कविता
क्या हिंसा ईश्वरीय गुण है?
-मंजुल भारद्वाज
धर्म के नाम पर युद्ध
धर्म के लिए युद्ध
ईश्वरीय अवतार का युद्ध
क्या हिंसा ईश्वरीय गुण है?
या
मानवीय दोष !
तो वो कौन हैं
जो सत्ता स्वार्थों के लिए
ईश्वर का हिंसक रूप सदियों से
प्रस्थापित और प्रचारित कर रहे हैं !
युद्ध, हिंसा,रक्तपात,मनुष्यता के खिलाफ़ हैं !
वो कौन है जो
ईश्वर के नाम पर हिंसा को
धार्मिक मान्यता दिला रहे हैं
हर पल, हर रोज़, हर त्योहार
जहाँ देखो,जिस रूप में देखो
नर, नारी, प्राणी हर तरफ
ईश्वरीय अवतार की हिंसा
वध का महिमामंडन है!
गजब का षड्यंत्र रचा है
सारे धार्मिक ग्रंथो में
प्रेम नहीं युद्ध का प्रचार है !
वो कौन है जो
माँ भगवती की पूजा करते हैं
और प्रचारित करते हैं
जननी के स्पर्श से
भगवान भ्रष्ट हो जाते हैं !
क्या ये धर्म के नाम पर
सत्ता युद्ध नहीं हैं
सत्ता के युद्धों को
धर्म के नाम पर
सामाजिक स्वीकृति के लिए
ईश्वरीय अवतार की कल्पना को
जनमानस में रचाया बसाया गया
सभ्यता, संस्कृति का नाम दिया गया
हिंसा किस सभ्य समाज की सभ्यता है?
जो हिंसक है क्या वो सभ्य है?
हिंसा का ईश्वरीय अवतार
सत्ता लोलुपों की धर्मांध विक्षिप्तता है !
सत्ता लोलुपों के इस षड्यंत्र से
मनुष्यता को बाहर निकलने की ज़रूरत है !
स्मरण रहे हिंसा नहीं
प्रेम मानवता की बुनियाद है !
अगर कहीं ईश्वर है तो युद्ध नहीं
संवाद होता है !
नहीं तो होता है सत्ता का युद्ध
सत्ता के लिए युद्ध
जिसे सत्ता लोलुप
जनमानस की आस्था को जला
धर्मान्धता के पाखंड की बलि चढाते हैं !
युगों युगों तक इन पाखंडों का
सत्ताधीश ढोल पीटते हैं
क्योंकि वो जानते हैं
ये धर्म सत्ता का खेल है !
मानवता का मूल है प्यार
मानवता प्रेम का सागर
जिसका मन्त्र हैं
संवाद,संवाद सिर्फ़ संवाद!
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