मंजुल भारद्वाज की कविता -समय लिख रहा है भारत के पाषाण युग में अस्त होने की दास्तां!

समय लिख रहा है भारत के पाषाण युग में अस्त होने की दास्तां!

मंजुल भारद्वाज

 

यह समय मर्यादाओं के तार तार होने का है

यह समय हर पल शर्मसार होने का है

यह समय झूठे के राज का है

यह समय अर्धसत्य के शोर का है

यह समय सत्य की चीखों का है

पर उसे सुनने वाला कोई नहीं है

यह समय न्याय की अवधारणा को

बुलडोजर से रौंदने का है !

 

यह समय अपने सामने

अपना सब कुछ लुटा

मिथक,धर्म और जात से

गौरवान्वित होने के भ्रम का है !

 

यह समय हत्यारों को सत्ता पर बिठा

अपराध रोकने की दिव्य मूर्खता का है !

 

यह समय विविधता,भाईचारे,

सद्भाव को जलाकर

अखंड झूठ की भस्म लपेटकर मोक्ष प्राप्ति का है !

 

यह समय सौंदर्य को नष्ट कर

कुरूप और वीभत्स होने का है!

 

यह समय अपने ही मवाद में लिपटकर

अमृतकाल में जीने का है !

 

यह समय प्रेम को द्वेष से भस्म कर

नफ़रत में जलने का है !

 

यह समय लिख रहा है इतिहास

कैसे भारत के लोगों ने झूठे गर्व के लिए

अपने आपको तबाह कर लिया !

 

कैसे भारत के लोग झूठ से लड़ नहीं पाए

कैसे भारत के लोगों ने सत्य को सूली चढ़ाया

झूठे तानाशाह को लोकतंत्र की गद्दी पर बिठाया

और अस्मिता, न्याय,शांति ,सद्भाव को सड़क पर

दौड़ा दौड़ा कर पीटा,मारा और ज़िंदा जला दिया !

 

यह समय लिख रहा है भारत का इतिहास

कैसे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से

हासिल हुई आज़ादी को

भारत के लोगों ने लुटा दिया !

 

यह समय लिख रहा है इतिहास

कैसे भारत में 3 महीने,3 साल से लेकर 80 साल की

बच्चियों ,औरतों, महिलाओं के गोश्त को

सरे आम भेड़ियों ने नोचा

और लोगों द्वारा चुनी गई सत्ता ने

भेड़ियों का सम्मान किया !

समय लिख रहा है

भारत के पाषाण युग में

अस्त होने की दास्तां!