औरतों के लिए और औरतों के साथ
मुनेश त्यागी
औरत मानवता की जननी
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औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाजार दिया,
जब जी चाहा मसला कुचला
जब जी चाहा दुत्कार दिया।
जननी
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जब जी चाहा मसला कुचला
मां बहन का रिश्ता ना माने,
औरत है खिलौना उनके लिए
जननी के फरज को क्या जाने।
महान बेटों
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बेटी मारी, बहू जलाई
औरत को भी रौंद दिया,
भारत के महान बेटों
यह क्या तुमको हो गया?
आंचल
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तेरे माथे पे यह आंचल
बहुत ही खूब है लेकिन,
इस आंचल को एक परचम
बना लेती तो अच्छा था।
अंतर्निहित भेदभाव
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मां, बेटे के लिए…
उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूं मुंह धो लो।
मां, बेटी के लिए…
मीरा जल्दी उठ
गगरी उठा,
कुए पर जा
पानी ला।
औरत को सबसे बड़ी गाली
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ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी,
यह सब ताड़न के अधिकारी।
जिस घर में बेटी नहीं
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बच्चों से मानव वंश चले
बच्चे हैं घर की शान,
पर जिस घर में बेटी नहीं
वह घर ठहरा रेगिस्तान।
मांगे चार
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हर बेटी की मांगे हैं चार
शिक्षा सेहत हक और प्यार।