जयपाल की कविता – पवित्र-अपवित्र

 कविता

पवित्र-अपवित्र

                       –जयपाल

पवित्र वंदनीय होते हैं

अपवित्र निंदनीय

पवित्र शुद्ध होते हैं

अपवित्र अशुद्ध

पवित्र महान होते हैं

अपवित्र नीच

पवित्र अमीर होते हैं

अपवित्र गरीब

पवित्र अच्छे मकानों में रहते हैं

अपवित्र गन्दे मकानों में

पवित्र साफ़ कपड़े पहनते हैं

अपवित्र गन्दे

पवित्र पहले खाते हैं

अपवित्र बाद में

पवित्र गंदगी फैलाते हैं

अपवित्र सफाई करते हैं

पवित्र मालिक होते हैं

अपवित्र नौकर

पवित्र शासक होते हैं

अपवित्र शासित

पवित्र भोग लगाते हैं

अपवित्र जूठन खाते हैं

पवित्र सतयुगी होते हैं

अपवित्र कलियुगी

पवित्र मुख से पैदा होते हैं

अपवित्र पैरों से

पवित्र देवता होते हैं

अपवित्र राक्षस

पवित्र ऐतिहासिक होते हैं

अपवित्रों का कोई इतिहास नहीं होता

पवित्र सत्य सनातन होते हैं

अपवित्र क्षण-भंगुर

पवित्र तीर्थों में स्नान करते हैं

अपवित्र नदी-नालों में नहा लेते हैं

पवित्रों की सत्य कथाएं होती हैं

अपवित्रों के झूठे किस्से

पवित्र मर कर भी अमर हो जाते हैं

अपवित्र तो जीते जी मर जाते हैं

पवित्र मोक्ष प्राप्त करते हैं

अपवित्र चौरासी लाख योनियों में घूमते हैं

पवित्र परमात्मा की आज्ञा से मरते हैं

अपवित्रों को कोई भी मार सकता है

क्योंकि कुछ लोग पवित्र होते हैं

इसलिए बाकी लोग अपवित्र होते हैं

One thought on “जयपाल की कविता – पवित्र-अपवित्र

  1. पवित्र-अपवित्र की यह बायनरी बड़े काम की है।
    सिलसिले को इस तरह प्रस्तुत करने से पूरे सिस्टम पर रोशनी पड़ती है।
    क्योंकि कुछ लोग पवित्र होते हैं
    इसलिए बाकी लोग अपवित्र होते हैं

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