हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-54
असाधारण सांगठनिक कौशल के स्वामीःप्यारेलाल तंवर
सत्यपाल सिवाच
कई लोग ऐसे होते हैं जो संगठन के साथ-साथ रिश्ते संभालने में भी कुशल होते हैं। प्यारेलाल भी ऐसे लोगों में शामिल हैं। मैं लगभग 1982 में उनको जानने लगा था, लेकिन अगले एक-दो साल में उनसे घनिष्ठता के रिश्ते कायम हो गए। जब सन् 1985 में हम सपरिवार रहने लगे तो मेरा और उनका किराए का घर एक ही गली में पड़ोस में था। वहाँ से हमारे नजदीकी पारिवारिक रिश्ते कायम हो गए। सर्वकर्मचारी संघ के गठन के समय और किसी के जिम्मेदारी संभालने से इन्कार करने पर प्यारेलाल ने सहज रूप से सचिव पद ले लिया। इसके बाद हमारे सम्बन्ध और गहरे होते गए जो अभी तक कायम हैं।
प्यारेलाल का जन्म 07 मार्च 1956 को अम्बाला (अब यमुनानगर) जिले के कुंजलजाटान गांव में श्री रामकिशन और निर्मला देवी के घर हुआ। तीन भाइयों और तीन बहनों में वे सबसे बड़े हैं। प्यारेलाल ने सन् 1973 में गांव के सरकारी हाई स्कूल से दसवीं कक्षा पास की। अगले ही सत्र 1974-76 में जे.बी.टी. पास की। वे नवम्बर 1976 में तदर्थ आधार पर प्राथमिक शिक्षक नियुक्त हो गए। दो वर्ष की सेवा के आधार पर वे 01 जनवरी 1980 से नियमित हो गए। सन् 1991 में सीधी भर्ती में वे अंग्रेजी प्राध्यापक नियुक्त हुए। उन्हें अब अम्बाला जिले के बलाना में नियुक्ति मिली। 31 मार्च 2014 को प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए।
वे अस्थायी शिक्षकों को नियमित करने की मांग को लेकर सन् 1979-80 ही सक्रिय हो गए थे, हालांकि इस दौर में वे पदाधिकारी नहीं रहे। सन् 1984-85 में अध्यापक संघ के साथ जुड़े और उसके बाद लगातार सक्रिय रहे। वे सन् 1991-92 में अम्बाला जिले के सचिव चुने गए तो वर्षों के ढीले-ढाले सांगठन को गतिशील बनाने और विस्तार करने में अच्छी भूमिका निभाई।
संघ के गठन के समय वे रादौर की खण्ड कमेटी के सचिव बने। अध्यक्ष पद पर नगरपालिका के सरदार मलूक सिंह निर्वाचित हुए। बाद में यमुनानगर जिला बनने पर वे अध्यापक संघ और सर्वकर्मचारी संघ दोनों ही जगह जिला प्रधान व सचिव रहे।
प्यारेलाल कई बार प्रताड़ना के शिकार हुए। चार्जशीट किए गए। सन् 1987 में एक स्कूल के झगड़े में भी उन्हें उलझाने की कोशिश की गई। वे 1987, 1989 और 1997 में लगभग साठ दिन जेल रहे। एक बार तीन दिन लगातार थाने में बैठाकर रखा गया। सन् 1993 में लाख कोशिश के बावजूद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
प्यारेलाल में असाधारण सांगठनिक कौशल है। यह परख 1986-87 के संघर्ष में भी हुई। उस समय हम सभी नौसिखिया ही थे। पहली बार किसी लड़ाई से गुजर रहे थे। उनकी जीवन साथी श्रीमती महेन्द्रकौर ने संघर्ष के जटिल समय पर बहादुरी, होशियारी और धैर्य से डटे रहने का परिचय दिया। वे पढ़ाई में ही प्रतिभावान नहीं रहे, बल्कि सामान्य व्यवहार में तत्काल सही निर्णय लेने वाले साथी हैं। जब 1991 में उनकी नियुक्ति अम्बाला में हुई तो हमारे पास गिनती के कार्यकर्ता थे। तब उन्होंने बहुत धैर्य से निरन्तर काम करते हुए सभी ब्लॉकों में इकाइयां गठित कीं और सदस्य संख्या 1700 से अधिक पहुंचा दी, जो अपने आप में रिकॉर्ड था।
प्यारेलाल के परिवार में पत्नी महेन्द्रकौर के अलावा एक बेटी हैं जो अम्बाला में विवाहित हैं। दो बेटे हैं जो शिक्षा विभाग में पीजीटी पद पर हैं और अध्यापक संघ व सर्वकर्मचारी संघ में भी सक्रिय हैं। पुत्रवधुएं भी जॉब में हैं। परिवार के तीसरी पीढ़ी बच्चे सम्भालते हुए भी वे सक्रिय हैं। हमारे शुरुआती दौर में ही वे वामपंथी विचारों से प्रभावित हो गए थे और सेवानिवृत्ति के बाद सीपीएम और किसान सभा में सक्रिय हैं। वे मार्क्सवादी पार्टी के जिला सचिव हैं। सौजन्य ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
