पुस्तक समीक्षा
सत्ता परिवर्तन एक छलावा- दो नाट्य रूपांतरण
जयपाल
दो नाट्य रूपांतरण प्रोफेसर लेखक/अभिनेता/निर्देशक/ नाटककार डॉ इन्द्र पाल आनंद की सद्यः प्रकाशित पुस्तक है। दोनों ही लघु-नाटक हैं । पहला नाटक जार्ज आरवेल’ के कालजयी उपन्यास एनिमल फॉर्म का हिन्दी नाट्य रूपांतरण है । जिसका शीर्षक लेखक ने ‘पशु बाड़ा’ दिया है। दूसरा नाटक ‘द जजमेंट ऑफ पेरिस प्रसिद्ध लेखक ‘लिओनार्ड मेरिक’ की कहानी ‘द जजमेंट ऑफ पेरिस’ का हिंदी रूपांतरण है । डॉ आनंद हिन्दी और अंग्रेजी नाटकों के निर्देशन और अभिनय दोनों में पारंगत हैं। इसके साथ ही हिंदी और अंग्रेजी के विद्वान भी हैं। यही कारण है कि इन दोनों अँग्रेजी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद बेहद स्वाभाविक और सहज बन पड़ा है l भले ही दोनों रचनाओं की आधार भूमि राजनीतिक है लेकिन अभिनय और पात्रों के संवाद से एक साहित्यिक और मनोरंजन प्रधान नाटक बन गए हैं और इन दोनों नाटकों का संदेश भी वैश्विक है l
ऐनिमल फार्म पर आधारित फिर पशु-बाड़ा नाटक रूसी क्रांति को आधार बनाकर लिखा गया है। 1917 में रूस में समाजवादी क्रांति हुई। लेकिन जो पार्टी सत्ता में आई वह धीरे-धीरे अपने आदर्शों से दूर होती गई और समाजवाद को उसी रूप में लागू नहीं कर सकी जैसा कि वह मजदूर- किसानों को वायदे करके आयी थी। इस क्रांति में अनेक प्रकार के प्रतिकूल तत्वों का मिश्रण होता गया।
पशु-बाड़ा के कथानक के अनुसार चारपाये पशुओं को लगने लगता है कि उनकी सारी मुसीबतों और गैर-बराबरी की असली जड़ दोपाये मनुष्य ही हैं। इसीलिए सभी चार पैर धारी जानवर पशु-बाड़े पर कब्जा कर लेते हैं और एक नए समाज की स्थापना करते हैं। परिणाम के बारे में मुख्य पात्र गुरु और कम्मो कहते हैं – कौन सूअर, कौन आदमी..यह तय कर पाना मुमकिन नहीं था..सूअर और आदमी का भेद खत्म हो चुका था..चौपाये और दोपाये सभी बेशकल और बेपाये बन गए..।
इसी प्रकार दूसरा नाटक पेरिस का फैसला है जो फ्रांस की क्रांति के बाद की स्थिति पर आधारित है। क्रांति के बाद इन्साफ के नाम पर कुलीन वर्ग के लोगों को दर्दनाक सजाएं दी गईं। क्रूर तरीके अपनाकर मृत्युदंड दिए गए। युवा वर्ग में बेरोजगारी और हताशा बढ़ती गई ।
कहानी में दो हास्य अभिनेता हैं जो एक ही अभिनेत्री से प्रेम करते हैं। अभिनेत्री दर्शकों की राय पर एक बूढ़े नवाब (जिसके बेटे को क्रूरतापूर्ण मृत्युदंड दिया गया था) की भूमिका निभा रहे अभिनेता सैम को शादी के लिए चुन लेती है। दरअसल यह कहानी एक ग्रीक पौराणिक कथा पर आधारित है जिसमें ट्राय के राजकुमार पेरिस और तीन देवियों की कहानी है। पेरिस यहां भी दर्शकों का प्रतीक है। दरअसल इस त्रिकोणीय प्रेम कथा में इन सभी पात्रों के संवाद बेहद चुटीले और मनोरंजक हैं।
दोनों ही नाटकों में समाज के नेताओं द्वारा आम लोगों की समस्याओं को दूर करने के बहाने से सामाजिक परिवर्तन किए जाते हैं और सत्ता हथिया ली जाती है। इसके बाद सत्ताधारी नेता फिर वही आचरण करने लग जाते हैं जिसके खिलाफ लड़कर वे सत्ता में आए थे। भले ही ये दोनों रचनाएं रूस की अक्टूबर क्रांति के दौर और फ्रांस की क्रांति के बाद के दौर की बात करती हों लेकिन दुनिया भर में हुए तख्ता पलट हों या फिर लोकतांत्रिक परिवर्तन..क्रान्तिवादी परिवर्तन हों या फिर दक्षिण-पंथी नस्लीय नर -संहार…सत्ता का यह सार्वभौमिक चरित्र है। सत्ता के इस चरित्र को बेनकाब करना और आम लोगों को जागरूक करना इन दोनों नाटकों का मूल उद्देश्य है।
विशेष बात यह है कि पशु-बाड़ा के सूत्रधार-गुरु और कम्मो अंत में दर्शकों से सवाल करते हैं कि क्या ऐसे सपने कभी साकार नहीं होते..? क्या ऐसे सपने देखने बंद कर देने चाहिए..? अर्थात दोनों मूल रचनाकार स्थापित करना चाहते हैं कि ऐसे सपनें जरूर देखें जाने चाहिए क्योंकि सामाजिक-राजनीतिक बदलाव के सपने देखने बंद नहीं किए जा सकते। यह मनुष्य और समाज के विकास के प्राकृतिक विकास के नियमों के विरुद्ध होगा l इसका अर्थ यही है कि सामाजिक/आर्थिक परिवर्तन तो होंगे ही, उन्हें रोका नहीं जा सकता क्योंकि समाज का प्राकृतिक विकास तो एक निरंतर प्रक्रिया है।लेकिन सत्ता परिवर्तन आम आदमी के हित में हो, समाज की बेहतरी के लिए हो, न्याय सम्मत हो और मानवीय सिद्धांतों पर लागू किया जाए। सत्ता प्राप्ति के बाद सत्ताधारी नेता तथा राजनीतिक पार्टी भ्रष्ट और क्रूरतापूर्ण व्यवहार न करें, तभी सत्ता परिवर्तन सार्थक होंगे अन्यथा यह समाज के साथ छलावा ही होगा।
लेखक डॉ आनंद ने नाटक को रोचक बनाने पर विशेष ध्यान दिया है l पशु-बाड़ा’ नाटक में इतिहास-बोध,राजनीतिक’दर्शन और साहित्यिक गंभीरता है। लेकिन बहुत ही सरल और रोचक भाषा के प्रयोग के कारण संवाद बहुत ही मनोरंजक बन गए हैं। हिंदी, अंग्रेजी,उर्दू और स्थानीय प्रचलित शब्दों के प्रयोग से नाटक की सम्प्रेषणीयता बढ़ी है। पात्रों के नाम बिल्कुल उनके चरित्र और स्वभाव के अनुसार हैं। नामों के चयन में स्थानीय रंगत काबिले तारीफ है। पेरिस का फैसला नाटक तो अपनी बनावट में ही मनोरंजन प्रधान और हास्य-रस से भरपूर है।
मंचन की दृष्टि से दोनों नाटकों का मंचन बहुत ही आसानी से, बिना अधिक खर्च किए, मंच पर थोड़ा बहुत बदलाव करके किया जा सकता है। लेखक ने इसे बहुत ही परिश्रम से लिखा है । लेखक डॉ आनंद को बहुत-बहुत बधाई।
पुस्तक-दो नाट्य रूपांतरण
लेखक—डॉक्टर इंद्र पाल आनंद
कीमत—175/- (पेपर-बैक)
प्रकाशक—समदर्शी प्रकाशन
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

पुस्तक समीक्षक- जयपाल
