निडर हैं और हौसले के साथ जटिल परिस्थितियों से निपटने में माहिर हैं। पुलिस ज्यादती अथवा गुण्डागर्दी के खिलाफ वे आक्रामक ढंग से भिड़ने में विश्वास रखते हैं।

इन्हीं तेवरों के चलते उन्हें बार बार दमन का सामना करना पड़ा है। वे लगभग पाँच-छह महीने तक निलंबित रहे। अलग अलग मौकों पर 8-9 एफआईआर दर्ज हुईं। सन् 1992 में पुलिस की बर्बर यातना झेलनी पड़ी। वे दो बार जेल में गए और सन् 1993 में नौकरी से बर्खास्त किए गए। उन्हें लगभग अढ़ाई साल तक ट्रांसफर करके दूसरी निगम में भेजा गया। एस.के. सिंगला ने कभी बल के आगे झुकना नहीं सीखा। भिवानी शहर में जनसंघर्ष समिति की काफी सक्रियता थी। कामरेड ओमप्रकाश उसके मुख्य किरदार और अध्यक्ष थे। एस.के. सिंगला इस समिति के सचिव रहे। बिजली बोर्ड के के.एल.शर्मा व्यावसायिक व राजनीतिक वैचारिक गाइड की तरह थे। बाहर विजयपाल सांगवान एडवोकेट का साथ मिला। सन् 1989 से सक्रिय रूप से वामपंथी आन्दोलन के मजबूत समर्थक बन गए। अब वे औपचारिक रूप से तो किसी भी संगठन में काम नहीं करते लेकिन सबके लिए उपलब्ध रहते हैं।

एस के सिंगला से मेरा परिचय संघर्षों के दौरान ही हुआ था। उन्हें खाड़कू किस्म का कार्यकर्ता माना जाता था। बिजली की यूनियन में प्रतिद्वंद्वी धड़े के दबंगों के सामने ऐसे ही कार्यकर्ता टिक पाते थे। इसलिए उन्हें शुरुआत में ही पहचान मिल गई। वे पुलिस से भिड़ जाने में भी संकोच नहीं करते थे। इसके चलते उन्हें कुछ मौकों पर निशाना बनाकर भी पीटा गया।

सिंगला जी का विवाह सन् 1981 में जीन्द निवासी सुश्री राजबाला से हुआ। उनकी तीन बेटियों में से दो डॉक्टर और एक सी.ए. है। एक बेटा है जो सी.ए. है। उनका मानना है कि अब पहले जैसा जज्बा दिखाई नहीं देता। कार्यकर्ता पदों के लिए झगड़ते हैं। हालात बहुत बदल गए हैं। शिक्षा की बहुत ज्यादा जरूरत है जिसका अभाव दिखाई देता है। (सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक : सत्यपाल सिवाच।

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