मंजुल भारद्वाज की कविता – सरल भाषा !

सरल भाषा !

– मंजुल भारद्वाज

सरल भाषा से थोड़ी बहुत जानकारी मिल सकती है

बदलाव नहीं होता !

भाषा अपने आप में कभी समग्र नहीं होती

एक वर्ग विशेष उसके अंतर्निहित होता है!

बोली सरल होती है

पर एक परिवेश,वर्ग और क्षेत्र तक !

बोली भी विशेष वर्ग की होती है

जब वो लिखी जाती है

उसका एक व्याकरण हो जाता है

तब वो भाषा बन जाती है

भाषा अपने आप में क्लिष्ट होती है !

भाषा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए

लिखी बोली जाती है

जैसे विज्ञापन की भाषा मुनाफे की भाषा है

वो सरल भाषा नहीं है

मुनाफाखोरों की भाषा है

झूठी,भावनाओं की चाशनी में पगी

झूठ बेचने की भाषा सरल कैसे हो सकती है!

ठंडा मतलब ….

ये तो बड़ा … है

आदि आदि!

मां के नाम एक पेड़ लगाओ

कितनी सरल भाषा है!

जंगल बेच दिए पूंजीपतियों को

जंगल बचाओ कितनी कठिन भाषा है!

पेड़ कहां लगाएं

बालकनी में

बोनसाई …

बोनसाई क्लाइमेट पर्यावरण संरक्षण करेंगे !

एक भाषा ,एक देश

कितनी सरल है

पर विविधता की शत्रु है!

राष्ट्र प्रथम

पहले देश

सरल है

पर देश बर्बाद कर दिया

सरल भाषा बोलने वाले ने!

आज सरल भाषा में

इस देश का हर व्यक्ति जानता है

राजा चोर है

झूठा है

नफ़रत का व्यापारी है

भ्रष्टाचारी है

पर जनता ने उसी को चुना है

क्या हुआ सरल भाषा का ?

सरल भाषा में

ईश्वर नहीं होता

पर दुनिया के 90 फ़ीसदी लोग

सरल भाषा को समझते हुए भी

ईश्वर को मानते हैं!

क्यों

क्योंकि जब तथ्य प्रमाणित कर रहे हैं कि

ईश्वर नहीं है

तब भावनाएं उसे नहीं स्वीकारती

तथ्यों का भावनाओं द्वारा अस्वीकरण ही आस्था है!

आस्था अंधी गुफ़ा है

जहां सत्य नहीं होता

होता है शोषण ,गुलामी , हैवानियत

छुआछूत , दासता,बलात्कार ….

सरल भाषा में

धर्म सत्ता है

सत्ता के सूत्र हैं

साम,दाम,दंड,भेद !

किसने समझा ?

सब धार्मिक हैं

धर्म से शोषित हैं

इतिहास भरा पड़ा है

धर्म वर्ण,नस्ल भेद की जड़ है!

धर्म श्रेष्ठतावाद की जड़ है

सरल भाषा में पूरी दुनिया इसकी शिकार है

सरल भाषा में समझने के बाद भी

धर्म की गुलाम है

क्यों !

सरल भाषा में भारत का उद्घोष है

सत्यमेव जयते

भारत के लोग झूठ बोलते हैं

झूठे को राजा चुनते हैं!

सरल भाषा में सब जानते हैं

खाली हाथ आए थे

खाली हाथ जायेंगे

दुनिया में हर कोई

हर किसी को लूट रहा है

लूटने में कोई भेदभाव नहीं हैं

लुटेरों का वर्ग एक है ….

भारत में अंग्रेज़ी लिखने और पढ़ने वाले

90 फ़ीसदी जनता के लिए क्लिष्ट हैं !

क्षेत्रीय भाषा बोलने और लिखने वाले

अपने क्षेत्र तक मर्यादित हैं

बाकी देश के लिए क्लिष्ट हैं!

हिंदी लिखने बोलने वाले कहीं के नहीं हैं

इस देश में हिंदी किसी की भाषा नहीं है

हिंदी केवल राष्ट्र भाषा है!

जानकारी की भाषा अलग

बाजार की भाषा अलग

धर्म की भाषा अलग

ज्ञान की भाषा अलग

सत्ता की भाषा अलग

बदलाव की भाषा अलग होती है

तय करो तुम कहां हो ….