बच्चे को चांद नहीं चाहिए
ओमप्रकाश तिवारी
पैदा होते ही बच्चा
नहीं कहता है कि
उसे चांद चाहिए
सांस लेने के लिए
उसे आक्सीजन चाहिए
वह हमने खराब कर दी है
विकास के नाम पर
उसे पीने को पानी चाहिए
जिसे हमने बोतलों में भर दिया
पाट दिए पोखर-तालाब
कब्जा लिए नदियों के पाट
गिरा कर गंदे नाले
पानी को कर दिया गन्दा
साफ करने के नाम पर
भरते रहे कुछ लोगों की जेब
बीमार पड़ने पर उसे
अस्पताल चाहिए
उसे हमने बनाया ही नहीं
इसकी जिम्मेदारी दे दी
लालची धनपतियों को
उन्होंने सभी की पहुंच वाला
अस्पताल बनाया ही नहीं
बड़ा होने पर उसे चाहिए
स्कूल और कॉलेज
उसे तो बनाया ही नहीं
जो बने थे उन्हें संभाला ही नहीं
यह जिम्मेदारी दे दी
पैसे से पैसा बनाने वालों को
उन्होंने विद्यालय बनाया ही नहीं
हम बना रहे हैं एक राष्ट्र
जिस देश में हैं कई प्रान्त
जिनका भूगोल है भिन्न
बोली-बानी भी है अनेक
भेष-भूषा भी अलग-अलग
जो है विभिन्न फूलों का गुलशन
उसे बनाने पर तुले हैं जंगल
जिद है चांद पर जाने की
मगर धरती पर
नहीं आने दे रहे
चांद की चांदनी
धरती की बस्तियां उजाड़ कर
बसाने चले हैं चांद पर शहर
जिस नाले में डूब गए बड़े-बड़े
उसमें उतरने से पहले
पूछ रहे हैं कितना है पानी…
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