कविता
अर्थ खोजता हुआ!
मंजुल भारद्वाज
संवेदनाओं के समंदर में
एक तूफ़ान उठा है
अपने को समूल मथता हुआ
व्यक्तित्व की तलहटी
प्रतिष्ठा की सतह को झकझोरता हुआ
आक्रोश और विवशता को फेंटता हुआ
मूल्यों के अर्थहीन सफ़र
अर्थ के मूल्य युग की मूर्छा में
लिपटे समाज की मवाद,गाद से
निकलने के लिए छटपटाता हुआ
सत्ता के बाहुपाश में जकड़े
मनुष्यता,इंसानियत,रिश्ते
प्यार,दोस्ती,ईमान की
मुक्ति का मार्ग खोजता हुआ
एक तूफ़ान अपने भंवर में है
स्वयं के होने का
अर्थ खोजता हुआ!