करतार सिंह ग्रेवाल : सात बार चार्जशीट, फिर भी भिड़ने का हौसला

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-63

 करतार सिंह ग्रेवाल : सात बार चार्जशीट, फिर भी भिड़ने का हौसला

सत्यपाल सिवाच

बीते सालों में भिवानी जिले का नाम हरियाणा कर्मचारी आन्दोलन में अग्रणी के तौर पर याद किया जाता रहा है। तब करतार सिंह ग्रेवाल और दर्जनों ऐसे लड़ाका साथियों की टीम का स्मरण अनायास ही हो जाता है जो किसी भी ताकत से भिड़ने का हौसला रखते थे। वन विभाग कर्मचारी संघ की स्थिति पर भी गौर करें तो पाएंगे कि इस यूनियन को संघर्षशील चरित्र देने वाले गिनती के कार्यकर्ताओं में भी करतार ग्रेवाल का नाम शुमार रहेगा।

  3 मार्च 1959 को तत्कालीन हिसार (अब भिवानी) के बामला गांव में संदोखीदेवी और चन्द्रसिंह के यहाँ एक सपूत ने जन्म लिया। उसे करतार – “करने वाला” नाम दिया गया। तब तो शायद किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय में साधारण किसान परिवार में जन्मा यह लड़का एक खास पहचान बनाएगा। बड़ा परिवार था।

दो माँओं के सात बेटे और पाँच बेटियां – इनका पालन पोषण ही कोई छोटी बात नहीं थी। अपने गांव से ही 1975 में दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की। कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन घर की जरूरत को ध्यान में रखते उसेछोड़ना पड़ा। दिनांक 20.11.1981 को फॉरेस्ट गार्ड की रेग्युलर नौकरी मिलने से पहले कई जगह काम किया।

पहले मिनी बैंक में डेढ़ साल क्लर्क की नौकरी की। फिर नौ महीने मिल्क प्लांट रोहतक में काम किया। वह छूट गया तो सिंचाई विभाग में आठ महीने नौकरी की। इसके बाद तीन महीने मोहन स्पीनिंग मिल रोहतक में काम किया। रेग्युलर नौकरी मिलने के बाद थोड़ा भावी जीवन की दिशा बनी और भटकाव का दौर समाप्त हुआ। निर्वाह के प्रति आश्वस्त हो गए। दिनांक 31.03.2014 को स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। इस बीच वे फॉरेस्टर और ब्लॉक ऑफिसर पदोन्नत हो गए थे।

 सन् 1987 में सत्यवीर सिंह दहिया के जरिए यूनियन से संपर्क बना। वे धीरे-धीरे वामपंथी विचारों के प्रभाव में आने लगे थे। डॉक्टर दयानंद, आजादसिंह सिवाच और कामरेड ओमप्रकाश से संपर्क होने पर एक नये तरह का आत्मविश्वास जागने और प्रकाश दिखने लगा था। वर्ष 1992-93 तक वे काफी गहराई से प्रभावित हो गए थे। उससे पहले वे थोड़ा बहुत मौज मस्ती अथवा प्रापर्टी का काम करने वालों के संपर्क में भी रहे।

वे वन कर्मचारी संघ में संगठन सचिव, अध्यक्ष और मुख्य सलाहकार आदि पदों पर लम्बे समय तक रहे। सत्यवीर दहिया का मार्गदर्शन तथा जीवन सिंह का साथ यूनियन में ताकत बन गया था। सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे वन मजदूर संघ के प्रधान भी बने ताकि उन्हें सुसंगठित करके शोषण से मुक्ति दिलाई जा सके। वे वर्षों तक भिवानी में सर्वकर्मचारी संघ के जिला उपाध्यक्ष व प्रधान रहे। इस दौरान उन्होंने एक जुझारू और टिकाऊ नेता की छवि अर्जित की। वे संघ की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य भी रहे।

 वे सन् 1993 के आन्दोलन में नौकरी से बर्खास्त किए गए। सन् 1996-97 के पालिका आन्दोलन में निलंबित हुए। उन्हें सात बार चार्जशीट किया गया। दर्जनों बार तबादले किए गए और वे विभाग की सभी विंग्स में रहे। वे बुड़ैल, भिवानी और हिसार में तीन बार जेल गए और कुल जेल अवधि 15-20 दिन रही होगी। उन्हें के.एन.मिन्हास के विभागाध्यक्ष रहते मानहानि मामले का सामना भी करना पड़ा।

 करतार सिंह का विवाह सन् 1975 में सुश्री बिमला देवी से हुआ। इनके तीन पुत्र हुए। एक बेटे सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। अब दो बेटे हैं। दोनों सर्विस में और विवाहित हैं। दो पोते हैं। फिलहाल वे अखिल भारतीय किसान सभाके जिला प्रधान के रूप में सक्रिय हैं। अन्य जनवादी आन्दोलनों की मदद भी करते रहते हैं। उनका मानना है कि सत्ता में बैठी भाजपा और आर एस एस जिस तरह समाज को तोड़ने की चेष्टा कर रहे हैं, उसका मुकाबला करने के लिए पहले से अधिक बड़ी एकता बनाकर लड़ने की जरूरत है। (सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक: सत्यपाल सिवाच

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