कविता
क्या कार्ल मार्क्स एक प्रेम कवि हैं?
– मंजुल भारद्वाज
जीवन में प्रेम ना हो
तो क्या
जीवन जीवन है?
जीवन में प्रेम ना हो
तो क्या
विचार पनपता है?
जीवन में सामनुभुति ना हो
तो क्या
सामाजिक संवेदना जन्मती है ?
जीवन में प्रेम ख़त्म हो जाए
तो क्या
सिद्धांत, तर्क का अर्थ होता है?
जीवन के प्रति प्रेम ही
जीजिविषा है
स्वप्न है
समता,न्याय,शांति को पैग़ाम है !
सामंतवाद,पूंजीवाद ने
जीवन को जीने की बजाए
ढोने वाला बोझ बना दिया !
जीवन को ढोता सर्वहारा
जीवन से विमुख हो गया
गुलामी को नियति मान बैठा !
मार्क्स ने अपने दर्शन से
जीवन के प्रति प्रेम जगाया !
गुलामी नियति नहीं
मानव निर्मित शोषण षड्यंत्र है
इस चेतना को सर्वहारा में जगाया !
क्या मार्क्स सबसे बड़ा
प्रेम दार्शनिक
जीवन प्रेमी
मानव प्रेमी
प्रेम कवि नहीं है?
