बिहार को ‘अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता’ का कॉकटेल परोस रहे हैं नीतीश : दीपांकर भट्टाचार्य

बिहार विधानसभा चुनाव

भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का साक्षात्कार

बिहार को ‘अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता’ का कॉकटेल परोस रहे हैं नीतीश

पटना। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आरोप लगाया है कि वह राज्य की जनता को “तीन सी”—अपराध (क्राइम), भ्रष्टाचार (करप्शन) और सांप्रदायिकता (कम्युनलिज्म) का “कॉकटेल” परोस रहे हैं, जबकि इन पर समझौता न करने का वादा उन्होंने खुद किया था।

भट्टाचार्य ने यहां समाचार एजेंसी पीटीआई से विशेष बातचीत में कहा, “राज्य की स्थिति भयावह है। नीतीश कुमार, जो स्वयं को ‘जंगलराज’ खत्म करने वाला बताते हैं, अब उसी बिहार पर शासन कर रहे हैं जहां अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता का गठजोड़ सरकार चला रहा है।”

उन्होंने कहा, “नीतीश जी कहा करते थे कि वे तीन ‘सी’—अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता पर कभी समझौता नहीं करेंगे, खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ जाने के बाद। लेकिन अब उनके शासन में केवल समझौता नहीं, बल्कि इन तीनों का घातक कॉकटेल तैयार हो गया है।”

भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि राज्य में “अपराधियों, नेताओं और पुलिस अधिकारियों का एक गठजोड़ सरकार चला रहा है। यही गठबंधन असली सत्ता है, न कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)।”

उन्होंने हाल में पटना के एक निजी अस्पताल में हुई हत्या की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, “राज्य में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्म की घटनाएं हकीकत बन चुकी हैं। राजधानी पटना के पॉश इलाके स्थित पारस अस्पताल में दिनदहाड़े चंदन मिश्रा की हत्या कर दी गई और अपराधियों के चेहरे साफ तौर पर सीसीटीवी में कैद हो गए।”

भाकपा (माले) लिबरेशन के नेता ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के शासनकाल के दौरान कानून-व्यवस्था के रिकॉर्ड को लेकर उठाए जा रहे सवालों का अब जनता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

उन्होंने कहा, “राजद अब वह पार्टी नहीं रही जो दो दशक पहले थी। हमने भी उससे अपने पुराने मतभेद पीछे छोड़ दिए हैं।”

भट्टाचार्य ने यह भी उल्लेख किया कि “पिछले विधानसभा चुनाव में हम सरकार बनाने के बेहद करीब पहुंच गए थे, परंतु बहुमत से कुछ सीटें कम रह गई थीं।”

भाकपा (माले) लिबरेशन, राजद और कांग्रेस समेत अन्य दल इस बार भी विपक्षी गठबंधन के हिस्से के रूप में बिहार विधानसभा चुनाव मैदान में हैं।

भट्टाचार्य ने दावा किया है कि चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासी बिहारियों के बीच राज्य की तुलना में अधिक समर्थन मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात पर आश्चर्य नहीं हुआ कि किशोर ने अंततः खुद चुनाव मैदान में उतरने का फैसला नहीं किया। उन्होंने स्वीकार किया कि वह जनसुराज को भाजपा की तरह “लोकतंत्र के लिए खतरा” नहीं मानते।

भट्टाचार्य ने कहा, “मेरा मानना है कि जनसुराज पार्टी ने मुख्य रूप से दिल्ली जैसे स्थानों पर रहने वाले प्रवासी बिहारी मजदूरों के बीच एक उत्सुकता पैदा की है। उन्होंने पहले अरविंद केजरीवाल पर भरोसा जताया था और अब उन्हें प्रशांत किशोर में वही उम्मीद दिखाई देती है जो कभी आम आदमी पार्टी ने दिखाई थी।”

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन बिहार की कहानी अलग है। यहां लोगों के बीच जनसुराज पार्टी को वैसा जनसमर्थन नहीं मिला है। बिहार में चुनावी जंग खुली है। प्रशांत किशोर पिछले कई महीनों से राज्य का दौरा कर रहे हैं, शायद इसी दौरान उन्होंने जमीनी हकीकत को समझ लिया, जिसके चलते उन्होंने खुद चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया होगा।”

जब भट्टाचार्य से पूछा गया कि जन सुराज पार्टी ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए कितना खतरा बन सकती है, तो उन्होंने कहा, “मैं किसी नई पार्टी को खतरे के रूप में देखने में विश्वास नहीं रखता। लोकतंत्र में जितनी अधिक आवाज़ें हों, उतना बेहतर है। जब तक आप भाजपा की तरह लोकतंत्र और संविधान के लिए वास्तविक खतरा न हों।”

कोलकाता के ‘इंडियन स्कूल ऑफ स्टैटिस्टिक्स’ से स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल करने वाले भट्टाचार्य ने जन सुराज पार्टी के पिछले उपचुनावों में प्रदर्शन का हवाला देते हुए उसके भविष्य का अनुमान लगाया।

उन्होंने कहा, “पिछले विधानसभा उपचुनावों में जनसुराज पार्टी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से दो सीटों पर उसे 5,000 से अधिक वोट नहीं मिले। वहीं अन्य दो सीटों पर स्थानीय परिस्थितियों के कारण 15,000 से 20,000 वोट हासिल हुए। इससे साफ है कि पार्टी का प्रभाव मुख्य रूप से स्थानीय कारकों पर निर्भर करता है। हमें नहीं लगता कि वह आगामी चुनाव में कोई बड़ी भूमिका निभा पाएगी।”

भट्टाचार्य ने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे और उम्मीदवारों की घोषणा में हो रही देरी गठबंधन के ‘विसर्जन का नहीं बल्कि विस्तार का संकेत’ है।

उन्होंने कहा कि इस बार गठबंधन में अधिक दल शामिल हैं, जिसके चलते बातचीत में समय लग रहा है। उन्होंने कहा, “लोगों को लग सकता है कि ‘इंडिया’ गठबंधन में गतिरोध है, लेकिन देरी की वजह यही है कि इस बार हमारे साथ पहले से ज्यादा सहयोगी जुड़े हैं। यह बिखराव नहीं, बल्कि विस्तार का संकेत है।”

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए चुनाव दो चरणों में छह और 11 नवंबर को होंगे, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। पहले चरण के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि शुक्रवार है।

भट्टाचार्य ने बताया कि उनकी पार्टी इस बार भी लगभग उतनी ही सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी जितनी पिछली बार लड़ी थी। भाकपा (माले) लिबरेशन पिछले विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उनमें से 12 पर जीत हासिल की थी।

उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अगर राजद नेतृत्व वाला गठबंधन सत्ता में आता है तो उनकी पार्टी सरकार में शामिल हो सकती है।

उन्होंने कहा, “सरकार में शामिल होना कोई वर्जित बात नहीं है। पिछली बार हम महागठबंधन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे थे क्योंकि हमें भरोसा नहीं था कि नीतीश कुमार हमारे साथ लंबे समय तक रहेंगे और हमारी आशंका सही साबित हुई जब वे राजग में लौट गए।”

भट्टाचार्य ने बताया कि 2020 में महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, भाकपा (माले), भाकपा और माकपा शामिल थे, जबकि इस बार इसमें पूर्व मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी जुड़ गई है। इसके अलावा, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झामुमो के साथ भी कुछ सीमावर्ती जिलों की सीटों को लेकर बातचीत जारी है।

भट्टाचार्य ने दावा किया कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया से राज्य के लगभग 10 प्रतिशत मतदाताओं को मतदान अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

उन्होंने कहा, “यह ऐसी कवायद थी जिसका कोई उदाहरण न बिहार में है, न किसी और राज्य में। चुनाव आयोग का दावा है कि मतदाता सूची को शुद्ध किया गया है, लेकिन इसमें पहले से अधिक गड़बड़ियां हैं। हमने पहले ही चेताया था कि 2 से 2.5 करोड़ मतदाता अपने अधिकार से वंचित हो सकते हैं। हमारी लड़ाई से कुछ हद तक यह रोका जा सका, पर अब भी हर दसवां मतदाता का नाम कांटे गए है।”

आयोग के आंकड़ों के अनुसार, विशेष पुनरीक्षण से पहले राज्य में 7.9 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से करीब 65 लाख नाम प्रारंभिक सूची से हटाए गए और आपत्तियों के निपटारे के बाद 3.66 लाख और नाम मिटा दिए गए। वहीं 21.53 लाख नए “योग्य मतदाता” जोड़े गए, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें कितने नए मतदाता हैं और कितने गलत तरीके से हटाए गए थे।

भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने लोगों में लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई है।

उन्होंने कहा, “इस यात्रा ने लोगों को यह एहसास कराया कि उनका लोकतांत्रिक अधिकार खतरे में है। स्वाभाविक है कि ऐसे सतर्क मतदाता एनडीए को सत्ता से बाहर करना चाहेंगे, और इससे इंडिया गठबंधन को फायदा होगा।”

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