हरियाणाः जूझते जुझारू लोग -36
जरनैल सिंह सांगवान – वैज्ञानिक मिजाज के अनथक योद्धा
सत्यपाल सिवाच
जरनैल सिंह सांगवान से मेरी पहली मुलाकात 1985 में बिलासपुर स्कूल में एक आम सभा में हुई थी। हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ विभाजित हो गया था। अम्बाला जिले के सभी प्रमुख नेता सोहन लाल धड़े में थे। इसलिए हमने ब्लॉक हैडक्वार्टर्स पर रात को रुककर संपर्क बनाने की कार्यनीति शुरू की थी। पहली रात शेरसिंह जी के मित्र सुशील शर्मा जी के यहाँ रुके। वहाँ रहने वाले अध्यापकों से संपर्क किया। अगले दिन अवकाश था। जरनैल सिंह, अशोक कोहली और सुभाष गौड़ आदि सक्रिय साथियों से इस बैठक में मुलाकात हुई। मास्टर शेरसिंह के अलावा मैंने भी अध्यापक संघ की स्थिति और जरूरत की रूपरेखा पेश की। यह वह प्रक्रिया थी जिसके जरिये उपरोक्त तीनों के अलावा बिलासपुर सहित कुछ स्कूलों के शिक्षक हमसे जुड़ गए। हमने अगले दो दिन अलग-अलग स्कूलों का दौरा करके सदस्यता अभियान चलाया। इसी अभियान में जरनैल सिंह सांगवान की क्षमताओं का पता चला।
जरनैल सिंह सांगवान का जन्म साधारण किसान परिवार में 8 सितंबर 1950 को गांव तेजली, तहसील जगाधरी, जिला अंबाला पंजाब राज्य में हुआ। (1966में हरियाणा राज्य बना तो अंबाला जिला हरियाणा में माना गया). जरनैल सिंह के पिता का नाम रामजी लाल व माता का नाम श्रीमती शांति देवी है। पांचवी तक की शिक्षा राजकीय प्राथमिक स्कूल तेजली से, हायर सेकेंडरी सनातन धर्म सीनियर सेकेंडरी स्कूल जगाधरी से 1967 में पास की।
इसके बाद एमएलएन कॉलेज यमुनानगर से बीएससी 1970 में पास की । परिवार में वे चार भाई व दो बहनें हैं। बड़ा होने के नाते खेती का कार्य भी किया। सन् 1971 में बीएड कॉलेज कुरुक्षेत्र में दाखिला लिया व 1972 में बीएड परीक्षा देने के बाद 5 जून 1972 को राजकीय उच्च विद्यालय मांधाना (मोरनी) जिला अंबाला में साईंस मास्टर के पद पर कार्यभार ग्रहण किया।
क्योंकि उस समय खाली पद पर अध्यापक नियुक्त करने की पावर मुख्याध्यापक के पास थी । 1 जनवरी 1973 को नियमित तौर पर राजकीय उच्च विद्यालय गढ़ी बीरबल जिला करनाल में कार्यभार ग्रहण किया। उस समय घर से 20 मील दूर और जिला से बाहर नियुक्ति का नियम था ।
सन् 1973 की अध्यापकों की हड़ताल उनके लिए नई बात थी। मुख्यमंत्री बंसीलाल के उकसावे पर गांव की पंचायत के सदस्य व चौकीदार को स्कूल के अध्यापकों को धमकाते देखकर उनमें आक्रोश भर गया। सितंबर 1973 में उनका तबादला राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खदरी (जगाधरी) में हुआ। सन् 1973 में ही उनकी शादी जिलेवंती से हुई। उनके पांच लड़कियां व एक लड़का है।
सन् 1986 में पंजाब यूनिवर्सिटी से एम.ए.(प्रीवियस) इकोनॉमिक्स की परीक्षा पास की, लेकिन 1987 के आंदोलन में जुड़ने के कारण एम.ए.इकोनॉमिक्स(फाइनल) के पेपर नहीं दे सके। सन् 2002 में मुख्याध्यापक के पद पर पदोन्नत हुए और 2008 में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रादौर में प्रिंसिपल के पद पर पदोन्नत हुए और 30 सितंबर 2008 को प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए।
एक बार संपर्क में आने के बाद उन्होंने कुछ पुराने और दो-तीन नये साथियों को लेकर हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ के संगठन निर्माण में अम्बाला जिले में (अब के यमुनानगर,अम्बाला व पंचकूला जिलों में) अच्छी भूमिका निभाई। सन् 1986 – 87 से ही सर्वकर्मचारी संघ के आंदोलन से जुड़े रहे।
अंबाला का राजकीय अध्यापक संघ का जिला प्रधान, 1990 में यमुनानगर जिला बनने पर जिला प्रधान सर्व कर्मचारी संघ, जिला प्रधान अध्यापक संघ तथा उसके बाद अध्यापक संघ राज्य में प्रेस सचिव, उपप्रधान, वरिष्ठ उपप्रधान व राज्य प्रधान बने। सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा में भी उप प्रधान के पद पर तथा ज्वाइंट एक्शन कमेटी सर्व कर्मचारी संघ , कर्मचारी महासंघ की वार्ता कमेटी में भी रहे।
सन् 1990 के साक्षरता अभियान में चार जिलों यमुनानगर, अंबाला , कुरुक्षेत्र व कैथल जिलों का लिटरेसी एंबेसडर रहे। साक्षरता अभियान के दौरान ही जिला शिक्षा अधिकारी के साथ झड़प होने के कारण निलंबित किया गया और 1991 में पूरा वर्ष सस्पेंड रहे।
राष्ट्रीय स्तर पर मद्रास में सीसीएसटीओ के गठन में हरियाणा अध्यापक संघ के सात सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल में शामिल हुए और उसके बाद एस टी एफ आई के गठन के समय कोलकाता अधिवेशन में भी शामिल रहे।
जरनैल सिंह सांगवान 1986 के बाद जितने भी संघर्ष हुए सभी में अग्रणी भूमिका में रहे। सन् 1993 के आंदोलन में गिरफ्तार किया गया, सेंट्रल जेल अंबाला में रहे, आंदोलन समाप्त होने के बाद ही रिहा हुए और नौकरी से बर्खास्त हुए। सन् 1996 के आंदोलन में भी अंबाला सेंट्रल जेल में रहे ।
1998 में देशव्यापी हड़ताल के आह्वान पर 8 दिसंबर 1998 को हिसार में सर्वकर्मचारी संघ हरियाणा के राज्य कमेटी की मीटिंग से सभी को गिरफ्तार किया गया व हिसार जेल से 12 दिसंबर को रिहा किया गया । दिल्ली में हुए सभी आंदोलनों में शामिल रहे। अध्यापक संघ की अगुवाई करते हुए ज्वाइंट डायरेक्टर द्वारा उनके समेत पांच पदाधिकारियों पर चंडीगढ़ में मुकदमा दर्ज कराया गया।
जरनैल सिंह एक विशेषता रही है कि वे विकट स्थिति में भी विचलित नहीं होते। तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार बढ़ते हुए तकलीफें उठाने का माद्दा रखते हैं। नेतृत्वकारी क्षमताओं की दृष्टि से देखें तो वे बिना वार्ता गतिरोध किए कड़ी से कड़ी बात कह जाते हैं और क्योंकि डेडलॉक नहीं करते तो अन्ततः रास्ता भी निकाल लेते हैं। इस योग्यता के चलते निदेशालय स्तर पर मामले हल करवाने में वे हम सभी से अधिक प्रभावशाली रहे हैं।
सन् 2016 में सभी जनसंगठनों की रोहतक कन्वेंशन में उनको जन शिक्षा अधिकार मंच के राज्य संयोजक की जिम्मेदारी दी गई। सांगठनिक सीमाओं के चलते यह मंच अपने तय लक्ष्य की दिशा में बहुत कुछ नहीं कर पाया। आर. सी. जग्गा के देहांत के बाद उन्हें रिटायर्ड कर्मचारी संघ के अध्यक्ष का उत्तरदायित्व सौंपा गया और दिसंबर 2024 तक इस पद रहे और इसी दौरान अखिल भारतीय राज्य पेंशनर्स फेडरेशन के उपप्रधान रहे। अब 2021 से किसान सभा हरियाणा के जिला यमुनानगर के प्रधान पद पर कार्य कर रहे हैं।
वे संगठन में आते ही वामपंथी विचारों के संपर्क में आ गए थे। इसके लिए अजमेर सिंह एडवोकेट, कुलबीर सिंह राठी और मेरा(सत्यपाल सिवाच का) भी कुछ योगदान रहा। सेवानिवृत्ति से अब तक लगातार भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जुड़े रहे हैं और सक्रिय हैं। वे बैडमिंटन के शौकिया खिलाड़ी रहे हैं।
जब एन.सी.एफ.2005 के प्रारूप पर ज्ञान विज्ञान समिति, एस.टी.एफ.आई. और एन.सी.ई.आर. टी. काम रहे थे तो केरल के कोझिकोड में दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। उसमें अध्यापक संघ के पाँच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में जरनैल सिंह भी शामिल रहे। जरनैल सिंह के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से अच्छे सम्बन्ध रहे। उनसे कभी निजी लाभ नहीं उठाया लेकिन सामूहिक काम करवाने में झिझक नहीं हुई। सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक।

लेखक और फोटो: सत्यपाल सिवाच।
