मास्टर वजीर सिंह – जागरूक और जुझारू नेता

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 45

 मास्टर वजीर सिंह – जागरूक और जुझारू नेता

सत्यपाल सिवाच

अध्यापक आंदोलन के मौजूदा समय के चर्चित चेहरों में वजीर सिंह का भी बड़ा नाम है। वे प्रखर बुद्धि, अच्छे वक्ता और जुझारू नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म 20 जनवरी 1961 को एक मध्य वर्ग किसान परिवार में गांव धनाना जिला भिवानी (उस समय हिसार) में नंबरदार अमर सिंह और भंती देवी के यहां हुआ। उनकी आठवीं तक की शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। बचपन से ही होनहार होने के कारण वे कक्षा में प्रथम आते। उन्हें पांचवीं, आठवीं व दसवीं में छात्रवृत्ति मिली। आठवीं के बाद उन्हें अपने समय के प्रसिद्ध संस्थान एस.डी. हाई स्कूल जीन्द में भेजा गया। उच्च शिक्षा के लिए वे पहले डी. एन. कालेज हिसार और बाद में राजकीय महाविद्यालय भिवानी में पढ़े, जहां बी.एस.सी. परीक्षा पास की। किरोड़ीमल शिक्षण महाविद्यालय भिवानी से बी.एड. तथा राजनीति शास्त्र में मास्टर की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे 7 सितम्बर 1984 को अस्थायी शिक्षक नियुक्त हो गए तथा 1 नवंबर 1986 से नियमित सेवा में आए।

हिसार के डी.एन. कालेज में एस.एफ. आई. के संपर्क में आए और इस संपर्क ने उनका जीवन बदल दिया। वे एक प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विकसित होने लगे। अस्थायी सेवा में आते ही उनकी नियुक्ति खानक स्कूल में हो गई, जहां मास्टर शेर सिंह भी कार्यरत थे। वे अस्थायी एवं बेरोजगार अध्यापक संघ में तो सक्रिय थे ही और साथ ही 1986 के संघर्ष में भी कूद पड़े। सन् 1986-87 के आंदोलन में चण्डीगढ़ में डेरा डाला गया तो अस्थायी होते हुए भी इसमें शामिल रहे। युवा साथियों की इस टीम में सत्यपाल सिवाच उनके साथ रहे। लड़ाई कामयाब हुई। नौकरी पक्की हो गई, चौथा वेतन आयोग और बोनस भी। हौसले बुलंद हो गए।

वे 1986-88 में तोशाम और 1988-90 में बवानीखेड़ा खण्ड के प्रधान रहे। सत्र 1990-92 व 1992-94 में भिवानी के जिला सचिव निर्वाचित हुए। उन्हें 1994 में प्रांतीय सहसचिव और 1996 व 1998 में उप महासचिव चुना गया। सन् 2000 में 2004 तक वे दो बार कोषाध्यक्ष, 2006-08 में संगठन सचिव, 2004-06 व 2008-11 तक महासचिव तथा 2011-14 व 2014-17 तक प्रांतीय अध्यक्ष रहे। अब प्रेस सचिव के रूप में अपना योगदान दे रहे हैं। वजीर सिंह 31 जनवरी 2019 को मुख्याध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए।

अध्यापक संघ का प्रतीक चिह्न विकसित करने में भी वजीर सिंह व ऋषिकान्त शर्मा की ही विशेष भूमिका रही है। वजीर सिंह 2000 से 2003 तक सर्व कर्मचारी संघ के राज्य संगठन सचिव और 2011-13 तक प्रेस सचिव की जिम्मेवारी भी निभा चुके हैं व जिला स्तर पर भी सर्वकर्मचारी संघ के प्रधान रहे। वे 1997 में सी.सी.एस.टी.ओ. के गठन संबंधी आयोजन में शामिल थे। बाद में सन् 2000 व 2003 में उन्हें एस.टी.एफ.आई. का सचिव चुना गया। वजीर सिंह को अब तक सभी राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रतिनिधि होने का गौरव हासिल है। वे दो बार अन्तर्राष्ट्रीय अध्यापक सम्मेलनों में भी प्रतिनिधि रहे। हाल में रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा के अध्यक्ष, अखिल भारतीय पेंशनर्स फेडरेशन के उपाध्यक्ष और हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति भिवानी के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

वजीर सिंह ज्ञान-विज्ञान आंदोलन के कार्यकर्ता हैं। जन शिक्षा अधिकार मंच में सक्रिय हैं। अध्ययनशील होने के कारण राजनीतिक-सांगठनिक शिक्षक हैं। वे कई बार जेल गए, निलंबित हुए, यातनाएं झेलीं, पुलिस का दमन सहा, किन्तु अदम्य उत्साह के साथ डटे रहे। उनकी पत्नी बिमला महिला आंदोलन की नेता हैं। बड़ी बेटी विभूति फार्मा में वैज्ञानिक है, छोटी बेटी विदुषी सहायक प्रोफेसर हैं और बेटा स्वतंत्र विवेक और पुत्रवधू दोनों कैग में अधिकारी है। दोनों बेटियां विवाहित हैं। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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