- क्या नीतीश को विश्वास मत हासिल न कर पाने का डर सता रहा
- अमित शाह ने सत्तापक्ष तो तेजस्वी ने विपक्ष विधायकों को एकजुट रखने की कमान संभाली
- विधानसभा अध्यक्ष का इस्तीफा देने से इऩकार तो चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस
क्या बिहार में खेला होगा? क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार फंस गई है? कागजों में आंकड़े जितने भी सत्तापक्ष के पक्ष में दिखाई दे रहे हों लेकिन पटना में राजनीतिक सक्रियता कुछ और ही कहानी कह रही है। मामले को ज्यादा पेचीदा बना दिया है विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने। उनके इस्तीफा देने से इनकार करने के कारण नीतीश कुमार की दिक्कतें बढ़ा गया है। पहली बार है कि कोई भाजपा नेतृत्व को उसी की तर्ज पर चुनौती दे रहा है।
राज्यों में सरकारों के गठन में विधायकों से ज्यादा विधानसभा अध्यक्षों और राज्यपालों की भूमिका होती है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद ज्यादा तेज हुआ है।
अब बिहार में नीतीश कुमार ने गठबंधन के साथ पाला बदलकर भाजपा से हाथ तो मिला लिया लेकिन उन्हें आशंका परेशान किए हुए है कि कहीं ऐसा न हो कि उनकी सरकार विश्वास प्रस्ताव हासिल न कर पाये। इसके पीछे तेजस्वी यादव का एक बयान था कि खेल तो अभी बाकी है।
जबकि विपक्षी गठबंधन के विधायकों को पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के घर पर रोक लिया गया है जिसे सत्ताधारी दल नजरबंद रखने की बात कह रहा है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने रविवार को स्पष्ट कर दिया कि बिहार विधानसभा में स्पीकर अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ एक दिन बाद अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने के दौरान राजद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार का डटकर मुकाबला करेगा।
इसबीच, मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि नीतीश कुमार को जिताने की जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह ने ले ली है। उन्होंने विधायकों को एकजुट रखने की कमान संभाल ली है।
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने विधायकों से अपील की है कि वे विश्वास मत के दौरान अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुरूप मतदान करें। राजद ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदलने से उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में असंतोष पैदा हो गया है।
झा ने कहा कि कल, विधायकों को दो गांधी में से एक को चुनना होगा। एक तो नोटों पर अंकित सिर्फ एक छवि है। जबकि, दूसरे सत्य के जीवंत प्रतीक हैं, जिन्होंने एक हत्यारे की गोलियां लगने के बाद भगवान राम का नाम लिया था।
’’राजद नेता ने कुछ पन्नों को लहराते हुए दावा किया कि ये किसी विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के विषय पर उच्चतम न्यायालय के पहले के आदेश हैं।
उन्होंने कहा कि इन फैसलों के अनुसार, 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव को कम से कम 122 विधायकों का समर्थन मिलना चाहिए। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कल मतदान संवैधानिक मानदंडों के तहत हो। हम राजग को शुभकामनाएं देते हैं।
राजग में जदयू, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और एक निर्दलीय विधायक शामिल हैं, जिनकी कुल संख्या 128 है। वहीं, विपक्षी ‘महागठबंधन’ के 114 विधायक हैं, जिनमें राजद, कांग्रेस और तीन वाम दलों के विधायक शामिल हैं।
झा का यह बयान उन अटकलों के बीच आया है जिसमें कहा गया था कि इस्तीफा देने से इनकार कर रहे चौधरी असहज स्थिति से बचने के लिए सोमवार को स्पीकर का पद छोड़ सकते हैं।
विधानसभा सचिवालय द्वारा जारी विधायी कार्यसूची के मुताबिक, बजट सत्र के पहले दिन द्विसदनीय विधानमंडल के सदस्यों को परंपरा के अनुसार राज्यपाल द्वारा संबोधित किए जाने के तुरंत बाद विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
झा ने उन दावों को भी खारिज कर दिया कि राजद के विधायकों को पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के आवास पर ‘एक तरह से नजरबंद’ रखा गया है क्योंकि पार्टी को डर है कि उनमें से कुछ राजग का रुख कर सकते हैं।
उन्होंने कहा- आप मुझे यहां तेजस्वी यादव के आवास के बाहर, मेरे गठबंधन साझेदारों के साथ देख सकते हैं। सभी विधायक यहां स्वेच्छा से आये हैं। हम उन लोगों में से नहीं हैं जो इसे प्रशिक्षण कार्यशाला कहकर हंगामा करते हैं। हम उन लोगों से भी भिन्न हैं जो दोपहर के भोजन का आयोजन करते हैं और पाते हैं कि बहुत से लोग नहीं आ रहे हैं।
झा का इशारा बोधगया में भाजपा विधायकों के लिए आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला और शुक्रवार को जदयू के मुख्य सचेतक श्रवण कुमार द्वारा आयोजित दोपहर के भोजन के दौरान पार्टी के कम से पांच विधायकों के अनुपस्थित रहने की ओर था।