कविता
चंदा मामा
ओमप्रकाश तिवारी
एक दिन
क्षितिज से नीचे आया चांद
मेरे सपने में
कहने लगा
कवि मांगो
कुछ भी मांगो
मैं दूंगा
इस मेहरबानी की वजह
मैंने पूछा तो नाराज हो गए
गुस्से से तमतमा गए
बोले भौंहें चढ़ाकर
तुम्हारे जैसों की यही समस्या है
मैंने कहा
मेरी चाहत पूरी करने वाले
आप तो अंतरयामी हैं
आपसे क्या छिपा है
चांद मामा बोले
मांगना पड़ता है वत्स
मैंने कहा
आप क्या दे सकते हैं
खुद सूरज की रोशनी से चमकते हैं
आपसे कुछ नहीं मांगता
तुम्हारा भला नहीं हो सकता
कह कर चांद चले गए
पांच मिनट भी नहीं चमके
बादलों से घिर गए…