ओमप्रकाश तिवारी की कविता -तानाशाही

तानाशाही

ओमप्रकाश तिवारी

वो आएगी

सजधज कर

मुस्कुराते हुए

रक्ताभ होंगे

उसके होंठ

जनमत के दरवाजे से

प्रवेश करते समय

पैरों में बज रहा होगा

लोकतंत्र का घुंघुरू

स्वागत में पुष्प वर्षा

कर रहे होंगे

अनगिनत खबरनवीस

जिन्हें भेजा होगा

उनके आका ने

प्रशस्तिगान लिखने के लिए

मुस्कुराते हुए

तालियां बजा रहे होंगे

अनेक ऐसे लोग

जिन्हें कुछ लोगों ने

चुना होगा

अपना प्रतिनिधि

वह हाथ जोड़े

मंद मंद मुस्कुराते हुए

लाल कालीन पर

खाल की जूती से

फूलों की पंखुड़ियों को

हौले-हौले रौंदती हुई

बढ़ जाएगी आगे

सिंहासन पर बैठा होगा

उसका प्रियतम

बगल में वह भी

बैठ जाएगी..

चीखों से

गूंज रहा होगा

राजमहल

मगर उन्हें सुनाई देगा

मधुरगान

इसके लिए वह

पुरस्कृत करेंगे

किसी संगीतज्ञ को

किसी कलाकार को

किसी कवि और

किसी लेखक को

अभिनेता और

निर्देशक को भी

आखिर इन्होंने ही

उसे अपनी फिल्म में

दिखाया है महानायक

बताया है जननायक

इस तरह हौले हौले

प्रवेश होगा उसका

विभिन्न फूलों से लकदक

तमाम पेड़ों की हरियाली से

गमकते उपवन में

इसके बाद क्या होगा

जानते हैं सभी

जो नहीं जानते

उन्हें पढ़ना चाहिए

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