ओमप्रकाश तिवारी की कविता -किसी पथिक के लिए…

कविता

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किसी पथिक के लिए…

ओमप्रकाश तिवारी

बहुत बड़े हैं

फलदार नहीं हैं

मांगो तो भी क्या

खुद ही दबे हैं

धरती के उपकार पर

तेजी से बढ़ रहे हैं

चेताया है आंधियों ने 

पर सबक सीखा नहीं

आएगा तूफान एक दिन

उखड़े पड़े मिलेंगे

तब शायद याद आये

फलदार नहीं होने का अर्थ

छ्यादार नहीं होने का दर्द

उखड़ीं जड़ें अफसोस करेंगी

कुछ और फैल गईं होतीं

कुछ और गहरे चलीं गईं होतीं

यह भी समझ आएगी कि

बड़े होने से अच्छा होता है

फलदार होना

छायादार होना

फिक्रमंद होना

किसी पथिक के लिए…