ज़िन्दगी का खेल
ओमप्रकाश तिवारी
ज़िंदगी एक खेल है
हर कोई खेल रहा है
सबका खेल अलग है
कोई कबड्डी खेल रहा
कोई भाला फेंक रहा है
कोई ऊंची कूद कूद रहा
कोई टेनिस खेल रहा है
टेबल टेनिस की भी धूम है
निशानेबाज़ी का जलवा है
भारोत्तोलन हलवा नहीं है
मुक्केबाज़ी भी कम नहीं
पहलवानी भी चर्चा में है
मुक़ाबले में कराटे भी है
तैराकी की अपनी शान है
क्रिकेट तो सबकी जान है
बच्चे बूढ़े या हों जवान
सभी बोलें क्रिकेट महान
कोई स्विंग फेंक रहा है
कोई यार्कर डाल रहा है
स्पिनर के खूब जलवे हैं
किसी को विकेट के पीछे
तो किसी को बाउंड्री पर
कैच लपकवा ही रहा है
बैट्समैन को ख़तरे कई हैं
पर चौके छक्के लग रहे हैं
आसान नहीं स्विंग खेलना
यार्कर गेंद से पार पाना भी
कभी गेंदबाज़ बनता विजेता है
कभी बैट्समैन बाज़ी पलटता है
धुरंधर बल्लेबाज़ बोल्ड होता है
यार्कर पर भी छक्के पड़ जाते हैं
कैच लपक फ़ील्डर छा जाता है
चुस्त फ़ील्डर बाज़ी पलट देता है
विकेटकीपर भी स्टांप कर देता है
एक को आउट करने को 11 होते हैं
पर दूसरी तरफ़ भी इतने ही होते हैं
योगदान सबका टीम जीत जाती है
निजी खेल में टीम ही हार जाती है
पर ज़िंदगी का खेल अकेले खेला जाता है
यहां तो टीम हुनर आज़माने में लगी रहती है
अंतिम गेंद पर छक्का मारने वाले होते हैं
तो गेंद से गिल्ली उड़ा देने वाले भी होते हैं
निखारिये अपने हुनर को बेख़ौफ़ खेलिये
खिलाड़ी ही हारता है पर नियम से खेलिये
दिखाकर कलाकारी किसी मैच में छा जाएंगे
पर एक महान खिलाड़ी कभी नहीं बन पाएंगे