आरबीआई ने रेपो को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा, वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत किया
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक ने उम्मीद के मुताबिक बुधवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 5.5 प्रतिशत पर बरकार रखा। अमेरिकी शुल्क के प्रभाव के साथ-साथ पूर्व में नीतिगत दर में की गयी कमी और हाल ही में कर दरों में कटौती के परिणामों पर अधिक स्पष्टता की प्रतीक्षा के साथ आरबीआई ने यह निर्णय किया।
हालांकि, आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आने वाले महीनों में अमेरिकी शुल्क के किसी भी प्रभाव से अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए रेपो दर में कमी की संभावना का संकेत दिया।
केंद्रीय बैंक ने मौजूदा परिस्थितियों पर गौर करते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि के अनुमान को बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया। साथ ही खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को घटाकर 2.6 प्रतिशत किया है।
छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आम सहमति से रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने के पक्ष में मतदान किया। इसके साथ ही मौद्रिक नीति रुख ‘तटस्थ’ बनाए रखने का भी फैसला लिया। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक आर्थिक स्थिति के हिसाब से नीतिगत दर में समायोजन को लेकर लचीला बना रहेगा।
यह लगातार दूसरी बार है, जब रेपो दर को यथावत रखा गया है। इससे पहले, केंद्रीय बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता वाली एमपीसी ने फरवरी से जून तक रेपो दर में एक प्रतिशत की कटौती की थी।
मल्होत्रा ने कहा, “नीतिगत कदमों के प्रभाव को समझने और अगला कदम उठाने से पहले चीजें अधिक स्पष्ट होने के लिए दरों को स्थिर रखना ‘विवेकपूर्ण’ कदम है।”
एमपीसी के निर्णयों की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा, “मौजूदा वृहद आर्थिक परिस्थितियों और भविष्य ने वृद्धि को और अधिक समर्थन देने के लिए नीतिगत गुंजाइश पैदा की है।”
उन्होंने कहा, “हालांकि, एमपीसी ने इस बात पर भी गौर किया कि पूर्व में उठाए गए मौद्रिक नीति और हाल के राजकोषीय उपायों का प्रभाव अब भी जारी है।”
मल्होत्रा ने अमेरिका के भारतीय आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने और एच1-बी वीजा मानदंडों को कड़ा करने का उल्लेख करते हुए कहा कि व्यापार संबंधी अनिश्चितताएं भी बढ़ रही हैं।
ऐसा लगता है कि आरबीआई एक तरफ कम मुद्रास्फीति और अमेरिकी शुल्क से वृद्धि के जोखिम और दूसरी तरफ रुपये में गिरावट की स्थिति के बीच नीतिगत दरों को स्थिर रखते हुए प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि रुपया, इस साल एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि कमजोर बाहरी मांग के बावजूद, घरेलू मोर्चे पर समर्थन से वृद्धि की संभावना मजबूत बनी हुई है। ‘‘अनुकूल मानसून, कम मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति में नरमी और हाल के जीएसटी सुधारों के सकारात्मक प्रभाव से इसे और समर्थन मिलने की उम्मीद है।”
केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए आर्थिक वृद्धि के अनुमान को बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया जबकि पूर्व में इसके 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
हालांकि मल्होत्रा ने कहा कि तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) और उसके बाद के लिए पूर्वानुमान पहले के अनुमानों से थोड़े कम रहने की संभावना है। इसका मुख्य कारण व्यापार संबंधी बाधाएं और चुनौतियां हैं। हालांकि जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने से मिली गति से इसकी कुछ हद तक भरपाई हुई है।
उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही। यह एक साल से भी ज्यादा समय में सबसे तेज वृद्धि है।
महंगाई के मोर्चे पर आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमान को घटाकर 2.6 प्रतिशत कर दिया है जबकि पूर्व में इसके 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। मौजूदा अनुमान आरबीआई के चार प्रतिशत की संतोषजनक सीमा से काफी नीचे है।
केंद्रीय बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है।
मल्होत्रा ने कहा कि खाद्य पदार्थों की कम कीमतों और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती के कारण मुद्रास्फीति परिदृश्य अधिक अनुकूल हो गया है।
उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अगस्त में 2.07 प्रतिशत रही।
मल्होत्रा ने विदेशी मुद्रा नियमों में ढील, बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण, नए सार्वभौमिक बैंक लाइसेंसिंग मसौदे, रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण, शेयरों और अन्य वित्तीय साधनों के बदले ऋण देने की सीमा में ढील के साथ ऋण वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अन्य उपायों की भी घोषणा की।
एमपीसी ने अपनी मौद्रिक नीति को तटस्थ रखा। हालांकि दो बाहरी सदस्यों (नागेश कुमार और राम सिंह) ने उदार रुख अपनाने का पक्ष लिया। समिति के छह सदस्यों में तीन सदस्य बाहर से होते हैं। इसके अन्य सदस्य सौगत भट्टाचार्य (बाह्य सदस्य), डॉ. पूनम गुप्ता और इंद्रनील भट्टाचार्य हैं।