दुर्गम पथ
ओमप्रकाश तिवारी
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हे पथिक
प्रत्येक पथ
सुगम नहीं होते
यात्रा काल में
अनेक दुर्गम मार्गों से
पड़ता है पाला
वही राही पहुंचता है
मंजिल तक
जिसे भाते हैं
दुर्गम पथ
सुगम पथ से
उपजती है आस्था
जो बनाती है
विचार शून्य
तर्कहीन
कर देती है
सृजन से विमुख
दुर्गम पथ पर
मिलती हैं चुनौतियां
जागती है जिज्ञासा
उपजते हैं तर्क
शंकाओं आशंकाओं से
निकलते हैं विचार
फूटती है सृजन की धारा
मिलती है मंजिल
अलौकिक हो जाती है राह
जानते हो पथिक
दुर्गम से ना निकलती गंगा तो
नहीं पहुंचती
गंगासागर तक
शीतल भी ना होती
ना ही कहलाती
पतित पावनी
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