हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-62
बिजली कर्मचारी आन्दोलन से उभरे प्रतिबद्ध नेता – प्रताप सिंह
सत्यपाल सिवाच
रोहतक जिले के सांघी गांव के निवासी प्रताप सिंह करनाल में बिजली कर्मचारियों और सर्वकर्मचारी संघ की अग्रणी कतारों में पहुंच गए थे। सन् 1990 के लगभग उनसे मेरा परिचय बिजली परिसर में हुई कार्यकर्ता बैठक में हुआ था। तत्पश्चात् उनके और वाई.पी. यादव के प्रयासों और पहल से बिजली क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को शिक्षित करने का सिलसिला शुरू हो गया। बाद में प्रतापसिंह एच.एस.ई.बी. वर्करज यूनियन (हैड ऑफिस,हिसार) के राज्य प्रधान पद तक पहुंचे।
उनका जन्म 15 जून 1955 को सांघी गांव में श्रीमती गंगा देवी और टीकाराम के घर हुआ। वे पाँच भाई और तीन बहन हुए जिनमें से चार भाई और एक बहन जीवित हैं। अब माता-पिता का निधन हो चुका है। प्रताप सिंह दसवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद जून 1973 में ए.एल.एम. पद पर बिजली बोर्ड में भर्ती हो गए और 30 जून 2013 को जे. ई. पद से सेवानिवृत्त हुए।
वैसे तो वे नौकरी में आने के बाद ही यूनियन में रुचि लेने लगे थे, लेकिन सन् 1981 में यूनियन के भीतर जनवादी कार्यप्रणाली को लेकर उठे विवाद में और उसके परिणामस्वरूप हुए विभाजन के बाद सक्रिय हो गए। उन्होंने एच.एस.ई.बी.वर्करज यूनियन – (292)/ ‘ऑल हरियाणा पावर कारपोरेशनज् वर्करज यूनियन’ में उपाध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, मुख्य संगठन सचिव और अध्यक्ष पदों की जिम्मेदारी निभाई। सन् 1981 से 2002 तक किसी न किसी पद पर रहकर राज्य नेतृत्व का हिस्सा रहे। उन्हें दो बार सर्वकर्मचारी संघ की केन्द्रीय कमेटी में चुना गया। अब रिटायर्ड कर्मचारी संघ की गतिविधियों में शामिल होते रहते हैं।
बिजली बोर्ड में आने के बाद और सेवानिवृत्ति उपरांत हुए सभी आन्दोलन में भाग लिया। बिजली कामगार के रूप में संघर्षों का जो प्रशिक्षण हुआ वह सर्वकर्मचारी संघ में काम आया। उन्हें1987 के आन्दोलन में निलम्बित किया गया था और 1993 में बर्खास्त कर दिया गया। वे 22 दिन अम्बाला और 35 दिन बुड़ैल जेल में रहे। सन् 1996-97 के आन्दोलन में भी उन्हें नौकरी से हटाया गया। लेकिन उत्पीड़न की कार्रवाइयां समझौते के साथ खत्म करवायी गईं। प्रताप सिंह को संगठन में जुझारू नेताओं में गिना जाता था। सन् 1993 के आन्दोलन का एक प्रसंग बताते हुए उन्होंने कहा – “हड़ताल खिंच गई थी। मुख्यमंत्री भजनलाल ने करनाल के विधायक जयप्रकाश गुप्ता को रास्ता निकालने का संकेत दिया। गुप्ता ने मुझे ज्वाइंट एक्शन कमेटी सदस्य प्रताप सिंह सांगवान समझकर संपर्क किया। खैर, मुख्यमंत्री से बातचीत करवाई गई और उसके लिए अम्बाला जेल से बनवारीलाल बिश्नोई को दिल्ली लेकर गए।
आमतौर पर परिवार की ओर से आन्दोलनों में सहयोग ही मिलता रहा। उनकी जीवन साथी राजवन्ती जनवादी महिला समिति में सक्रिय रहीं और उसकी उपाध्यक्ष रहीं। एक भाई ने जनवादी नौजवान सभा में काम किया। बड़ा भाई पहले महासंघ में था। बाद वहाँ से छोड़कर सर्वकर्मचारी संघ में आया। उन्होंने निजी तौर पर नेताओं या अधिकारियों से काम नहीं लिए। उनका मानना है कि कर्मचारियों में राजनीतिक जागरूकता और संघर्ष का माद्दा जरूरी है। अब हमले ज्यादा हैं। टेलीफोन पर यूनियन चलाने की बजाए जमीन पर काम करना चाहिए। ज्यादा कार्यकर्ता तैयार करें, उन्हें शिक्षित करें और सीधे संघर्षों में उतारें – ऐसे उनके जज्बात हैं।
फिलहाल वे रोहतक के सैक्टर दो में रहते हैं। बेटा विवाहित था। करनाल में काम करता था। दुखद बात है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। एक बेटी है, वह भी विवाहित है। (सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक : सत्यपाल सिवाच
