कालचक्र के सफ़ों पर
मंजुल भारद्वाज
सूर्य की रौशनी
वसुंधरा की गति से
चन्द्रमा की भांति
शरीर की घटती बढती आकृतियां
चुनौतियों और हासिल का पैमाना हैं !
जीवन दृष्टि की सृष्टि के
बढ़ते क़दम दर क़दम
मंज़िल का पैमाना है !
कितना पा लिया
कितना छूट गया
कितना बह गया
कितना समेट लिया
कितना ‘जी’ लिया
कितना रह गया
कालचक्र के आईने से
गुजरते मनुष्य का
कालचक्र के सफ़ों पर
दर्ज़ जीवन का सफ़रनामा है!
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