ओमप्रकाश तिवारी की कविता – पतझड़

पतझड़

ओमप्रकाश तिवारी

पीले पत्ते गिर रहे हैं 

शाखाओं से 

पेड़ खड़ा है 

विछोह से भरा 

दर्द को जब्त किये 

धीरे-धीरे शाखाएं 

पत्ताविहीन हो जाएंगी 

पेड़ बीमार नहीं है 

पेड़ मर भी नहीं रहा है 

दरअसल पेड़ गुजर रहा है 

मौसम के बदलाव से  

ऋतु बदल रही है 

पतझड़ का मौसम है 

इसके बाद निकलेंगी कोंपलें 

नए-नए पत्तों से 

गुलजार हो जाएंगी डालें 

फिर फूल भी खिलेंगे 

और फल भी लगेंगे 

इस बीच कुछ डालें 

वीरा हो जाएंगी 

कुछ सूख जाएंगी 

गिरे हुए पत्ते सड़ जाएंगे..