मंजुल भारद्वाज की कविता- रंगकर्म

कविता

रंगकर्म

-मंजुल भारद्वाज

एक समय में दो किरदार

एक पात्र,एक अदाकार

एक मूल,एक इश्तिहार

एक जीवन,दूजा कथाकार

एक दृश्य,एक दृश्यांतर

एक रचयिता,एक रचित

एक देह पर अलग चित

एक के अंदर दूजा समाए

काल को अपने साथ मिलाए

एक के रंग में ढले है दूजा

कर्म है उनका असल में पूजा

एक जीवन है दूजा मंच

एक चेहरा,एक मुखौटा

एक सच्चा,एक खोटा

झूठ का करें पर्दाफाश

सच से नहीं कहीं समझौता

रंगमंच पर जीवन ले आकार

सरोकारी संकल्पनाएं हों साकार

एक दर्शक, एक कलाकार!

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