एस.पी. भाटिया की कविता – मां

कवि का वक्तव्यः माँ केवल जन्मदात्री नहीं, वह समूचे अस्तित्व की जड़ है। सभ्यता की आत्मा, करुणा की सरिता और जीवन का प्रथम आलाप। जब राजनीति की कड़वाहट और कटु भाषा इस पवित्र शब्द को अपमानित करती है, तो मानो मनुष्य अपने ही संस्कारों को धूल में मिला देता है। माँ का अपमान किसी एक स्त्री का नहीं, सम्पूर्ण मानवता का अपमान है

 

कविता

माँ

एस.पी. भाटिया

 

माँ मिट्टी की गंध है, बीज की पहली हरियाली,

माँ समय की धड़कन है, जीवन की सच्ची कहानी।

 

वह आँसुओं में संबल है, मुस्कान में उजियारा,

वह हर दुःख की सीमा पर बना देती है सहारा।

 

माँ को तानों में बाँधना, अपनी ही आत्मा को चोट पहुँचाना है,

माँ को उपहास कहना, अपनी वाणी को कलंकित करना है।

 

राजनीति की आँधी चाहे कितनी भी प्रचंड हो जाए,

माँ की ममता हर तूफ़ान से बड़ी, हर विष से निर्मल हो जाए।

 

माँ न विधवा है, न उपमान, न कोई उपहास का शब्द,

वह तो वह पावन दीप है, जिसमें जलता है सृष्टि का अमृत।

 

माँ का सम्मान करना, मनुष्य होने की पहचान है,

माँ की गरिमा ही इस धरती का सबसे बड़ा विधान है।

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