कोल्हू का बैल : दो सौ करोड़ महीना!

कहानी

कोल्हू का बैल :दो सौ करोड़ महीना!

अजय शुक्ल

खबर सुनकर कोल्हू का बैल बेचैन हो उठा। 12-12, 14-14 घंटे की हाड़तोड़ मेहनत। और अंत में थोड़ा सा भूसा। बस!

“बाँsss” उसने ज़ोर से आर्तनाद किया। गोल गोल घूमना बंद कर वह सहसा खड़ा हो गया।

लक्ष्मी माता ने दूर क्षीर सागर से बैल का रंभाना सुना। वे भागकर आईं। वे जानती थीं कि बैल रुका तो तेल निकलना बंद हो जाएगा। तेल नहीं निकलेगा तो धन नहीं पैदा होगा। तेली क्या खाएगा? आढ़ती क्या पिएगा? बेचारा पॉम ऑयल क्या करेगा? दो सौ करोड़ कैसे पैदा होंगे? आखिर मेरी पूजा के लिए धन तो चाहिए ही!

वे सीधे बैल के पास पहुंची। “क्या बात है, वरदराज!” लक्ष्मी जी ने पुचकारा।

“माते, इतनी मेहनत के बाद भी मुझे सिर्फ एक झावा भूसा! बस!!” बैल रोने लगा।

लक्ष्मी जी मुस्कुराईं, “तो क्या खाएगा?”

“वही, माते, जो यह तेली खाता है।”

लक्ष्मी जी की भृकुटि तन गई, “ये माते माते क्या लगा रखा है! मैं तेरी माता नहीं। बैल हो, बैल ही बने रहो। बैल की अम्मा होती है गऊ माता।”

“सॉरी मैम” बैल सहम गया, “देवी जी गऊ माता!कैसी माता! मेरी अम्मा का दूध घी तो यह तेली ही खा पी जाता है।”

लक्ष्मी जी मुस्कुराने लगीं। उन्हें बैल के मुंह से बगावत की बास आ रही थी। मामले की नज़ाकत भांप कर उन्होंने तेवर बदले और उपहास और झिड़कन मिले स्वर में बोलीं, “रे, बैल तू बुड्ढा होकर भी दूध पीने की लालसा करता है। छी, अम्मा का दूधू पीने में तुझे लाज न आएगी!”

बैल ने सर झुका लिया।

लक्ष्मी जी ने अंतिम प्रहार किया, ” खैर मना कि भारत में पैदा हुआ है। अमेरिका में होता तो किसी के पेट में होता… जा भूसा खा। अब हड़ताल न करना। जा, तेली के लिए तेल पैदा कर और भगवान का शुकराना अदा कर।”

“जी देवी जी” बैल फिर चलने लगा।

“गुड, अब रुकना नहीं। रुके तो अगला जन्म चीन में करा दूंगी। वहां बैल को जिंदा भूनकर खाते हैं।

लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो चुकी थीं।