कण
– मंजुल भारद्वाज
ब्रह्मांडीय बुनियाद की
सूक्ष्म इकाई है
कण !
कण में समाहित है
ऊर्जा !
ऊर्जा ही जड़
और गतिशील में
अंतर करती है!
जो आत्मसफूर्त है
वो चैतन्य
जो शिथिल
वो जड़ !
आत्मसफूर्त का भौतिक
स्वरूप ही रेडियो एक्टिव है
किसी धातु का आत्म विकिरण
उसे रेडियो एक्टिव बनाता है!
रेडियो एक्टिव ऊर्जा विकिरण को
विशेष सूत्रों से संचालित कर
ऊर्जा का एक ऐसे भयावह विस्फोट किया जा सकता है
जिससे दुनिया नेस्तनाबूद हो सकती है!
आज दुनिया उसी खतरे पर
बैठी हुई है
जिसे एटम बम कहते हैं!
ऊर्जा का प्रवाह
और
शिथिलता
बदलती रहती है
यह बदलाव निरंतर है!
ऊर्जा का बदलाव
जीवों को प्रभावित करता है!
सभी जीवों में
संवेदना होती है!
संवेदना ऊर्जा का
भाव स्वरूप है
भाव से जन्मता है लगाव
लगाव से स्पर्श
स्पर्श से संबंध
संबंध से रिश्ता
जीव रिश्तों में बंध जाते हैं!
मनुष्य भी एक जीव है
उसमें भी संवेदना के
साथ साथ ऊर्जा का
चैतन्य रूप भी है
जिसे विचार,विवेक
दृष्टि कहते हैं!
चैतन्य से मनुष्य ने
जीवों के साथ दुनिया का
निर्माण किया है
कण में निहित ऊर्जा के
सूत्रों को खोजा
उसका अभ्यास किया
उसे विज्ञान कहा !
मनुष्य ने शरीर को समझा
भावनाओं को जिया
चैतन्य को साधा
फ़िर दुनिया से उसका मोह भंग हो गया
यह मोहभंग उसे आत्म खोज की ओर ले गया
आत्म खोज में उसने
शांति को पाया !
आत्म खोज यानी आध्यात्म
मनुष्य ने अपनी चारों ऊर्जा
शारीरिक, भावनिक
वैचारिक और आध्यात्मिक
ऊर्जा को जानकर
साध लिया
और जीवन व्यवहार का
तरीका, पद्धति, शैली
नियम,नैतिकता और संविधान रचा !
मनुष्य की आध्यात्मिक ऊर्जा
प्रकृति से उसका एकीकरण है
प्रकृति में मनुष्य का विलीन होना
उसका अंतिम पड़ाव है!
शारीरिक, भावनिक ऊर्जा से जन्मतें हैं
प्यार,मोह, ईर्ष्या ,द्वेष
वैचारिक ऊर्जा इसे दिशा देकर
अच्छे बुरे का भान कराती है
आध्यात्मिक ऊर्जा
मोह, माया,लालच, ईर्ष्या,द्वेष से निकाल
त्याग , बिछोह की तरफ ले जाती है
और अंततः अनंत में विलीन कर देती है!
शांति के आलोक में
मनुष्य ने मानवीय मूल्य गढ़े
प्रेम को पनपाया
प्रेम ने जग बनाया
प्रेम ने भाव को विचार
विवेक से जोड़ा
कला,साहित्य का उगम हुआ!
प्रेम की महिमा अपरंपार हुई
यही सत्ता को खटक गई
रंग,नस्ल,वर्ण ,पूंजी भेद ने
प्रेमियों का गला घोंट दिया
प्रेम गुनाह हो गया
प्रेमियों को दीवारों में चुनवाया गया
फांसी पर लटकाया गया
सत्ता का यह कुकर्म
आज भी ज़ारी है!
शांति के आलोक में
मनुष्य ने सत्य को अपनाया
सत्य के मार्ग पर चलकर
मनुष्य ने जीवन दर्शन रचा
सत्य को उजागर किया
पृथ्वी,ग्रहों,नक्षत्रों के रहस्य को जाना
सूर्य ,तारों की गति को समझा
जीवन में होती सुबह,शाम
गर्मी ,धूप,बारिश ,आग,जल,वायु,मिट्टी , हरियाली ,पहाड़,समंदर,अंतरिक्ष के रहस्यों को भेदा
पर सत्य सत्ता को रास नहीं आया
उसने सत्य को सूली चढ़ा
न्याय और प्रेम को सलीब पर टांग दिया !
मानवीय जीवन का अंतिम ध्येय
शांति है
जैसी ही शांति अंतिम लक्ष्य बना वैसे ही उस तक पहुंचने वाले
अलग अलग पथ बन गए
यह पथ पंथ हो गए
पंथ धर्म हो गए
धर्म सत्ता में बदल गया
सत्ता राजशाही से होते हुए लोकतांत्रिक हो गई !
शांति जीवन का अंतिम ध्येय होने के बावजूद
मनुष्य जीवन जीने के लिए
हिंसा में लिप्त हो गया
सत्ता ने उसे अकूत ताक़त का अहसास कराया
यह अहसास कालांतर में
एकाधिकार और वर्चचस्वाद में बदल गया
जिससे श्रेष्ठता की होड़ लगी
रंगभेद,नस्लभेद,वर्णवाद में मनुष्यता कैद हो गई
सत्ता मुक्ति की बजाए शोषण का
केंद्र बन गए
शांति अकेले भटकती रह गई
और
मनुष्य सत्ताधीश बनकर
नरसंहारक हो गया !
इस बीच दुनिया में
धर्मांधों ने हिंसा को अनिवार्य ठहराने के लिए
दैवीय अवतारों की कथा लिख डाली
और धर्म यानी सत्ता के लिए
हिंसा को अनिवार्य बना दिया !
दुनिया के हिंसात्मकता को
बुद्ध और गांधी ने चुनौती दी
पर वो अपवाद ही रहे
बिल्कुल शांति की तरह !
हिंसा ने मानव जीवन के मूल ध्येय को ही बदल दिया
आज मनुष्य का मूल ध्येय
शांति नहीं
हिंसा, व्यभिचार,लुट खसोट
एकाधिकार हो गया है
हिंसा ही जीवन है
बिना हिंसा जीवन नहीं जिया जा सकता है
यह दुनिया का नियम बन गया है
आज दुनिया मतलब को
रिश्ता मानती है
उस मतलब को साधने के लिए
रिश्ते बनाती है
मतलब निकल गया तो
रिश्तों को जला या
दफ़ना देती है!
मनुष्य ने हिंसा को अपनाकर
जीवन को यातना बना लिया है
और
रिश्तों को नासूर !
एकाधिकार के घोड़े पर सवार
मनुष्य आज कण में निहित ऊर्जा के दम पर
प्रकृति को कब्ज़ाना चाहता है
पर वो भूल गया है
वो पूरी प्रकृति नहीं
उसका सिर्फ़ एक ‘ कण ‘ है!
मनुष्य को अपने विनाश से
बचने के लिए
कण को समझना होगा
कण से समस्त प्रकृति को समझना होगा
कण में निहित प्रेम को
साधना होगा
प्रेम जीवन का मूल है
संबंधों की सृजनधारा है
जो जीवन और वसुंधरा को
खूबसूरत और मानवीय बनाती है !
हे लोभ,लालच,हिंसा
एकाधिकारवाद से दुनिया को बर्बाद करने मनुष्य
तू प्रकृति से बड़ा नहीं
प्रकृति का एक कण है
उस कण की ऊर्जा से
अनुबंब बनाने वाले
कण में निहित
प्रेम को पहचान
युद्ध नहीं
प्रेम तेरी मुक्ति का सूत्र है
शांति का पथ है!