कविता
स्त्री का मौन
– मंजुल भारद्वाज
क्या है स्त्री का मौन ?
बेबसी,लाचारी,परित्याग
मज़बूरी,ग़रीबी,ग्लानि
आत्महीनता,आत्म विफलता
गुलामी,पराधीनता,समर्पण
अर्पण,स्वछंदता,पूर्णता !
पुरुष द्वारा रची
स्त्री शरीर सौंदर्य की
गाथा पर
स्त्री मौन क्यों है?
चौदहवीं का चांद
शबाब,सुर्ख लब,
मखमली होठ
मुलायम, गुदाज़ बदन
निंबाज आँखें, छहरेरा बदन
मोहक अदाएं
मदमाता हुस्न,
जुल्फें हैं कि काली घटाएं …
जैसी
पुरुष रचित
स्त्री शरीर सौंदर्य की
व्याख्या,बखान,उपमा
से सहमत है!
स्त्री के जिस्म से
कुदरत
महकती है
फूल खुशबू लेते हैं
बहारें खिल उठती हैं
ज़िंदगी महक उठती है …
से
क्या स्त्री गदगद है!
चेहरा चांद जैसे खिलता है
आँखें सागर की तरह गहरी हैं
स्त्री शाम है
स्त्री सुबह है
तो
स्त्री मौन क्यों है?
स्त्री मनोभाव
उसके शरीर सौंदर्य उपमाएं
कामुक,लिप्सा युक्त
अतृप्त,तृष्णा ग्रस्त
पुरुष की काम इच्छाओं
उत्तेजनाओं के
सिवा और क्या है?
स्त्री इस पर मौन है
बोलती नहीं
क्यों?
क्या इस तरह की
उपमा और संज्ञा
उसे पसंद हैं
इस पर पुरुष बेबाक,बेलाग
पर स्त्री मौन है
क्यों?
क्या स्त्री का मौन
उसकी एकांत समाधि है?
या
स्त्री का मौन
पुरुष को मृगतृष्णा में
बांधने का साध्य ?
स्त्री मौन
साहित्य की अबूझ पहेली है
सोचो
स्त्री अपना मौन तोड़ दे
तो कितने साहित्यकार
जन्में ही नहीं !
क्या स्त्री का मौन
उसकी संवेदनाओं
नाजुक भावनाओं
यौन अंगों के भोग
परित्याग से उपजे
खालीपन का क्षोभ है!
क्या स्त्री का मौन
रिश्तों नातों को
बनाने,संजोने,संवारने
संवर्धित करने का आंचल है!
क्या स्त्री का मौन
ममता, त्याग,
सहनशीलता का
स्त्रोत है!
क्या स्त्री का मौन
उसके धैर्य की
पराकाष्ठा है!
क्या स्त्री का मौन
उसकी सृजन शक्ति है!
स्त्री अपना मौन तोड़ दे
तो कितनी सभ्यताएं
अपने आपको आइने में
देख चूर चूर हो जाएं!
स्त्री अपना मौन तोड़ दे
तो नस्ल,वर्ण, खानदान
श्रेष्ठ कुल की मर्यादा
तार तार हो जाए !
क्या स्त्री का मौन
समाज के घृणित
कामुक यौन हिंसा को
दबाए,छिपाए हुए है!
क्या स्त्री का मौन
सभ्यता,कुलीनता का
वो काला परदा है
जिसमें इनका सत्य
लिपटा हुआ है!
क्या स्त्री मौन में
संस्कृति,संस्कार,परंपराओं के
अन्याय,असमानता,शोषण
दफ़न है !
या
स्त्री मौन
अन्याय,असमानता,शोषण
का मूल है?
क्या स्त्री का मौन
उसका खालीपन है
जो उसकी निरर्थकता को
समाए हुए है?
क्या स्त्री का मौन
एक ज्वालामुखी
या ज़लज़ला है
जिसमें काल समाधिस्त है?
क्या स्त्री मौन
शांति का
प्रण है!