भारत में आस्था और विज्ञान के बीच टकराव की पड़ताल करती नयी किताब
नयी दिल्ली । अंतरिक्ष अभियानों और तकनीक के इस युग में भी ईश्वर, चमत्कार और अंधविश्वास क्यों कायम हैं? एक नयी किताब “फ्रॉम मिथ्स टू साइंस” इसी विरोधाभास पर प्रकाश डालती है और बताती है कि कैसे विज्ञान ने पारंपरिक विश्वास प्रणालियों को चुनौती दी है।
वैज्ञानिक, कवि और फिल्मकार गौहर रजा द्वारा लिखित यह पुस्तक बताती है कि किस प्रकार मानव समझ प्राचीन मिथकों से विकसित होकर तर्कसंगत विचारों तक पहुंची है, तथा किस प्रकार विज्ञान आधुनिक भारत में सार्वजनिक जीवन को नया आकार दे रहा है।
चंद्र और मंगल मिशनों से लेकर डिजिटल नवाचार तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति के बावजूद अंधविश्वास, ज्योतिष और छद्म विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा से लेकर चुनावों तक, रोज़मर्रा के फैसलों को प्रभावित करते रहते हैं। यह पुस्तक इस विरोधाभास की तीखी आलोचना करती है।
यह पुस्तक भारत के संवैधानिक वादे को भी प्रतिबिंबित करती है, जिसमें तर्क और वैज्ञानिक सोच पर आधारित समाज को बढ़ावा देने का वादा किया गया है। लेखक के अनुसार यह दृष्टिकोण आज पहले से कहीं अधिक जरूरी है।
प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (पीआरएचआई) के अनुसार “फ्रॉम मिथ्स टू साइंस” पुस्तक “छात्रों, नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों, विचारकों और देश के लोकतांत्रिक भविष्य में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति” के लिए अनुशंसित है।
उदाहरण के लिए, मिशिगन विश्वविद्यालय के शोध वैज्ञानिक एमेरिटस प्रोफ़ेसर जॉन डी. मिलर ने इसे “मिथक और विज्ञान की साझा जड़ों का उत्कृष्ट विश्लेषण” बताया।
इसी तरह, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पूर्व प्रोफ़ेसर मृदुला मुखर्जी इसे “मिथक और आस्था से विज्ञान के उदय का एक उत्कृष्ट विवरण” कहती हैं।