मंजुल भारद्वाज की कविता- शातिर

कविता

शातिर

– मंजुल भारद्वाज

 

शातिर ने

झूठ,प्रपंच,पाखंड

आस्था,धर्म,भगवान

संस्कार,संस्कृति का

ऐसा चक्रव्यूह रचा है

जिसमें फंस कर

देश को शमशान, कब्रिस्तान में दफ़न कर

धर्म रक्षकों की खुदाई में

पाषाण युग खोजा जा रहा है

शातिर और उसके भक्त उसे

नया भारत कह रहे हैं !

शातिर ने

संविधान,लोकतंत्र,न्याय पालिका का

पुर्जा पुर्जा ढीला कर

भारत की सार्वभौमिकता को

तार तार कर दिया

जिसे बाजारू मीडिया

मास्टर स्ट्रोक बता रहा है!

शातिर ने

ज़मीर,ईमान,नैतिकता को

रौंद कर

पूंजीपतियों का रेड कार्पेट बना दिया !

शातिर

पोषित है उस विकार से

जो सौ बरस का हो रहा है

जिसने सिर्फ़ 78 वर्ष की आज़ादी

75 वर्ष के संविधान शासन को

मनुवाद और मनुस्मृति के नाम कर दिया!

शातिर

सैर सपाटे,फैशन का

शौक़ रखता है

हर विदेशी दौर में

देश को नीलाम करता है

है सर्वोच्च पद पर विराजमान

पर पूंजीपतियों की

दलाली का काम करता है!

शातिर

राजनीति नहीं

ड्रामेबाजी करता है

कहां रोना है

कहां भावनाओं का दोहन करना है

उस किरदार को बख़ूबी निभाता है

गाली बकना उसे खूब आता है

ग़ज़ब का पैतरेबाज़ है

खुद गाली देकर

दूसरों पर इल्ज़ाम लगाता है

जिनसे वोट लेता है

उनसे नमक हरामी करता है !

शातिर

बड़ा बे ग़ैरत है

आत्मबल के बरगद को

आत्महीनता की अमर बेल से

ढक देता है

उस पर तुर्रा यह कि

आत्महीनता के मवाद में रेंगने वाले

ख़ुद को गर्व से  हिंदू कह

भारतीयता को तिलांजलि दे

कृतार्थ महसूस करते हैं!

शातिर

देश की संपति को

अपनी निजी दौलत समझता है

अलग अलग खातों में

लूट का पैसा जमा करता है

ना खाता ना बही के हिसाब से चलता है

गुप्त वस्त्रों से लेकर

डब्बे,थैली,कवर पर

अपना फोटो चिपका

सौगात की ख़ैरात बांटता है!

यह तय है

शातिर का चक्रव्यूह टूटेगा

सत्य पुनः एक दिन

परवाज़ चढ़ेगा

भ्रम को तोड़

एक दिन यथार्थ का उजाला होगा !

इतिहास साक्षी है

जब सच बोलने वाला

ज़हर पियेगा

फांसी चढ़ेगा

गोली खायेगा

तब झूठ,शोषण,पाखंड का राज

ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगा !

प्रश्न है वो विष पिये कौन ?

पेट के बल रेंगते लोगों की

चेतना जगाए कौन ?

संविधान में लिखे अधिकारों के लिए

कुर्बानी देगा कौन ?

वो आज़ादी के मतवाले

हंसते हंसते सूली चढ़ गए

आज 80 करोड़

मुफ़्त अनाज़ पाकर

स्वर्ग का अहसास कर रहे हैं !

आज़ादी के मतवालों ने

अपने जीवन का बलिदान दिया

आज युवा पीढ़ी रील देख देख कर

शातिर को अभयदान दे

बर्बाद हो  रही है!

आज़ादी के लिए

मां बहनों ने कुर्बानी दी

आज लाडली,लाडकी

लक्ष्मी और आजीविका दीदी की

रिश्वत ले अपना मताधिकार

बेच रहीं हैं!

प्रकृति का नियम है

जो आयेगा वो जायेगा

शातिर का चक्रव्यूह भी टूटेगा !

सिर्फ़ प्रकृति के भरोसे बैठ रहना

क्या मनुष्यता है?

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