आलोक वर्मा
नीति आयोग की बैठक में कुछ अप्रत्याशित नहीं हुआ। नीति आयोग की हेडलाइन ममता बनर्जी ले गईं, अध्यक्षता करने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ कुछ नहीं आया। ममता बनर्जी महफ़िल लूट ले गईं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की बैठक छोड़कर बाहर निकल आईं। बनर्जी ने आरोप लगाया कि उन्हें भाषण के दौरान बीच में ही रोक दिया गया। हालांकि, सरकार ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनको बोलने के लिए दिया गया समय समाप्त हो गया था।
ममता बनर्जी यह जानते हुए बैठक में शामिल हुईं जब संपूर्ण विपक्ष ने बहिष्कार की घोषणा कर रखी थी। लेकिन ममता ने अपना अलग रुख अपनाया। इंडिया गठबंधन की एकजुटता का दिखाने का मौका आया तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने उसे पूरा नहीं होने दिया। पहले भी आरोप लग चुका है कि मुख्यमंत्रियों की बैठकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही बोलते हैं। लेकिन इस बार ममता को दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कम समय देना भेदभाव वाले रवैये की तस्दीक करता है। विपक्षी नेता बनर्जी ने आरोप लगाया कि उनके भाषण के पांच मिनट बाद उनका माइक्रोफोन बंद कर दिया गया, जबकि आंध्र प्रदेश, गोवा, असम और छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ज्यादा समय तक बोलने की अनुमति दी गई। ममता ने आरोप लगाया तो सरकार के मंत्री, सरकारी तंत्र और भाजपा के लोग सफाई देने कूद पड़े। बयान दर बयान आने लगे। उधर, ममता बनर्जी के समर्थन में इंडिया गठबंधन आ गया है। अब आगे देखिए क्या क्या होता है।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि नयी दिल्ली में नीति आयोग की शासी परिषद की बैठक से बाहर निकलने के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ने कहा, ‘‘यह अपमानजनक है। मैं आगे से किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लूंगी।’’
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि नीति आयोग की शासी परिषद की बैठक में ममता बनर्जी को बोलने के लिए पूरा समय दिया गया।
सीतारमण ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘उन्होंने (ममता) पूरे समय तक बोला। हमारी मेज के सामने लगी स्क्रीन पर समय दिखाया जाता रहा। कुछ अन्य मुख्यमंत्रियों ने अपने निर्धारित समय से अधिक समय तक बात की। उनके अनुरोध पर, बिना किसी शोर-शराबे के अतिरिक्त समय दिया गया। माइक बंद नहीं किए गए, किसी के लिए नहीं, खास तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए नहीं।’’
बनर्जी के नीति आयोग की बैठक से बीच में ही बाहर निकलने को लेकर तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच जुबानी जंग छिड़ गई। भाजपा ने मुख्यमंत्री के इस कदम को ‘‘नाटक’’ बताया, जबकि बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी ने केंद्र पर विपक्ष की आवाज दबाने और सहकारी संघवाद को कमजोर करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस ने कहा कि ममता बनर्जी के साथ किया गया व्यवहार ‘‘अस्वीकार्य’’ है और आरोप लगाया कि नीति आयोग 10 साल पहले अपनी स्थापना के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘‘ढोल पीटने’’ वाले तंत्र के रूप में काम कर रहा है।
केंद्रीय बजट में गैर-राजग शासित राज्यों के साथ कथित भेदभाव को लेकर पश्चिम बंगाल को छोड़कर, कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्रियों और अन्य विपक्षी शासित राज्यों ने बैठक का बहिष्कार किया।
बनर्जी ने आरोप लगाया कि उन्हें पर्याप्त समय न देकर ‘‘अपमानित’’ किया गया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को ‘‘बोलने के लिए 20 मिनट दिए गए, और असम, गोवा तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने 10-12 मिनट तक बात की तथा मुझे पांच मिनट बाद ही बोलने से रोक दिया गया।’’
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘विपक्ष की तरफ से मैं यहां अकेली नेता हूं। मैंने बैठक में इसलिए हिस्सा लिया, क्योंकि सहकारी संघवाद को मजबूत किया जाना चाहिए।’’
हालांकि, ‘पीआईबी फैक्टचेक’ ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि यह कहना ‘‘भ्रामक’’ है कि बनर्जी का माइक्रोफोन बंद कर दिया गया। पोस्ट में कहा गया कि घड़ी के अनुसार उनका बोलने का समय समाप्त हो गया था।
पोस्ट में कहा गया कि वर्णानुक्रम के अनुसार, ममता बनर्जी की बोलने की बारी दोपहर के भोजन के बाद आती, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार के आधिकारिक अनुरोध पर उन्हें सातवें वक्ता के रूप में बोलने की अनुमति दी गई, क्योंकि उन्हें जल्दी कोलकाता लौटना था।
टीएमसी सुप्रीमो ने कहा, ‘‘मुझे कुछ राज्यों पर विशेष ध्यान देने से कोई समस्या नहीं है। मैंने पूछा कि वे अन्य राज्यों के साथ भेदभाव क्यों कर रहे हैं। इसकी समीक्षा की जानी चाहिए। मैं सभी राज्यों की ओर से बोल रही हूं। मैंने कहा कि हम वे हैं जो काम करते हैं, जबकि वे केवल निर्देश देते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नीति आयोग के पास कोई वित्तीय शक्तियां नहीं हैं, तो यह कैसे काम करेगा? इसे वित्तीय शक्तियां दें या योजना आयोग को वापस लाएं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘योजना आयोग राज्यों के लिए योजना बनाता था। नीति आयोग के पास कोई वित्तीय शक्तियां नहीं हैं। यह कैसे काम करेगा? इसे वित्तीय शक्तियां दी जाएं या योजना आयोग को वापस लाया जाए।’’
नीति आयोग की बैठक से बाहर निकलने के तुरंत बाद बनर्जी कोलकाता के लिए रवाना हो गईं। कोलकाता लौटने के बाद बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के साथ कथित भेदभावपूर्ण व्यवहार के बारे में अपनी चिंता दोहराई।
बनर्जी ने कहा कि चूंकि ‘इंडिया’ गठबंधन के मुख्यमंत्रियों ने बैठक का ‘‘बहिष्कार’’ किया, इसलिए उन्होंने वहां जाकर सभी की तरफ से बोलने का विचार किया।
उन्होंने कहा, ‘‘विपक्ष की तरफ से आज की बैठक में मैं अकेली शामिल हुई, क्योंकि हमारा मानना है कि यदि सहकारी 0संघवाद को बचाना है तो केंद्र द्वारा लिए गए राज्य के धन का हिस्सा राज्य को विकास के लिए दिया जाना चाहिए।’’
बनर्जी ने कहा, ‘‘अगर कुछ राज्यों को अधिक धनराशि दी जाती है तो हमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि एक की दूसरे के लिए अनदेखी की जाए। ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ लोग खा सकें जबकि अन्य भूखे रहें।’’
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के समर्थन में सामने आए। स्टालिन ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘क्या यही सहकारी संघवाद है। क्या मुख्यमंत्री के साथ व्यवहार करने का यही तरीका है। केंद्र की भाजपा नीत सरकार को यह समझना चाहिए कि विपक्षी दल हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और उन्हें दुश्मन नहीं समझा जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि सहकारी संघवाद के लिए संवाद और सभी आवाजों का सम्मान जरूरी है।’’
पश्चिम बंगाल की उद्योग मंत्री शशि पांजा और चंद्रिमा भट्टाचार्य सहित टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं ने केंद्र पर विपक्ष की आवाज को दबाने और सहकारी संघवाद को कमजोर करने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
वहीं, भाजपा महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने कहा, ‘‘हमारे देश में सुर्खियां बटोरना बहुत आसान है। पहले, यह बताया कि मैं (ममता) नीति आयोग च बैठक में भाग लेने वाली एकमात्र ‘विपक्षी मुख्यमंत्री’ हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘फिर (बैठक से) बाहर आईं और बताया कि ‘मैंने माइक बंद होने के कारण बैठक का बहिष्कार किया’। अब पूरे दिन टीवी पर यही दिखाया जाएगा। कोई काम नहीं। कोई चर्चा नहीं। यह हैं आपकी दीदी।’’
भाजपा के राज्यसभा सदस्य समिक भट्टाचार्य ने कहा कि यह बनर्जीढ द्वारा तैयार की गई ‘‘कमजोर पटकथा’’ है। उन्होंने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘नीति आयोग की बैठक में उन्हें उचित समय दिया गया। वह पश्चिम बंगाल के लोगों के आर्थिक लाभ के लिए बैठक में नहीं गई थीं, बल्कि राजनीतिक लाभ लेने और बाहर निकलकर नाटक करने गई थीं।’’
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह बैठक देश के विकास पर चर्चा और विचार-विमर्श के लिए बुलाई गई थी। मेघवाल ने कहा, ‘‘राज्य सरकारों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए… इस प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिए।’’
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ममता बनर्जी की आलोचना करते हुए कहा कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ कोई गठबंधन नहीं है, क्योंकि उन्होंने (ममता) अपने राज्य में इसे एक भी सीट नहीं दी।
स्टालिन (द्रमुक), केरल के मुख्यमंत्री और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता पिनराई विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (आम आदमी पार्टी), कांग्रेस शासित राज्यों कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी तथा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (झारखंड मुक्ति मोर्चा) बैठक में शामिल नहीं हुए।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि हाल में लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में उनके शासित राज्यों की अनदेखी की गई है।
मोदी ने नीति आयोग की नौवीं शासी परिषद की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।