प्रदीप मिश्र
अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा व मथुरा के लिए हेलीपोर्ट सेवा शुरू करेंगे। इस दौरान 100 करोड़ की सौगात से वाजपेयी के पैतृक गांव बटेश्वर में पर्यटक सुविधाओं का विकास किया जाएगा। एक समय बागियों के आतंक वाले चंबल से सटे बटेश्वर को लेकर तथ्य यह भी है कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की चर्चित कहानी ‘पंच परमेश्वर’ 1646 से जारी यहां के प्रसिद्ध पशु मेले के परिदृश्य में लिखी गई है। बटेश्वर में 101 शिव मंदिर तो हैं ही, जैन समाज का भी धर्मस्थल है।
नौ विधानसभा सीटों वाले आगरा जिले को विभाजित कर बाह-बटेश्वर को जिला बनाने की तैयारी 2019 में हुई थी। बाह, बटेश्वर और फतेहाबाद तहसील बनाई जानी थी। जिले का नाम अटल नगर प्रस्तावित था। इसके लिए राजस्व परिषद ने अक्तूबर 2018 में आगरा के डीएम से प्रस्ताव मांगा था। 16 अगस्त को वाजपेयी का देहांत हुआ था। पांच साल बाद भी वाजपेयी को समर्पित जिला नहीं बना, जबकि प्रदेश स्तर पर अटल बिहारी वाजपेयी चिकित्सा विश्वविद्यालय का नामकरण हो चुका है। अभी भी जिला बनाकर बीहड़ क्षेत्र के विकास को नई दृष्टि दी जा सकती है।
माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश 2026 में परिसीमन के बाद 94-95 संसदीय सीटों वाला राज्य हो जाएगा। यूपी में विधानसभा सीटें भी 403 से बढ़कर 475 से 480 तक हो सकती हैं। बावजूद इसके प्रदेश में जिलों की मौजूदा संख्या 75 ही है। आगरा, आजमगढ़, बिजनौर, बरेली, जौनपुर, प्रयागराज, लखनऊ और लखीमपुर खीरी जिलों में दो-दो लोकसभा सीटें हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से लखीमपुर खीरी सबसे बड़ा जिला है। नेपाल के सीमावर्ती जिले में विधानसभा की आठ सीटें हैं। गोला गोकर्णनाथ, मोहम्मदी और पलिया को जिला बनाने की मांग प्रायः उठती रहती है। पलिया को जिला बनाने के लिए 2017 में सरकार को रिपोर्ट भेजी गई थी। पलिया जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर है।
गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी कहा जाता है। यहां कॉरिडोर बनाया जा रहा है। इसके पड़ोसी नौ विधानसभा सीटों वाले सीतापुर जिले के नैमिषारण्य में भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था। महर्षि दधीच ने अपने शत्रु देवराज इंद्र को अपनी अस्थियां यहीं दान दे दी थीं। पहली बार सत्यनारायण की कथा यहां कही गई थी। यहां चक्रतीर्थ कॉरिडोर बनाया जा रहा है। नैमिषारण्य को जिला बनाने की मांग भी वर्षों पुरानी है। तर्क दिया जाता है कि सीतापुर जिले की सिधौली और मिश्रिख वगैरह और आठ विधानसभा सीटों वाले हरदोई जिले के निकटवर्ती क्षेत्रों को मिलाकर नया जिला बनाया जा सकता है।
आजमगढ़ में 10 विधानसभा सीटें और आठ तहसील हैं। लालगंज लोकसभा क्षेत्र को जिला बनाने की मांग 2007 से हो रही है। 2020 में जब मामला विधानसभा में उठा तो हलचल हुई। शासन द्वारा नियमों का हवाला देकर जवाब मांगने के अलावा कुछ नहीं किया गया। नए जिले में लालगंज के साथ मेहनगर और मार्टीनगंज तहसील को शामिल करने की मांग की जाती रही है। भाजपा आजमगढ़ और लालगंज लोकसभा सीट को अलग-अलग जिले का दर्जा देकर यहां अलग-अलग जिलाध्यक्ष बनाती है। बिजनौर जिले में एक और लोकसभा क्षेत्र नगीना है। यहां नगीना, नजीबाबाद और धामपुर को जिला बनाने की मांग दशकों पुरानी है। धामपुर जिले की सबसे बड़ी तहसील है। 757 गांवों की तहसील में जिले की 12 में चार (स्योहारा, शेरकोट, नहटौर और अफजलगढ़) नगरपालिकाएं शामिल हैं।
महाभारत काल में उत्तरी पांचाल की राजधानी रहा बरेली जिले का आंवला संसदीय क्षेत्र जिले की छह तहसीलों में सबसे बड़ी है। क्षेत्रीय विधायक और कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह ने आंवला को जिला बनाने के लिए तहसील के साथ बदायूं और रामपुर के कुछ हिस्से शामिल करने की सलाह दी है।
जौनपुर में विधानसभा की सीटें नौ और मछलीशहर लोकसभा सीट है। यहां शाहगंज को जिला बनाने का मामला इसी साल फरवरी में एक बार फिर उठा। क्षेत्र का सुइथांकला ब्लॉक जिला मुख्यालय जौनपुर से 68 किमी दूर है। इससे पहले 2008 में राजस्व परिषद के निर्देश पर जिला प्रशासन की रिपोर्ट में आजमगढ़ के फूलपुर और घनश्यामपुर और सुल्तानपुर के कादीपुर को मिलाने के अलावा खुटहन को तहसील मुख्यालय बनाने की संस्तुति की गई थी।
प्रयागराज जिले में विधानसभा की सर्वाधिक 12 सीटें हैं। इसमें फूलपुर लोकसभा क्षेत्र भी है, जिसे लगभग भुला दिया गया है। अब यहां की पहचान कुर्मी बहुल इलाके की हो गई है, जबकि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू यहां से तीन बार (1952, 1957 और 1962) लोकसभा के लिए चुने गए थे। 1964 में उनके निधन के बाद विजय लक्ष्मी पंडित भी जीतीं। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी 1971 में विजयी हुए। दशकों तक रही कांग्रेस की सरकार ने इसे जिला नहीं बनाया। जबकि बाद में कौशांबी जिला बन गया।
छह विधानसभा क्षेत्रों वाले शाहजहांपुर जिले में भगवान परशुराम की जन्मस्थली जलालाबाद को परशुराम नगर और सहारनपुर में देवबंद को जिला बनाने की भी मांग उठती रही है। सत्ता पक्ष और सरकार के नुमाइंदों के जरिये यह मंशा सामने आती रहती है। देवबंद में अगर इस्लामी तालीम का परचम बुलंद करने वाला दारुल उलूम है तो जलालाबाद के भगवान परशुराम के मंदिर में उनका फरसा सुरक्षित बताया जाता है।
प्रदेश सरकार ने इसी साल इसे पर्यटन स्थल घोषित किया है। परशुराम नगर जिले में गंगा किनारे के हरदोई के हिस्से और शाहजहांपुर जिले के हिस्से को शामिल करने की मांग स्थानीय लोग करते रहे हैं। यही नहीं, झांसी जिले में चिरगांव 1954 में पद्मभूषण प्राप्त राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त और उनके साहित्यकार भाई सियाराम शरण गुप्त की जन्मस्थली है। जालौन का बटवारा कर इसे जिला बनाने की मांग भी जब-तब की गई है।
2012 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 28 सितंबर 2011 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आनन-फानन तीन जिले (हापुड़, शामली और संभल) बनाए थे। हापुड़ प्रदेश में सबसे कम क्षेत्रफल (660 वर्ग किमी) वाला जिला है। चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने सबसे ज्यादा 19 नए जिले बनाए, लेकिन उन्हें इसका राजनीतिक लाभ नहीं मिला। राजस्थान के निवर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही 25 लोकसभा सीटों वाले राज्य में जिलों की कुल संख्या 50 कर दी और चुनाव हार गए।
प्रदेश की वर्तमान सरकार पौराणिक और ऐतिहासिक प्रतीकों के माध्यम से राजनीतिक आधार बनाकर मंतव्य साधने में निपुण है। इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नए जिलों के लिए आवाजें तेज हो सकती हैं। सरकार के लिए नए जिले बनाना जनाधार बढ़ाने वाला भले ही न हो, प्रशासनिक व्यवस्था आसान बनाने और समस्याओं के सहज समाधान के लिए तो आवश्यक है। वैसे भी ‘एक लोकसभा एक जनपद’ की तर्ज पर ही सही, पांच जिले यथाशीघ्र बनने चाहिए। आने वाले दिनों में यह करना ही होगा तो शुरुआत अभी से हो सकती है।