कर्मचारी, छात्र आंदोलनों के नायक रहे फूलसिंह श्योकन्द

वरिष्ठ साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता ओम सिंह अशफ़ाक से बात हो रही थी तो उन्होंने सत्यपाल सिवाच के हरियाणा के सामाजिक और कर्मचारी आंदोलनों में शामिल रहे लोगों पर लेखन की चर्चा की। अशफ़ाक जी ने बताया कि सिवाच जी अपने अनुभवों और यादों को फेसबुक पर प्रस्तुत कर रहे हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण लेखन है खासतौर पर युवा पीढ़ी के लिए। वर्तमान में जब आंदोलन और आंदोलनकारियों को गाली के तौर पर लिया जा रहा है और उसे हिकारत की नजर से देखा जा रहा हो, लोग अपने इतिहास से विस्मृत हो रहे हों, निश्चित रूप से ऐसे लोगों के जीवन से परिचय महत्वपूर्ण है। मैंने अशफ़ाक जी से निवेदन किया कि वह अगर इस लेखन को प्रतिबिम्ब मीडिया के लिए मुहैया करा दें तो पाठक भी इन आंदोलनों और उनके जुझारू आंदोलनकारियों के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित हो सकेंगे। मेरा निवेदन ओम सिंह अशफाक़ ने स्वीकार कर लिया और उसकी पहली किस्त मुहैया कराई है। इसे प्रतिबिम्ब मीडिया पर क्रमबद्ध प्रकाशित करने की कोशिश की जाएगी। हमारा निवेदन मानने के लिए अशफ़ाक जी और उनका निवेदन मानने के लिए सत्यपाल सिवाच जी का आभार। संपादक

1987 में हरियाणा कर्मचारी आंदोलन के दरमियान पुलिस हिरासत में भूख हड़ताल/अनशन पर डटे हुए फूलसिंह श्योकंद। फाइल फोटो

हरियाणा के जूझते जुझारू लोग -1

 

कर्मचारी, छात्र आंदोलनों के नायक रहे फूलसिंह श्योकन्द

सत्यपाल सिवाच

 

हरियाणा के कर्मचारी आन्दोलनों की चर्चा चलती है तो सबसे पहले फूलसिंह श्योकन्द का नाम आता है। उनके नेतृत्व में सन् 1986-87 और 1993 के दोनों ही सर्वाधिक चर्चित आंदोलन लड़े गए। जीन्द जिले के उचाना खुर्द गांव में श्री माईराम व श्रीमती नन्हीं देवी के यहाँ 27 फरवरी 1958 को ऐसे सपूत ने जन्म लिया जिसने छात्र जीवन में ही विशेष पहचान बना ली थी। फूलसिंह ने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार से बी.एस.सी.एग्रीकल्चर (ऑनर्स) पास किया है। वे दो बार छात्र संघ के निर्वाचित अध्यक्ष रहे। उन्हीं के नेतृत्व में 1979 में रियायती बस पास के लिए आन्दोलन चला और छात्रों को केवल साढ़े तीन टिकट के पैसे देकर मासिक बस पास की सुविधा मिली थी। वे सन् 1980 में कृषि विकास अधिकारी नियुक्त हुए और सन् 1995 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।

सेवानिवृत्ति के पश्चात वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के साथ जुड़ गए और वर्षों से पार्टी की राज्य कमेटी के सदस्य रहे हैं। उन्होंने मजदूर किसान की राजनीति को आगे बढ़ाने के मकसद से तीन बार हिसार सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा। लेकिन पहली बार करीब 56 हजार और दूसरी करीब 26 हजार ही वोट मिले जो शायद इस बात का संकेत था कि जनता उन्हें राजनीति के चुनावी अखाड़े के बजाय मेहनतकशों  के आंदोलनों की अगुवाई में ही देखना चाहती है?

वे अखिल भारतीय किसान सभा में सक्रिय हुए और उसके राज्याध्यक्ष रहे। सन् 2020-21 में चले किसान आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे कुशाग्र बुद्धि होने के साथ जटिल परिस्थितियों में आंदोलन को बाहर निकालने हुनर जानते हैं।

इसी के चलते वे सन् 1987 में 30 मार्च से 14 मई तक अनशन पर रहे थे। उस दौर में उनके धैर्य,  साहस और विवेक को बहुत करीब से देखने का अवसर मिला है। एक आदमी अन्न, दूध, जूस कुछ नहीं ले रहा है। शरीर जिन्दा रहने के संघर्ष में खुद का ही उपभोग कर रहा है। मांसपेशियां कमजोर हो रही हैं। हड्डियों का अस्थिपंजर कपड़ों से बाहर झलक रहा है। प्रतिदिन सुबह मिलने जाते हुए मेरे दिमाग में सौ-सौ आशंकाएं जन्म लेती रहीं। जब चंडीगढ़ के सेक्टर 16 के जनरल अस्पताल में कुशलक्षेम जानने पहुंचता हूँ तो उन्हें देखते ही आशंकाएं छूमंतर हो जाती हैं। क्षीण शरीर से चमकती आँखें मुझे दिनभर के लिए मार्गदर्शन करके आश्वस्त कर देती हैं कि यही, हाँ यही रास्ता है।

भले ही कुछ लोग सोचते हों अथवा उनकी बेटियां या बेटा सोचते हों कि यदि वे किसी और पार्टी में होते तो न जाने कितने बड़े नेता बन जाते। मैं उनकी सोच को चुनौती नहीं देता लेकिन यह बताना चाहता हूँ कि जो अमूल्य प्रतिष्ठा और मान-सम्मान फूलसिंह श्योकन्द ने संघर्ष और बलिदानों से कमाया है, उसकी तुलना किसी धन-दौलत, संपत्ति अथवा ओहदों से नहीं की जा सकती है। यह हर कोई कर भी नहीं सकता है। वे योद्धा हैं, लड़े हैं, लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे। न्याय की लड़ाई लड़ते हुए जो सुकून मिलता है वह मायावी दुनिया में दुर्लभ है। जारी—(सौजन्य-ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक सत्यपाल सिवाच

लेखक का परिचय

सत्यपाल सिवाच हरियाणा के कर्मचारी नेता रहे हैं। हरियाणा विद्यालय अध्यापक संघ के पदाधिकारी रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक ट्रेड यूनियन नेता, एक वामपंथी विचारक, सामुदायिक मुद्दों पर सुंदर व तकनीकी शब्दों के माध्यम से लेखन करने में प्रवीण हैं। वह बीसियों वर्ष तक “अध्यापक समाज/अध्यापक लहर” पत्रिका के सम्पादक रहे हैं।