रणबीर सिंह दहिया की रागनी-एक बाप का दुःख

हरियाणवी रागनी

एक बाप का दुःख

रणबीर सिंह दहिया

कुनबा सारा मूँधा पड़या नहीं होती छोरी की सगाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

1

पढ़ लिख कै बेटी आई एफ एस अफसर बणगी

दहेज़ एक करोड़ पै पहोंच्या सिर की नस तणगी

मेहनत करी दिन रात मुड़कै पाछै नहीं लखाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

2

बिन ब्याही बेटी का घर मैं बोझ घणा कसूता होज्या रै

मेरे बरगा सिद्धान्ति माणस भी सबर अपना खोज्या रै

घर मैं दीखै सूनापन जब ना पावै कोये राही।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

3

जात के भीतर आई ऐ एस कोये भी मिलता कोण्या

एक मिल्या तो गोत उसका म्हारे गाम मैं चलता कोण्या

इन गोतां के चक्कर नै म्हारी तो पींग सी बधाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

4

माथा पाकड़ कै बैठ गया तीन साल जूती तुड़वाली

या उम्र तीस साल की ओवर ऐज खाते मैं जाली

दोतीन और अफसर थे उनकी मांग बेढंगी पाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

5

बेटी नै तो कर लिया फैंसला ब्याह नहीं करवाने का

मां बोली हमनै के ठेका बेटी जात बीच ब्याहने का

कौम के ठेकेदारां नै नरमी नहीं बरती चाही।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

6

जात छोड़ ब्याह करने का मेरा तो जी करता कोण्या

बिन ब्याही रह्वैगी बेटी न्यों सोच दिल भरता कोण्या

जात मनै लागै थी प्यारी इसनै मेरी करी पिटाई।।

7

न्योंये कित धक्का दे दयूं आज मेरी समझ नहीं आता

एक करोड़ कड़े तैं ल्याऊं आज मेरा तो यो खाली खाता

दो च्यार लाख मैं नहीं करते कौमी बेटे मेरी सुनाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

8

भितरै भितर सोचूँ कितै बेटी प्रेम विवाह करले

नीरस जिंदगी जो उसकी उसनै खुशियों तैं भरले

वा बागी होकै करले शादी होज्यगी मेरी मनचाही।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

9

तिरूं डूबूँ जी होरया इसनै रोज समझाऊँ क्यूकर

जात भितर की सीमा दिल खोल दिखाऊं क्यूकर

म्हारे बरगे माणसां की होरी सारे कै जग हंसाई।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

10

नौकरी के कारण बेटी नै कई देशां मैं जाना पड़ता

भांत भांत के लोगां तैं उसनै उड़ै हाथ मिलाना पड़ता

रणबीर खुलापन आया यो आज साहमी दे दिखाई ।।

मनै सगे सम्बन्धी कहवैं क्यों इतनी घनी पढ़ाई।।

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