हरियाणा में शिक्षा का अधिकार: व्यावहारिक पहलू तथा स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सुझाव
डॉ. रामजीलाल
पृष्ठभूमि
भारत में, गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च, 1910 को विधान परिषद में “निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा” का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। वर्ष 2002 के 86वें संशोधन अधिनियम ने बाद में संविधान में अनुच्छेद 21(A) जोड़ा, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम( 2009) 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ. भारत को सार्वभौमिक शिक्षा लागू करने में 100 वर्ष लग गए।
हरियाणा में स्कूलों की कुल संख्या 23,924 है । इनमें 14,338 सरकारी स्कूल ,8499 प्राइवेट स्कूल , तथा 707अन्य स्कूल हैं। हरियाणा के सरकारी स्कूलों की तीन श्रेणियां—प्राथमिक स्कूल,माध्यमिक स्कूल तथा माध्यमिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं। भारत सरकार के उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष कुमार ने हरियाणा भाजपा के राज्यसभा सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीपी वत्स के अतारांकित प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा के पिछड़े खंडों में 139 सीबीएसई पैटर्न वाले अंग्रेजी माध्यम स्कूल, 1418 अंग्रेजी माध्यम वाले बैग-मुक्त प्राथमिक स्कूल और 36 आरोही मॉडल स्कूल हैं। इनके अतिरिक्त कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय,सैनिक स्कूल हैं.केंद्र की पीएम-श्री योजना के तहत हरियाणा प्रदेश में 299 प्राइम मिनिस्टर स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम श्री) हैं। जबकि पूरे भारत में यह संख्या 13070 है। इन स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल लैब, आईसीटी अवसंरचना, लाइब्रेरी ,साइंस लैब, मूल्य आधारित शिक्षा आदि जैसी सुविधाएं हैं।
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई+) 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार 23,494 निजी और सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगभग 57.8 लाख हैं। हरियाणा के सभी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या लगभग 2.6 लाख है।
निजी स्कूल :8,499
हरियाणा में 8,499 प्राइवेट स्कूल हैं, जिन्हें साफ़ तौर पर तीन कैटेगरी में बांटा गया है। पहली कैटेगरी में वे मान्यता प्राप्त स्कूल हैं जो ज़रूरी स्टैंडर्ड पूरे करते हैं। दूसरी कैटेगरी में वे मान्यता प्राप्त स्कूल शामिल हैं जिन्हें सरकारी मदद मिलती है, कुल चार। तीसरी कैटेगरी में वे स्कूल हैं जिन्हें मान्यता नहीं मिली है, जिनकी संख्या 1,032 है। इन मान्यता नहीं मिले स्कूलों को सरकार ने स्टूडेंट्स को 2025 के एग्जाम में बैठने की इजाज़त दी है। इसके अलावा, वे अपने स्टूडेंट्स को एग्जाम में आसानी से बैठने के लिए मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन दे सकते हैं। उन्हें हर साल लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं, साथ ही ज़िला अधिकारियों और शिक्षा मंत्रालय के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं, जिसकी वसूली छात्रों से फीस के रूप में की जाती है। हरियाणा के 8499 प्राइवेट स्कूलों की तीन श्रेणियां —प्राथमिक स्कूल, माध्यमिक स्कूल तथा माध्यमिक सीनियर सेकेंडरी हैं।
शिक्षा अधिकार कानून और हरियाणा सरकार के नियम 134A
हरियाणा सरकार के नियम 134A के तहत, प्राइवेट स्कूलों में नर्सरी से क्लास फर्स्ट तक शिक्षा अधिकार कानून के तहत व क्लास 2 से 12 तक 134ए के तहत गरीब बच्चों के नामांकन के लिए निजी स्कूलों को अनुदान दिया जाता है। सरकार इस नियम का ढिंढोरा तो पीटती है, लेकिन सरकार और उसके उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही की हकीकत तब उजागर होती है जब हरियाणा प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के एक प्रतिनिधि मंडल ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को रोष प्रकट करते हुए बताया कि शैक्षिक वर्ष 2015-16 से वर्ष 2025-26 तक के दस वर्षों के बकाया ₹600 करोड़ का आवंटन किया जाना चाहिए।
यह आश्चर्यजनक तथ्य उजागर हुआ है कि हरियाणा सरकार ने वर्ष 2015-16 से वर्ष 2025-2026 तक की दस वर्षों की अवधि में 9वीं से 12वीं कक्षाओं की फीस का निर्धारण नहीं किया व पोर्टल बंद पड़े हैं। संक्षेप में प्रतिनिधिमंड़ल ने 600 करोड़ रूपए की बकाया राशि देने,फीस निर्धारित करने व पोर्टल को पुनः खोलने की मांगों को बार-बार उठाया। (दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़, 7 नवंबर, 2025, पृ.3).
सरकारी स्कूलों की संख्या में 29 प्रतिशत गिरावट बनाम निजी स्कूलों की संख्या में 12 प्रतिशत की वृद्धि
भारत के अन्य राज्यों की तरह, हरियाणा में भी सरकारी हाई स्कूलों की संख्या में गिरावट आई है और निजी स्कूलों की संख्या में वृद्धि हुई है। वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, हरियाणा ने, वर्ष 2025 में एक आरटीआई क्वेरी का जवाब देते हुए लिखा कि वर्ष 2018 से वर्ष 2025 तक सात साल की अवधि में सरकारी हाई स्कूलों की संख्या में काफी गिरावट आई है। सरकारी हाई स्कूलों की संख्या वर्ष 2018 में 1,207 से घटकर वर्ष 2025 में 858 हो गई। जबकि हरियाणा में निजी हाई स्कूलों की संख्या वर्ष 2018 में 1,877 से बढ़कर वर्ष 2025 में 2,096 हो गई। अन्य शब्दों में हाई स्कूलों की संख्या में 29 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि निजी स्कूलों की संख्या में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
सरकारी हाई स्कूलों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण अपग्रेडेशनहै। परिणामस्वरूप, सन्2018 में 2,110 सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय थे। सन्2018 से सन् 2025 तक अपग्रेडेशन के बाद, यह संख्या बढ़कर सन् 2025 में 2,522 हो गई है। उधर दूसरी ओर, सन् 2018 में 1,979 निजी स्कूल थे, जबकि सन् 2025 तक यह संख्या बढ़कर 4,057 हो गई।यह वृद्धि दो गुणा से अधिक है। दूसरे शब्दों में, सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों की संख्या में केवल 412 की वृद्धि हुई, जबकि 2,078 निजी विद्यालय और खुल गए।(The Tribune, November 11, 2025)
एकल-शिक्षक विद्यालय:
सन् 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 1,04,125 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जहाँ प्रत्येक विद्यालय में केवल एक शिक्षक है। यह संख्या 2016-17 शैक्षणिक वर्ष में 92,275 से बढ़कर अब 1,04,125 हो गई है। शैक्षणिक वर्ष 2024-2025 के लिए एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE+) की रिपोर्ट बताती है कि लगभग 3.386 मिलियन छात्रों का प्रबंधन प्रत्येक विद्यालय में एक ही शिक्षक द्वारा किया जाता है. उत्तर प्रदेश में 9,508 एकल-शिक्षक विद्यालय व दिल्ली में 771 हैं . हरियाणा में शैक्षणिक सत्र वर्ष 2023 -24 में 867 एकल शिक्षक स्कूल थे व इनमें विद्यार्थियों की संख्या में, 40,828 थी। परंतु शैक्षणिक सत्र वर्ष 2024- -25 में एकल शिक्षक स्कूलों की संख्या ऊंची छलाग लगा कर 1066पहुंच गई तथा इनमें 43,400 विद्यार्थी ‘’शिक्षा’’ ग्रहण कर रहे हैं।
शिक्षा का मूल उदेश्य विद्यार्थियों का सर्वागीण विकास करना है.क्या एकल शिक्षक स्कूलों में यह संभव है?. क्या वह सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और उत्कृष्ट शिक्षा दे सकता है? क्या वह सभी विषय पढ़ा सकता है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर न में है, क्योंकि एक शिक्षक सामाजिक विज्ञान,गणित,विज्ञान,,संस्कृत,पंजाबी,हिंदी,अंग्रेजी इत्यादि को नहीं पढ़ा सकता।
शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ:
सरकार द्वारा 36 ऐप और पोर्टल लागू किए जाने के कारण, उन पर गैर- शैक्षणिक कार्यों का बोझ बढ़ता जा रहा है. एक जानकारी के अनुसार, स्कूलों में एक शिक्षक को 100 से ज़्यादा शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कार्य करने पड़ते हैं. अगर वह उन कार्यों को सिर्फ़ स्कूल में अपनी ड्यूटी के दौरान ही पूरा करता है, तो बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, इसलिए उसे घर पर ही समय बिताना पड़ता है, जिससे वह अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ ठीक से नहीं निभा पाता। अगर वह छुट्टी पर चला जाता है या सरकारी काम से ड्यूटी पर चला जाता है, तो स्कूल पर ताला लग जाता है। इस समय हरियाणा के सभी एकल -शिक्षक स्कूलों के43,400 बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं, जो कि संवैधानिक अधिकार का सरासर उल्लंघन है.
शिक्षकों की कमी : शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक रिक्तियां:21 हजार से अधिक
हरियाणा में स्वीकृत शिक्षकों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या लगभग 115,325 है.इनमें से, मार्च 2025 तक लगभग 99,666 पद भरे जा चुके थे .इसके बावजूद भी राज्य भर में {प्राथमिक (पीआरटी: 2,557 रिक्तियां ), प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी: 4,583 रिक्तियां) और स्नातकोत्तर (पीजीटी 8,519 रिक्तियां)} लगभग 15,659 पद रिक्त रह गए . इतना ही नहीं, हरियाणा के स्कूलों में हेड मास्टर के 157 पद, प्रिंसिपल के 574 पद, क्लेरिकल स्टाफ के 686 पद और क्लास 1V के 3254 पद खाली हैं। इस प्रकार शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक रिक्तियां 21 हजार से अधिक हैं।हरियाणा में बेरोजगार युवाओं की लगातार बढ़ती फौज के बावजूद भी स्कूलों और सरकारी विभागों में नियुक्तियां न करना जनहित में नहीं है.
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी की वजह से गांव के बच्चों, पेरेंट्स और स्कूल एजुकेशन कमेटियों के रिप्रेजेंटेटिव्स का गुस्सा अक्सर हद से ज़्यादा बढ़ जाता है, जिससे उन्हें स्कूल के गेट पर ताला लगाना पड़ता है. ऐसी घटनाएं अक्सर हेडलाइन बनती हैं. इसका एक बड़ा उदाहरण सरकारी मॉडल संस्कृति प्राइमरी स्कूल, बादलगढ़ (रतिया) है, जहां की कमी की वजह से 19 नवंबर, 2025 को मेन गेट पर ताला लगा दिया गया था. (दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़, 19 नवंबर 2025, पृ.3)
जीरो शिक्षक एवं जीरो एडमिशन स्कूल: 487 एवं 294
वर्तमान शैक्षणिक सत्र वर्ष 2025-26 में 6 मार्च 2025 को प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार हरियाणा के सरकारी 487 प्राथमिक स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। उदाहरण के लिए, शिक्षकों के बिना स्कूलों की संख्या क्रमशःयमुनानगर 79, भिवानी 46, पंचकूला 45 ,अंबाला 41, और सिरसा 38 हैं. वर्तमान शैक्षणिक सत्र वर्ष 2025-26 में 294 जीरो एडमिशन स्कूल हैं . अर्थात एक भी एक भी विद्यार्थी ने दाखिला नहीं लिया. उदाहरण के लिए, छात्रविहीन स्कूलों की संख्या क्रमशः, यमुनानगर 32, सिरसा 23, भिवानी,22, अंबाला ,22 और पंचकूला 9 हैं.( द ट्रिब्यून, चंडीगढ़, 4 मार्च 2025 ).
वर्ष 2022 में, हरियाणा सरकार ने 25 से कम बच्चों की संख्या वाले 292 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया. हमारा मानना है कि स्कूलों को बंद करने के बजाय, बच्चों के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करते हुए जनहित में सुधार आवश्यक हैं.
औसत शिक्षक-छात्र अनुपात में अंतर:
इन एकल-शिक्षक विद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात में काफ़ी भिन्नता है, एक छात्र पर एक शिक्षक से लेकर एक शिक्षक पर 96 छात्रों तक शिक्षक-छात्र अनुपात है,. उदाहरण के लिए, बिहार में शिक्षक-छात्र अनुपात सबसे ज़्यादा 1: 96 है, उसके बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है जहाँ यह अनुपात 1: 70 है। इसके विपरीत, केरल और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में यह अनुपात काफ़ी कम है, जो आमतौर पर प्रति शिक्षक 10 से 15 छात्रों के बीच है. आर टी ई के अनुसार शिक्षक-छात्र अनुपात 1:22 को आदर्श माना जाता है।
हरियाणा का समग्र औसत शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के अनुसार प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:30 और उच्च प्राथमिक स्कूलों 1: 35 होना चाहिए. कुल मिलाकर शिक्षक -छात्र अनुपात I: 28 है. प्राइमरी क्लास से लेकर12वीं क्लास शिक्षक- छात्र अनुपात –प्राथमिक स्तर 1:26 उच्च प्राथमिक (छठी-आठवीं) 1:19 ,माध्यमिक (नौवीं-दसवीं) 1:17 ,उच्च माध्यमिक (ग्यारहवीं-बारहवीं) 1:27 है .प्राइमरी क्लास से लेकर12वीं क्लास तक भी शिक्षक- छात्र अनुपात में अंतर है परंतु ग्रामीण क्षेत्रों तथा एकल शिक्षा स्कूलों में शिक्षक- छात्र अनुपात बहुत अधिक है।
हरियाणा में स्कूली शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव:
हरियाणा में स्कूली शिक्षा में सुधार हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
प्रथम, समान शिक्षा मानक लागू करें:सभी सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में एक जैसी शिक्षा, एक ही शिक्षण माध्यम, एक जैसी परीक्षाएँ, एक जैसा पाठ्यक्रम होना चाहिए और सभी स्कूल हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड [भिवानी] से संबद्ध होने चाहिए.
दूसरा, शिक्षा के व्यावसायीकरण पर नियंत्रण :शिक्षा के व्यावसायीकरण को नियंत्रित करने के लिए, निजी स्कूलों को छात्रों से ली जाने वाली फीस और अन्य धनराशि पर विवेकपूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए. कई निजी स्कूल संचालक कोचिंग सेंटर भी चलाते हैं या उनसे संबद्ध हैं. शिक्षा अधिकारियों की नाक के नीचे छात्रों का स्कूलों में नामांकन होता है. कक्षा 11 और 12 के छात्र अक्सर स्कूल से अनुपस्थित रहते हैं और परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर जाते हैं. इन छात्रों को “डमी छात्र” कहा जाता है।
इससे बोझ दोगुना हो जाता है. एक ओर, वे स्कूल फीस देते हैं और दूसरी ओर, कोचिंग सेंटर की फीस भी देते हैं. ये ‘डमी छात्र’ चंडीगढ़, दिल्ली, कोटा और स्थानीय स्तर पर स्थापित कोचिंग सेंटरों में परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जबकि स्कूलों में उनका नामांकन केवल परीक्षा देने तक ही सीमित है। कोचिंग सेंटरों में पढ़ाई के दौरान मिलने वाला हतोत्साहन इतना गंभीर अवसाद पैदा कर सकता है कि बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं और आत्महत्या करने की घटनाएं अखबारों की सुर्खियाँ बन जाती है. ‘डमी छात्रों’ के नामांकन पर रोक लगाई जानी चाहिए.
तीसरा, प्राइवेट स्कूल के टीचरों के लिए समान वेतन व सुविधाएं सुनिश्चित करें:निजी स्कूलों के शिक्षकों को सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के समान वेतन और अन्य सुविधाएँ मिलनी चाहिए क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(डी) के अनुसार, सभी पुरुषों और महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए. यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के संवैधानिक अधिकार से जुड़ा है.
चौथा, सरकारी स्कूलों का आधुनिकीकरण:सभी सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने के लिए आधुनिक शिक्षण पद्धतियाँ, बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट स्कूल आदि होने चाहिए. वर्तमान में, कुछ सरकारी स्कूलों में आधुनिक सुविधाएँ हैं जबकि अधिकांश में नहीं हैं। यही कारण है कि निजी और सरकारी स्कूलों के बीच डिजिटल खाई बढ़ती जा रही है, जिसका असर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और हाशिए पर रहने वाले परिवारों के बच्चों पर पड़ रहा है। अतःस्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल लैब, आईसीटी अवसंरचना, लाइब्रेरी ,साइंस लैब, मूल्य आधारित शिक्षा आदि जैसी सुविधाएं देना सरकार का प्रमुख दायित्व है. ग्रामीण और वंचित वर्ग के बच्चों को तकनीकी शिक्षा का लाभ लेकर डिजिटल समानता स्थापित करके शिक्षा की नीव को सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
पंचम, शिक्षक रिक्तियों पर शीघ्र नियुक्ति: शिक्षक- छात्र अनुपात में संतुलन बनाने के लिएअध्यापकों की लगभग 15,659 रिक्तियों को शीघ्र भर्ती की जाए ताकि शिक्षा के अधिकार को उचित और संतुलित तरीके से लागू करके सरकारी स्कूलोंकी विश्वसनीयता को बढ़ावा देकर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान की सके और सरकारी स्कूलों से ऩिजी स्कूलों नामांकित होने के पलायन को रोका जा सके।
छठा, परीक्षाओं को नकल -मुक्त करें:गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सुधार के लिए, परीक्षाओं में नकल पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी चाहिए, जिससे वे अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बन सकें।
सातवां, शिक्षकों के प्रोफेशनल डेवलपमेंट में मदद करें: निजी और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को अपनी योग्यता बढ़ाने व उच्च डिग्री हासिल करने के लिए सवेतन अवकाश दिया जाना चाहिए. शैक्षणिक प्रक्रिया में शिक्षक -केंद्रित दृष्टिकोण अपनाकर शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ानी चाहिए.
आठवां, शिक्षा में भ्रष्टाचार रोकें: शिक्षा विभाग में, स्कूलों से लेकर शिक्षा मंत्रालय तक, भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं. इसलिए, इस प्रचार को रोकने और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए, भ्रष्टाचार में संलिप्त कर्मचारियों को कानून के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए।
नौवाँ, शिक्षा के राजनीतिकरण को रोकें: वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि सत्ताधारी दल से जुड़े व्यक्तियों को शिक्षा निदेशालय और विभाग से समारोहों के लिए आवेदन प्राप्त होते हैं. हैरानी की बात है कि शिक्षा निदेशालय, पंचकूला ऐसे आवेदनों को स्कूलों और कॉलेजों में कार्यक्रमों की तैयारी के आदेशों के साथ अग्रेषित करता है। जिला शिक्षा अधिकारी प्रधानाचार्यों को निर्देश जारी करते हैं कि वे छात्रों को जिला स्तरीय पदयात्राओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें. शिक्षाविदों का मानना है कि इससे शिक्षा का राजनीतिकरण होता है, जिससे शिक्षक और छात्र अपने मूल कार्यों से विचलित होते हैं. यह प्रचलन बंद होना चाहिए।
दसवाँ, वैज्ञानिक सोच और संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा : बच्चों को पाठ्यक्रम और व्याख्यानों के माध्यम से भारतीय संविधान के तहत दी गई वैज्ञानिक सोच और मूल्यों से अवगत कराया जाना चाहिए.संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में कहा गया है कि वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और अन्वेषण एवं सुधार की भावना विकसित करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है. संविधान की प्रस्तावना में निहित समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता के सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
ग्यारहवां, जापानी स्कूली शिक्षा प्रणाली से सीखें: प्राथमिक स्तर पर हमें जापानी स्कूली शिक्षा प्रणाली से भी सीखना चाहिए. जापानी स्कूलों में बच्चों को परीक्षाओं की कड़ी प्रतिस्पर्धा का प्रशिक्षण देने के बजाय, उन्हें भविष्य का इंसान और नागरिक बनाने पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है. जापान में स्कूली स्तर पर, छात्रों को भावनात्मक जागरूकता, स्कूल की साफ़-सफ़ाई, टीम वर्क, प्यार से जीना , सहानुभूति, सहयोग, दया, अनुशासन, कड़ी मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई, सामाजिकता, मिल-जुलकर रहने और अन्य मूल्यों की शिक्षा देते हैं. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के प्रमुख शहरों – हिरोशिमा और नागासाकी पर 6 अगस्त और 7 अगस्त को परमाणु बम गिराए गए, जिससे क्रमशः 1,40,000 और 74,000 लोग मारे गए. इतनी भयंकर तबाही के बावजूद, इसी शिक्षा प्रणाली के कारण, जापान आज औद्योगिक, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में विश्व के अग्रणी देशों में से एक है.
बारहवाँ, शिक्षा के केरल मॉडल का विश्लेषण :हरियाणा सरकार के द्वारा शिक्षा के केरल मॉडल का विश्लेषण करके हरियाणा की परिस्थितियों के अनुकूल लागू करने का प्रयास करना चाहिए.
तेरहवां,शिक्षक-छात्र अनुपात पर ध्यान दें: यह समझना ज़रूरी है कि ग्रामीण इलाकों और सिंगल-टीचर स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात बहुत ज़्यादा है, जिससे बराबरी का एक बड़ा मुद्दा बनता है जिस पर तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है.
चौदहवां, पढ़ाई सुरक्षित माहौल में हो:छात्रों में नशीली दवाओं के सेवन में वृद्धि, अनुशासनहीनता ,लड़ाई –झगड़े और छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार के मामले अखबारों की सुर्खियों में बढ़ रहे हैं. शिक्षण संस्थानों को ‘इंस्टीट्यूशन ऑफ स्कैंडल’ बनने से रोकना चाहिए ताकि छात्राएँ सुरक्षित वातावरण में शिक्षा प्राप्त कर सकें और उनके अभिभावक उन्हें स्कूल भेजने में संकोच न करें. दूसरे शब्दों में, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा सार्थक होना चाहिए.
.संक्षेप में, शिक्षा के व्यावसायीकरण पर आधारित नीतियों में बदलाव होना चाहिए और सभी बच्चों के लिए समान, और सार्वभौमिक शिक्षा होनी चाहिए. सभी स्कूलों में आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. हमारा उद्दघोष होना चाहिए ‘सबको शिक्षा एक समान, तभी विश्व गुरु बनेगा हिंदुस्तान’. इस उद्घोष को अभिभावकों,समाजसेवी संगठनों और पंचायती राज संस्थाओं के सहयोग से ही सार्थक बनाया जा सकता है।

लेखक- रामजी लाल
