आर्थिक आज़ादी और मजदूरों किसानों की सरकार ही कर सकती है आम्बेडकर के सपनों को साकार 

 मुनेश त्यागी

       दुनिया भर में बहुत सारे महान लोग पैदा हुए हैं जिन्होंने समाज में फैले शोषण, दमन, भेदभाव और आर्थिक कुरीतियों में बुनियादी परिवर्तन करने की कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने बहुत सारे लेख लिखे हैं, बहुत सारी कविताएं लिखी हैं और समाज का आहवान किया है कि वे एक मानवीय समाज की स्थापना करें। हमारे देश में भी इन्हीं लोगों में कबीरदास, रविदास, पेरियार, ज्योति बा फुले, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल, अशफाक आदि शामिल थे।

हमारे देश के ऐसे ही महापुरुषों में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर भी शामिल थे जिन्होंने भारतीय समाज में हजारों साल से फैले अन्याय, शोषण, दमन, अत्याचार, जुल्म, भेदभाव और अछूत समस्या पर अपने विचार व्यक्त किये, इनके समूल विनाश की बात कही और एक समता, समानता, न्याय और भाईचारे पर आधारित समाज व्यवस्था कायम करने की पूरे जीवन कोशिश की और इसके लिए भारतीय संविधान निर्माता समिति का नेतृत्व किया। आज यानी 6 दिसम्बर 1956 को उन्हीं का परिनिर्वाण दिवस है।

डॉ भीमराव आम्बेडकर 14 अप्रैल 1891 को पैदा हुए थे। भीमराव आम्बेडकर को अपने जन्म से ही संघर्षों का सामना करना पड़ा था उनके द्वारा सामना की गई छुआछूत की घटनाओं की सूची भी लम्बी है जैसे उनको सामाजिक अन्याय का सामना करना पडा, नाई ने उनके बाल नहीं काटे, गाड़ी वाले ने गाड़ी पर नहीं बिठाया, तांगे वाले ने तांगे पर नहीं बिठाया, पानी नहीं पीने दिया गया, मंदिरों में घुसने नहीं दिया गया, तालाबों से पानी नहीं पीने दिया गया, ऊंची जातियों ने कमरा नहीं दिया, सड़क पर चलने तक की मनाही उनको झेलनी पड़ी। आज उनकी पुण्यतिथि यानि महापरिनिर्वाण दिवस है।

आम्बेडकर अपने बचपन से ही पढ़ाकू प्रवृत्ति के विद्यार्थी थे। इसी खासियत के तहत उन्होंने शिक्षा की कई डिग्रियां हासिल कीं। एमए, एमएससी, डीएससी, पीएचडी, एलएलबी, बारएट ला आदि डिग्रियां उन्होंने हासिल कीं। वे भारतीय समाज में फैले जातिवाद को एक सामाजिक कोढ़ मानते थे और जातिवादी वर्ण व्यवस्था को कोढ़ समझते थे। आम्बेडकर ने क्या किया? उन्होंने जनता को वाणी दी, नारे दिए, लड़ना और संघर्ष करना सिखाया, कालेज खोले, अखबार और पत्र निकाले, लेखन किया, किताबें लिखीं, ज्ञान प्राप्ति की, जनता को जगाया, खतरे मोल लिए, तर्क करना सिखाया, शिक्षा का प्रचार किया, मनुस्मृति की होली जलाई, ब्राह्मणवाद की कब्र खोदी और श्रमिक एकता की बात की।

आम्बेडकर एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जिसमें भाईचारा हो, बंधुत्व हो, शोषण ना हो ,समता और समानता हो, अन्याय न हो, भेदभाव ना हो। ऐसे समाज की स्थापना के लिए पूरी जिंदगी लगे रहे। उन्होंने पत्थर खाए, जलसों का नेतृत्व किया, सत्याग्रह किए, तालाबों मंदिरों में प्रवेश कराए, जाति की खाई को पाटने वाला पुल बने, अन्याय और अत्याचार का विरोध किया। वे अवैज्ञानिकता, अंधविश्वासों, पाखंडों और अज्ञानता के जानी दुश्मन थे। वे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता की राजनीति के पक्षधर थे। मगर उनका स्पष्ट रूप से कहना था कि आर्थिक आजादी के बिना आजादी के कोई मायने नहीं हैं।

वे कहते थे कि बंधुत्व के बिना प्रजातंत्र, समता, समानता, न्याय, गणतंत्र, धर्मनिरपेक्षता सब अधूरे हैं। उनका कहना था कि अस्पृश्यता और असमानता के विनाश के लिए असली जनवाद और क्रांति की जरूरत है। वे विद्रोह का प्रतीक थे, विज्ञान के शिल्पी थे, अज्ञान, अत्याचार, दमन, भेदभाव के सतत संघर्षी और विद्रोही थे। उन्होंने अपने जीवन में नारा दिया,,, अस्पर्शता जलाओ, जातिभेद जलाओ, मनुस्मृति जलाओ और उन्होंने यह किया भी। उन्होंने भारत की जनता को गज़ब के नारे दिए,,, शिक्षित हो, संगठित हो और संघर्ष करो। उनके ये कमाल के नारे हैं जिन्हें आज हमारी जनता अपने संघर्षों में इस्तेमाल करती है। यह आज की मनुवादी सरकार के समय में और ज्यादा जरूरी हो गया है कि हम सब मिलकर इन नारों का इस्तेमाल करें और जनता को शिक्षित करें संगत संगठित करें और उन्हें संघर्ष के मैदान में उतारें, तभी जाकर अंबेडकर के सपनों के भारत की स्थापना की जा सकती है।

आम्बेडकर साहेब जन्मजात बागी थे। कांग्रेस से बगावत, गांधी से बगावत, हिंदू समाज से बगावत, जातिवाद से बगावत, वर्णवाद से बगावत। वे उच्च कोटि के त्यागी, तपस्वी, संघर्षी, अर्विराम विद्रोही, तेजस्वी वक्ता, लेखक, महान विचारक, आंदोलनकर्ता, चिरविद्रोही, पुस्तक प्रेमी, संयमी, मितव्ययी, पढ़ाकू और सत्रह अट्ठारह घंटे अध्ययन करने वाले मेहनती व्यक्ति थे।

उनकी लिखी पुस्तकों की सूची भी लंबी है जैसे,,,,1. शूद्र कौन, 2.जाति विनाश, 3.हिंदुत्व की पहेलियां, 4.भारत में जातियां, 5.भारत में खेती-बाड़ी और उनका निदान,6. रुपए की समस्या,7.पाकिस्तान का विचार और भारत की सबसे बड़ी किताब,,, 8.भारत का संविधान। वे स्पष्ट वक्ता थे, अपनी बात के पक्के थे, अपनी धुन के पक्के थे। वे पूंजीवाद के और ब्राह्मणवाद के जानी दुश्मन थे। वे इन दोनों को समाज का दुश्मन समझते थे। वे संविधान शिल्पी थे।

उन्होंने अपने मिशन को पूरा करने के लिए प्रोफेसर, लेक्चरर, जज जैसे पद छोड़ें, समाज सेवा के लिए नौकरी नहीं की और वकालत की, ताकि मजदूरों के संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सके। उनका मानना था कि हिंदू धर्म एक रोग है, एक विकृति है।यह अधिकांश जनों को धन संग्रह नहीं करने देता , अशिक्षित रखना चाहता है, निर्धन रखना चाहता है, अनपढ़ रखना चाहता है और मंदिर नहीं जाने देता।

हिंदुत्ववादी राष्ट्र के बारे में उनका कहना था कि “हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समता, भाईचारे का दुश्मन है, हिंदुत्ववादी राष्ट्र को किसी भी कीमत पर बनने से रोको” ,यह था उनका सपना। वे समरसता,आजादी, समानता, भाईचारे, जातीय एकता और समस्त श्रमिकों की एकता के हामी थे। वे मनुवाद, जातिवाद, वर्णवाद, जातीय शोषण, अन्याय, भेदभाव के शत्रु और घनघोर विरोधी थे। उन्होंने जो संविधान लिखा था आज उस पर जातिवाद, संप्रदायिकता, फासीवाद, पूंजीवाद, क्षेत्रीयता और भाषावाद के भयंकर खतरे और हमले किए जा रहे हैं। हमें किसी भी कीमत पर अंबेडकर साहब के इन विचारों को बचाना होगा और हमें आज यह सोचना है कि आखिर अंबेडकर साहब के सपने कैसे पूरे होंगे ।

इसमें हमारा एक ही कहना है कि आम्बेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए तमाम मेहनतकशों, मजदूरों, किसानों को, नौजवानों को, महिलाओं को एकजुट और शिक्षित किया जाये और उनको संघर्षौ के लिए एकजुट और प्रेरित किया जाये और किसानों मजदूरों की सरकार कायम की जाए, जनता की एकता कायम की जाये और जनता की एकजुटता को तोड़ने की हर कोशिश और मुहीम का डटकर मुकाबला किया जाये। आज एलपीजी ने यानी,,,, लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन की आर्थिक नीतियों ने आरक्षण को नाकाम कर दिया है और संविधान में जो सपने आम्बेडकर साहब ने संजोए थे, उनके लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। आज अंबेडकर के मिशन के रास्ते में अनेक समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हुई हैं। हमें मिलजुलकर इन्हें हराना है और इन्हें खत्म करना है।

आज हमें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना होगा। इन चुनौतियों का सामना किये बिना और समस्याओं का समाधान किए बिना, हम आम्बेडकर साहब के सपनों का भारत नहीं बना सकते, उनके सपनों को पूरा नहीं कर सकते। हमें जातिवाद और वर्णवाद से लड़ना है, सांप्रदायिकता से लड़ना है, सड़े हुए पूंजीवाद से लड़ना है, ऊंच-नीच की और बड़े छोटे की मानसिकता से लड़ना है और जनता की टूट से लड़ना है, उसके बिखराव से लड़ना है। हमें इन सब मुद्दों पर जनता को एकजुट करना होगा और मिलजुलकर लड़ाई लड़नी होगी और उनके सिद्धांतों को धरती पर उतारना होगा, तभी अंबेडकर के सपनों का भारत बनाया जा सकता है।

आज यह समझना भी जरूरी है कि वर्तमान पूंजीवादी शासन और साम्प्रदायिक ताकतों के गठजोड़ की सरकार, हमारे देश के एक अरब से ज्यादा दलितों, एससी, एसटी और ओबीसी की समस्याओं का हल नहीं कर सकती। इन जनविरोधी नीतियों की इस सरकार ने भारत के वर्तमान संविधान को केवल और केवल अमीर लोगों और पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाने का माध्यम बनाकर रख दिया है। डॉ आम्बेडकर ने सर्वहारा वर्ग और मजदूर किसानों की समस्याओं को हल करने का जो संविधान पेश किया था, आज वह संविधान उन समस्याओं को दूर नहीं कर पा रहा है।

आज संविधान में कुछ बुनियादी परिवर्तन करने की जरूरत है,,,, जैसे सबको शिक्षा, सबको काम, सबको रोजगार, सब में धन का सामान वितरण किए बिना डॉ आंबेडकर के सपनों को धरती पर नहीं उतर जा सकता। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि जनता को आर्थिक रूप से आजाद किया जाए और सारी जनता को अनिवार्य रूप से शिक्षा और रोजगार के बुनियादी अधिकार उपलब्ध करायें जाए और सारे एससी एसटी ओबीसी और किसानों मजदूरों को एकजुट करके संघर्ष के मैदान में उतारा जाए और किसानों और मजदूरों की सरकार बनाई जाये, तभी जाकर डॉक्टर आम्बेडकर के सपनों को धरती पर उतारा जा सकता है और केवल तभी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषण, जुल्म और अन्याय का खात्मा किया जा सकता है और केवल तभी समाज में समता, समानता, आपसी भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद कायम किया जा सकता है। डॉक्टर आम्बेडकर के बनाए गए संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को केवल धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी व्यवस्था कायम करके ही अमल में जा सकता है, इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।