कविता
सब माया है अवतारी की
रमेश जोशी
वह बार बार दर्पण देखे
खुद को ही कण कण में देखे
सब औषधियाँ बेकार हुईं
ना दवा मिली बीमारी की
सब माया है अवतारी की
सारे वादे बेकार गए
सब कोशिश करके हार गए
किस किस ने छोड़ी है बोलो
कब आदत चोरी जारी की
सब माया है अवतारी की
कल्लू की लल्लू को लिख दी
लल्लू की कल्लू को लिख दी
अब दोनों चक्कर काट रहे
सब साजिश है पटवारी की
सब माया है अवतारी की
आँखों पर बँधी हुई पट्टी
सब झेल रही मीठी खट्टी
धृतराष्ट्र भीष्म सब पाक साफ
सब गलती है गांधारी की
सब माया है अवतारी की
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